रूसी क्रांति (1917) के वर्ष पैदा हुईं इंदिरा गांधी एक विलक्षण इच्छाशक्ति की प्रतिमूर्ति और एक मजबूत कठोर, निर्णायक और जरुरत पड़ने पर निष्ठुर योद्धा थीं. लेकिन इसके साथ ही वह एक अत्यधिक जटिल व्यक्तित्व और अंतर्विरोध से भरी हुई थीं, जो उन्हें विवादास्पद व्यक्तित्व बनाता था.
इंदिरा ने अपने 16 वर्ष के प्रधानमंत्रित्व काल में अनेक ऐसे कार्यों को अंजाम दिया जिससे भारत की स्थिति विश्व स्तर पर सशक्त हुई. चाहे बांग्लादेश की मुक्ति हो या फिर हरित क्रांति को बढ़ावा देकर खाद्यान्न उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाना. वर्ष 1982 में एशियाई खेलों का सफल और भ्रष्टाचार मुक्त आयोजन उनकी प्रशासनिक और प्रबंधकीय क्षमता को दर्शाता है.
राजनीतिक वैज्ञानिक डी. एल. सेठ याद करते हुए कहते है कि इंदिरा में कुशल प्रशासनिक क्षमता थी. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के विरूद्ध मिली जीत से भारत की स्थिति विश्व में मजबूत हुई. लेकिन इससे भारत को बहुत अधिक लाभ नहीं मिला है. बांग्लादेश में चल रही गतिविधियों से भारत को जब तब दो चार होना पड़ता है.
इतिहासकार बिपिन चंद्र ‘इंडिया आफ्टर इंडिपेंडेंस’ में लिखते है कि 1971 की जीत सही अर्थों में इंदिरा की व्यक्तिगत जीत है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा ‘जीत में तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना की भूमिका भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं थी.’
वर्ष 2008 में आए आर्थिक मंदी से भारत अन्य देशों के मुकाबले कम प्रभावित हुआ. इसका श्रेय बैंकों के राष्ट्रीयकरण को दिया गया. राष्ट्रीयकरण का काम इंदिरा गांधी ने ही किया था. लेकिन सेठ इसे राजनैतिक प्रचार कहते है. {mospagebreak}
सेठ ने कहा ‘यदि वह इतनी ही अग्रसोची और दूरदर्शी थी तो उदारीकरण क्यो नहीं किया. अगर 1980 के दशक में उदारीकरण किया गया होता तो भारत आज चीन से पीछे नहीं होता.’
इंदिरा द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के लिए बिपिन चंद्र ने आर्थिक, समाजिक और राजनीति जैसे कारणों पर बल दिया है. लेकिन राय इसे राजनीति और सत्ता के लिए की गई कार्रवाई बताते है. आगे इंदिरा ने अपनी भूलों को सुधारा और उन्होंने एक बार फिर 1980 में धमाकेदार वापसी कीं. सेठ इसे लोकतंत्र की स्वभाविक प्रक्रिया बताते है तो राय इसके लिए विपक्ष में जारी घमासान और जयप्रकाश नारायण द्वारा इंदिरा को माफी देना मानते है.
इंदिरा ने गरीबी, अलगाववाद और सांप्रदायिकता जैसी चुनौतियों से भी निपटने का प्रयास किया. ‘गरीबी हटाओ’ नारा और बीस सूत्रीय कार्यक्रम के जरिये गरीबी पर प्रहार किया. लेकिन वह इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए किसी प्रकार का रणनीतिक ढ़ांचा विकसित नहीं कर पायी. राय कहते है कि इंदिरा पुनर्वापसी के बाद हिचकिचाहट और सावधानी की प्रवृति से ग्रसित हो गई थीं.
इन तमाम बातों के बावजूद इंदिरा की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह देश की मजबूती और उसमें अंतर्निहित शक्ति को महत्वपूर्ण मानती थीं. शायद यही वजह है कि उन्होंने 1974 में परमाणु परीक्षण करने की अनुमति प्रदान की. वह लोगों के लिए हमेशा तत्पर रहीं. अपनी हत्या के कुछ दिन पूर्व उन्होंने कहा था ‘मुझे लगता है मैंने अपने सारे कर्ज’ को चुका दिया है.’