scorecardresearch
 

S&P की चेतावनी, निवेश ग्रेड रेटिंग गंवा सकता है भारत

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने आगाह किया है कि भारत ब्रिक देशों में निवेश ग्रेड रेटिंग गंवाने वाला पहला राष्ट्र बन सकता है.

Advertisement
X
रेटिंग
रेटिंग

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने आगाह किया है कि भारत ब्रिक देशों में निवेश ग्रेड रेटिंग गंवाने वाला पहला राष्ट्र बन सकता है. एसएंडपी ने अप्रैल में देश की सार्वभौमिक ऋण संबंधी साख के परिदृश्य को स्थिर से नकारात्मक कर दिया था.

Advertisement

एसएंडपी की जारी एक रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है, ‘क्या भारत ब्रिक समूह का प्रतिष्ठा खोने वाला पहला सदस्य होगा.’

एसएंडपी के ऋण विश्लेषक जायदीप मुखर्जी ने रिपोर्ट में कहा है, ‘भारत की उदार अर्थव्यवस्था के रास्ते में किसी तरह की अड़चन दीर्घावधि में उसकी वृद्धि की संभावनाओं को प्रभावित करेगी. साथ ही इससे उसकी ऋण की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी.’

एसएंडपी ने लगातार चार साल तक नौ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर के बाद भारत की रेटिंग को जनवरी, 2007 में बढ़ाकर बीबीबी की थी जो निवेश ग्रेड की रेटिंग मानी जाती है. इसका अर्थ है कि भारत सरकार के ऋण पत्रों में निवेश सुरक्षित है.

एसएंडपी ने ब्राजील, रूस, भारत और चीन की उच्च वृद्धि वाली अर्थव्यवस्थाओं का उल्लेख किया है. एसएंडपी ने कहा है कि ब्रिक के अन्य तीन देशों की रेटिंग ज्यादा उंची और परिदृश्य भारत की तुलना में बेहतर है.

Advertisement

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब बहुत से विश्लेषक कहने लगे हैं कि क्या ब्रिक में आई इंडोनेशिया के लिए है, जिसने हाल के समय में अच्छी वृद्धि दर हासिल की है.

मार्च, 2012 में समाप्त तिमाही में देश की वृद्धि दर घटकर नौ साल के निचले स्तर 5.3 प्रतिशत पर आ गई. वहीं पूरे वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई.

हालांकि, इस रिपोर्ट में एक सकारात्मक बात भी है. एसएंडपी ने कहा है कि भारत के समक्ष 1991 के संकट जैसी स्थिति में पहुंचने का कोई संकट नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 की तुलना में देश इस समय कहीं बेहतर स्थिति में है. कुछ हलकों से यह चिंता जताई जा रही है कि भारत एक बार फिर से 1991 के संकट जैसी स्थिति में पहुंच सकता है. इसमें कहा गया है कि हाल की समस्याओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था कहीं बेहतर स्थिति में है. 1990 के दशक की शुरुआत में देश में भुगतान संतुलन का संकट पैदा हुआ था.

इसमें कहा गया है कि 250 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार तथा फ्लोटिंग विनिमय दरों से वैश्विक झटकों से समायोजन की संभावना बनती है.

कई नीति निर्माताओं मसलन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि देश की वृद्धि का रुख नहीं बदलेगा और वृद्धि दर 6 से 7 प्रतिशत के दायरे में रहेगी और अंतत: एक बार फिर से 8 से 9 प्रतिशत का स्तर हासिल कर लेगी.

Live TV

Advertisement
Advertisement