सरकार के तंबाकू विरोधी अभियानों और सिगरेट व गुटखा के पैकेटों पर सख्त चित्रमय चेतावनियों के मद्देनजर ऐसा मालूम होता है कि धूम्रपान छोड़ने की चाह रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘ब्राजील, कनाडा, सिंगापुर और थाइलैंड में चित्रमय चेतावनियों के लागू करने के बाद किये गये अध्ययन लगातार दिखाते हैं कि चित्रों में चेतावनी ने तंबाकू के इस्तेमाल के नुकसान के बारे में महत्वपूर्ण तरीके से जन जागरुकता बढ़ाई है.’ चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू निर्माता और उपभोक्ता देश है जहां करीब 24.1 करोड़ लोग किसी न किसी प्रकार से तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं.
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (गैट्स) 2009-10 के अनुसार करीब 35 प्रतिशत भारतीय किसी न किसी प्रकार से तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं जिनमें 47 प्रतिशत पुरुष और 20.2 प्रतिशत महिलाएं हैं.
सर्वेक्षण कहता है कि सिगरेट पीने वाले करीब 38 प्रतिशत लोग, बीड़ी पीने वाले 29.3 प्रतिशत लोग और तंबाकू खाने वाले 33.8 प्रतिशत लोग इन उत्पादों पर जारी चेतावनी देखने के बाद धूम्रपान छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान ने डब्ल्यूएचओ व स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर सर्वेक्षण किया है. जिसके मुताबिक भारत में 14 प्रतिशत वयस्क धूम्रपान करते हैं वहीं 25.9 प्रतिशत लोग तंबाकू चबाते हैं. सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के लिए 186 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. इनमें से 25 करोड़ रुपये तंबाकू निरोधी अभियान में दृश्य-श्रव्य प्रचार में खर्च के लिए हैं.
पत्रिका ‘टोबेको कंट्रोल’ में प्रकाशित एक ताजा अध्ययन के अनुसार जनसंचार अभियान व्यावहारिक हैं और इनका इस्तेमाल भारत में तंबाकू नियंत्रण के लिए प्रभावी तौर पर हो सकता है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस साल (2011 में) तंबाकू के कारण करीब 60 लाख लोगों की मौत हो सकती है जिनमें करीब छह लाख वो हैं जो धूम्रपान नहीं करते लेकिन तंबाकू के धुंए के संपर्क में आने के कारण मौत का शिकार हो सकते हैं.
संगठन का आंकलन है, ‘2030 तक इससे 80 लाख लोग मारे जा सकते हैं.’ भारत में धूम्रपान करने या तंबाकू खाने वाला कोई व्यक्ति हर साल इन उत्पादों को खरीदने में करीब 3600 रुपये खर्च करता है.