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'लिव इन' में ‘अपराध’ पर कोर्ट की पीठ में अलग-अलग राय

उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उस मामले में अलग-अलग फैसला दिया है, जिसमें लंबे समय से सहजीवन में रह रहे जोड़े के रिश्तों में खटास आने पर क्या किसी व्यक्ति को महिला को धोखे से उसके साथ कानूनन शादीशुदा मानने के लिए रजामंद करने और सहवास करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है.

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उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उस मामले में अलग-अलग फैसला दिया है, जिसमें लंबे समय से सहजीवन में रह रहे जोड़े के रिश्तों में खटास आने पर क्या किसी व्यक्ति को महिला को धोखे से उसके साथ कानूनन शादीशुदा मानने के लिए रजामंद करने और सहवास करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है.

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पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू ने जहां कहा कि किसी बात का नैतिक रूप से गलत होना कोई जरूरी नहीं कि कानूनन अवैध हो. वहीं, उच्चतम न्यायालय की एकमात्र महिला न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा ने इससे अलग राय देते हुए कहा कि यह धोखा है.

किसी व्यक्ति द्वारा किसी महिला को गलत तरीके से इस बात को मानने के लिए राजी करना कि वह उसके साथ कानूनन शादीशुदा है और उस विश्वास के तहत उसके साथ सहवास करना आईपीसी की धारा 493 के तहत अपराध की परिभाषा में आता है और इसके लिए 10 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है.

उस व्यक्ति को आईपीसी की धारा 493 के तहत सभी दोषों से मुक्त करते हुए न्यायमूर्ति काट्जू ने कहा, ‘‘अक्सर समाज द्वारा किसी कृत्य को अनैतिक माना जा सकता है, लेकिन यह अवैध नहीं भी हो सकता है.’’ न्यायमूर्ति काट्जू ने कहा, ‘‘अवैध होने के लिए कृत्य को साफ तौर पर आईपीसी के कुछ खास प्रावधान या अन्य अधिनियम के दायरे में आना चाहिए.’’{mospagebreak}

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हालांकि, न्यायमूर्ति मिश्रा ने उस व्यक्ति को आईपीसी की धारा 493 के तहत दोषी ठहराया. न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘यद्यपि भगत और पीड़ित महिला सुनीता ने रीति-रिवाज के अनुसार शादी नहीं की थी, लेकिन आधिकारिक दस्तावेज समेत रिकार्ड में विभिन्न साक्ष्य स्पष्ट तौर पर संकेत देते हैं महिला यह निष्कर्ष निकाल सकती है कि वह उससे कानूनन शादीशुदा है.’’

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘अगर रिकार्ड में साक्ष्य इस बात का संकेत देते हैं कि महिला को इस विश्वास तक पहुंचाया गया है कि वह आईपीसी की धारा 493 के तहत अपराध के आरोपी व्यक्ति की कानूनन पत्नी है, तो उसे आईपीसी की धारा 493 के तहत अपराध को लाने के लिए पर्याप्त सामग्री माना जाएगा.’’ यह मामला झारखंड के एक बीडीओ के नौ साल से सहजीवन में रहने का है. न्यायमूर्ति काट्जू ने कहा कि उस व्यक्ति को महिला को धोखा देने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. वहीं, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने पुरुष को महिला को धोखा देने और उसके साथ सहवास करने का दोषी ठहराया.

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