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दुनिया भर के आधे से ज्‍यादा बाघ रहते हैं भारत में

दुनिया भर में बाघों की आधी से भी अधिक आबादी भारत में रहती है और ताजा सरकारी आंकडों से पता चला है कि देश के अभयारण्यों में बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है.

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दुनिया भर में बाघों की आधी से भी अधिक आबादी भारत में रहती है और ताजा सरकारी आंकडों से पता चला है कि देश के अभयारण्यों में बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है.

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पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के मुताबिक देशव्यापी स्तर पर बाघों की संख्या के लिए कराये गये एक सर्वे से पता चला है कि बाघों की संख्या बढ़ रही है. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के 28 मार्च 2011 को जारी आंकड़े बताते हैं कि बाघ की अनुमानित संख्या 1706 है. यह संख्या कम से कम 1571 और अधिक से अधिक 1875 हो सकती है.

प्राधिकरण के ये आंकड़े देश के 17 राज्यों में बाघों की आबादी पर आधारित हैं. 2008 में बाघों की संख्या 1411 थी. इस साल बाघों की गणना में शिवालिक गंगा मैदानी इलाके, मध्य भारत, पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर की पहाडियां, ब्रहमपुत्र का मैदानी इलाका और सुंदरबन शामिल किये गये.

भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी ने बताया कि शिवालिक गंगा मैदानी इलाके में बाघ 5000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में रह रहे हैं और उनकी अनुमानित संख्या 297 है. मध्य भारत में लगभग 451 बाघ 47 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके में रहते हैं. पूर्वी घाट में 15000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बाघ रह सकते हैं लेकिन अनुमान है कि साढ़े सात हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके में लगभग 53 बाघ रह रहे हैं.

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पश्चिम घाट में बाघ 21 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके में रहते हैं और उनकी अनुमानित संख्या 366 है. पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाके और ब्रहमपुत्र के मैदानी इलाके में बाघ 42 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में रह रहे हैं. यहां रहने वाले बाघों की संख्या को लेकर अलग अलग आंकड़े हैं. पर्यावरण एवं वन मंत्री जयंती नटराजन ने कहा है कि बाघ रिजर्व में विशेष बाघ सुरक्षा बल का गठन करने और वन संरक्षकों को हथियार मुहैया कराने के लिए केन्द्र सरकार राज्यों की सहायता कर रही है.

जयंती ने बताया कि आंध्रप्रदेश सरकार ने अप्रैल 2012 को कवल बाघ रिजर्व अधिसूचित किया जो देश का 41वां बाघ रिजर्व है. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की 18 मार्च 2010 को हुई बैठक में खनन, ताप एवं पन बिजली बांध जैसी बड़ी विकास परियोजनाओं के बारे में चर्चा की गयी, जो बाघों के रहने वाले स्थानों पर चल रही हैं.

वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी के अनुसार पिछले दस साल में हजारों वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र ऐसी परियोजनाओं के लिए बर्बाद कर दिया गया. इस तरह की परियोजनाओं का भारत में बाघ संरक्षण को लेकर किये जा रहे उपायों पर प्रतिकूल असर हो सकता है.

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