अण्णा हजारे जब दिल्ली में जन लोकपाल आंदोलन की तैयारी को अंतिम रूप देने में जुटे थे, उसी समय उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त जस्टिस एन.के. मेहरोत्रा ने प्रदेश सरकार के दुग्ध विकास राज्यमंत्री अवधपाल सिंह यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए और उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने और मंत्रिपरिषद से बरखास्त करने की सिफारिश कर दी. उनकी रिपोर्ट के आधार पर यादव समेत अब तक दो मंत्रियों को पद खोना पड़ा है, वहीं दो और मंत्री दोषी ठहराए जा चुके हैं.
छत्तीसगढ़ के लोकायुक्त (यहां इसे लोक आयोग कहा जाता है) जस्टिस एल.सी. भादू ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में राज्य सरकार को सौंपी अपनी 2009-10 की वार्षिक रिपोर्ट में सरकार के हर विभाग में भयंकर भ्रष्टाचार पर उंगली उठाते हुए भ्रष्ट अफसरों को तालाब की ऐसी मछली की संज्ञा दी जो ''ज्यादा से ज्यादा पानी पी लेने के लिए मरी जा रही हैं.''
उन्होंने लिखा, ''अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि तालाब में मछलियों की संख्या अनगिनत है और हर मछली अधिक से अधिक पानी पीने को बेताब है.'' मध्य प्रदेश में करीब 10 राज्यमंत्रियों और 36 से ज्यादा आइएएस अधिकारियों के मामले लोकायुक्त में चल रहे हैं. राज्य के लोकायुक्त जस्टिस पी.पी.जस्टिस नावलेकर कहते हैं, ''जून, 2009 में मेरे पद ग्रहण करने से लेकर अब तक 111 प्रकरणों में भ्रष्टों को रिश्वत लेते हुए पकड़ा जा चुका है.''
उत्तर प्रदेश लोकायुक्त की छड़ी चली
राजेश त्रिपाठीः पूर्व धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री. गोरखपुर के चिल्लूपार में भूमि हड़पने के दोषी. पद से हटाए गए.
अवधपाल सिंहः पूर्व पशुधन दुग्ध विकास राज्यमंत्री. एटा में ग्रामसभा भूमि पर अवैध कब्जे के दोषी. मंत्री पद छोड़ा.
धर्म सिंह सैनीः बेसिक शिक्षा मंत्री. बेसिक शिक्षा विभाग में सिलाई मशीन खरीद घोटाले के दोषी. कार्रवाई की सिफारिश.
अनीस अहमद खानः हज मंत्री. बीसलपुर में विधायक निधि के दुरुपयोग के दोषी. कार्रवाई की सिफारिश.
इनकी जांच अभी चल रही
रंगनाथ मिश्रः माध्यमिक शिक्षा मंत्री.आय से अधिक संपत्ति का आरोप. जांच जारी.
नारायण सिंहः उद्यान मंत्री. सरकारी भूमि हड़पने का आरोप. जांच जारी.
सुभाष पांडेयः संस्कृति मंत्री. दलितों को आवंटित आवासीय पट्टों पर अवैध कब्जा.
बादशाह सिंहः श्रम मंत्री, महोबा में पैतृक गांव खरेला में अवैध जमीन पर कब्जा.
दरअसल भ्रष्टाचार के विरुद्ध उभरे देशव्यापी माहौल और अण्णा के आंदोलन के बाद लोकायुक्तों की सक्रियता खासी बढ़ गई है. उनके दफ्तरों में शिकायतों की तादाद भी बढ़ती जा रही है. उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त कार्यालय में आने वाली शिकायतों में ही 30 से 40 फीसदी का इजाफा हुआ है. इस साल 20 सितंबर तक शिकायतों की संख्या 2,786 तक पहुंच गई थी, जबकि बीते वर्ष 31 दिसंबर तक 2,622 शिकायतें पहुंची थीं. जस्टिस मेहरोत्रा कहते हैं, ''साल के अंत तक यह संख्या 3,500 का आंकड़ा पार कर सकती है.'' जस्टिस नावलेकर भी मानते हैं कि अण्णा के आंदोलन के बाद ''आम लोगों में भ्रष्टाचार को लेकर सजगता बढ़ी है और वे सीधे शिकायतें लेकर हमारे दफ्तर आ रहे हैं.'' हालांकि सीमित अधिकारों और उपयुक्त स्टाफ की कमी ने लोकायुक्तों के हाथ बांध रखे हैं. मसलन, जहां कर्नाटक और मध्य प्रदेश के लोकायुक्तों का अपना पुलिस बल और स्टाफ है, वहीं छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में उनके पास कोई जांच एजेंसी नहीं है. मेहरोत्रा कहते हैं कि उनके पास महज दो डिप्टी एसपी और एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (एडीजे) रैंक के अधिकारी हैं. ऐसे में ज्यादातर मामलों की जांच उन्हें खुद करनी पड़ती है.
बीते वर्षों में मनरेगा के तहत गांव में खासा सरकारी धन पहुंचा है और इसकी बड़े पैमाने पर बंदरबांट भी हुई है. लेकिन इसकी जांच लोकायुक्त नहीं कर सकते. जस्टिस मेहरोत्रा बताते हैं कि भ्रष्टाचार के जिन मामलों में ग्राम प्रधान शामिल हैं, वहां उन्हें जांच करने का अधिकार नहीं. यही नहीं, सरकार के मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त जांच कर सकते हैं, पर मुख्यमंत्री के मामले पर कानून खामोश है.
कानून की समाओं में बंधे होने के कारण लोकायुक्त राज्य के विश्वविद्यालयों या अनुदानित शिक्षण संस्थाओं में भ्रष्टाचार की जांच नहीं कर सकते. उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त कार्यालय के जनसूचना अधिकारी अरविंद कुमार सिंघल कहते हैं, ''जब कोई ऐसी शिकायत आती है, जिसकी जांच लोकायुक्त नहीं कर सकते तो उसे संबंधित जिले के जिलाधिकारी को भेज दिया जाता है.'' वैसे, भ्रष्टाचार के मामले की जानकारी होने पर लोकायुक्त स्वयं पहल कर जांच नहीं कर सकते.
उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त जांच के दायरे में फिलहाल मंत्री, विधायक, नगर निगमों के महापौर और पार्षद, नगरपालिका परिषद और नगर पंचायत के अध्यक्ष तथा सदस्य, जिला पंचायत के अध्यक्ष और सदस्य, सभी सरकारी विभागों तथा कंपनियों के अधिकारी एवं कर्मचारी आते हैं. लोकायुक्त कार्यालय के एक अधिकारी बताते हैं कि कई बार जांच में तीन-चार साल लग जाते हैं.
मध्य प्रदेश में स्थिति कुछ अलग है. वहां लोकायुक्त मजबूत संगठन के बतौर कार्यरत है. उसके पास पुलिस महानिदेशक से लेकर निचले स्तर तक अपना स्टाफ है. जस्टिस नावलेकर ने हाल ही में राज्य के गृह मंत्री और गृह सचिव को अपने कार्यालय में बुलाकर रीवा, शहडोल तथा छिंदवाड़ा में बने नए संभागों के लिए एसपी स्तर के अधिकारियों और 12 अन्य पुलिस अधिकारियों का स्टाफ उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए.
लेकिन जरूरी नहीं कि सरकारी विभाग लोकायुक्त की सुने ही. मसलन नगरीय प्रशासन विभाग के अफसरों, कर्मचारियों के विरुद्ध 350 से ज्यादा मामले लोकायुक्त में लंबित हैं लेकिन विभाग लोकायुक्त को जानकारी ही नहीं भेजता. छत्तीसगढ़ के लोकायुक्त ने तो रिपोर्ट में अफसोस जताया कि सरकार उनकी सिफारिशों पर अमल नहीं करती.
बहारहाल हाल के घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि पर्याप्त संसाधन और काम करने की स्वतंत्रता मिले तो यह संस्था भी भ्रष्टाचार पर नकेल कसने में सक्षम है.
-साथ में जयश्री पिंगले और समीर गर्ग