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मुकेश अंबानी: द सुपर स्‍टार का बढ़ता दायरा

लंदन में ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के साथ एक अरब डॉलर के करार पर हस्ताक्षर करने के कुछ सेकंड बाद दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के एक सहयोगी ने उन्हें उनके पिता दिवंगत धीरूभाई अंबानी की एक उक्ति याद दिलाईः ''अगली कक्षा में छलांग लगाओ.''

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मुकेश अंबानी
मुकेश अंबानी

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लंदन में ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के साथ एक अरब डॉलर के करार पर हस्ताक्षर करने के कुछ सेकंड बाद दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के एक सहयोगी ने उन्हें उनके पिता दिवंगत धीरूभाई अंबानी की एक उक्ति याद दिलाईः ''अगली कक्षा में छलांग लगाओ.'' और लंदन से हजारों मील दूर दिल्ली में भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी ने पेट्रोलियम सचिव एस. सुंदर्शन से कहा, ''तेल और गैस के बड़े खिलाड़ी अंततः भारत की ओर देखेंगे.''

अंबानी और बीपी के बीच हुए इस करार से भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होगा. रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआइएल) की मेज पर नकदी की पहली खेप 7.2 अरब डॉलर की होगी. विश्लेषकों का दावा है कि यह अंततः बढ़ कर 20 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है.

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आरआइएल गहरे समुद्र में तेल खोजने वाली बीपी की बहुप्रचारित मशीनरी से लाभ उठाएगी और इसके बदले वह पिछले साल मेक्सिको की खाड़ी में तेल लीक होने से उपजी मुसीबतों से उबरने में उसकी मदद करेगी.

पी.एम.एस. प्रसाद ने इंडिया टुडे को बताया, ''भारत में हमने अभी तक गैस के इस्तेमाल की सतह भी नहीं खुरची है.'' प्रसाद आरआइएल के कार्यकारी निदेशक हैं और उन पर कंपनी की ऊर्जा संबंधी महत्वाकांक्षाओं को परवान चढ़ाने का जिम्मा है.

बीपी के साथ यह सौदा मुकेश अंबानी के पहले से ही 31, 000 करोड़ रु. की नकद पूंजी के विशाल भंडार को दोगुना कर देगा. इससे उन पर इस नकदी का निवेश करने और अपने शेयरधारकों को लाभ पहुंचाने का और भी ज्‍यादा दबाव होगा. {mospagebreak}

विश्लेषणों के मुताबिक, अगले 12 महीनों में रिलायंस के पास 25 अरब डॉलर की नकदी होगी. लेकिन इस बात के स्पष्ट संकेत नहीं हैं कि मुकेश इस अकूत धनराशि को कैसे निवेश करेंगे. अतीत में मुकेश कह चुके हैं कि वे नए कारोबार खोजने की अपने पिता की ही नीतियों का अनुसरण करेंगे, जिसमें उनकी नकदी कापांच गुना हिस्सा खपेगा ताकि वृद्धि की तेज गति के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके. लेकिन इसकी संभावना कम ही है.

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उनके दो कारोबार -दूरसंचार और खुदरा- जिनमें मुकेश की काफी नकदी पहले खपाई जा चुकी है, अब अपेक्षाकृत कम लागत वाले हो गए हैं. पिछले साल अंबानी ने 4जी ब्रॉडबैंड सेवा शुरू करने के लिए एक अखिल भारतीय लाइसेंस खरीदा.

अंबानी के सहयोगी मनोज मोदी ने मौजूदा दूरसंचार टावर सुविधाओं से सेवाएं शुरू करने के लिए एक कम लागत वाली तरकीब निकाल ली है. इसलिए यह इस कारोबार बनाए रखने के लिए सारा 3 अरब डॉलर ले लेगी. खुदरा के कारोबार में, हालांकि एक बड़े विस्तार की बात की जा रही है, कंपनी के क्षेत्रों के  मुताबिक, अतीत के विपरीत कोई भारी भरकम लागत नहीं लगाई जाएगी.

कंपनी जामनगर में एक ग्रीन फील्ड पेट्रोकेमिकल संयंत्र में 5 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा कर चुकी है. हरियाणा और मुंबई में इसकी दो विशालकाय 'सेज' (एसईजेड) परियोजनाएं अभी तक शुरू नहीं हो पाई हैं. दो अन्य कारोबार, जो समूह के नाम से जुड़े हैं –रिलायंस लाइफ साइंसेज और रिलायंस गैस ट्रांसपोर्टेशन-मुकेश की निजी कंपनियां हैं जैसी कि मुंबई की सेज परियोजना है. रिलायंस इन्हें वित्तीय सहयोग नहीं देती. कोटक सिक्युरिटीज के कार्यकारी निदेशक संजीव प्रसाद कहते हैं, ''शेयरधारकों को नकदी देने का विचार अच्छा हो

सकता है.''{mospagebreak}

रिलायंस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि विदेश में बड़े अधिग्रहण की हमेशा संभावना रहती है. रिलायंस भारत से बाहर कच्चा माल और प्रौद्योगिकी हासिल करने की लगातार कोशिश करती रही है. पिछले साल यह हॉलैंड की रसायन कंपनी लॉयंडेलबासेल को 14.5 अरब डॉलर में और कनाडा की संकटग्रस्त तेल कंपनी वैल्यु क्रिएशन का  2 अरब डॉलर में अधिग्रहण करने में विफल रही. पिछले दो वर्षों में रिलायंस ऊर्जा का एक आकर्षक स्रोत समझी जाने वाली अमेरिका की शेल गैस संपत्ति को हासिल करने में करीब 3.5 अरब डॉलर खर्च कर चुकी है.

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लेकिन भारत की वृद्धि की क्या कहानी है जिसके  बारे में मुकेश हमेशा अपने भाषणों में बात करते रहते हैं? अगर आप ग्लोबल फॉर्चून 500 की सूची में चोटी की 20 कंपनियों से कोई संकेत लें और सबसे ऊपर बनी रहने वाली खुदरा कंपनी वालमार्ट को छोड़ दें तो ऊर्जा और बैंकिंग की कंपनियां ही सबसे ऊपर होती हैं.

उम्मीद की जा रही है कि जिस तरह रिलायंस खुदरा बाजार के उदारीकरण से पहले उसमें उतरी थी, उसी तरह इसका अगला लक्ष्य पूरी तरह बैंकिंग लाइसेंस हासिल करना होगा. देश का बुनियादी ढांचा निर्मित करने के लिए 500 अरब डॉलर से ज्‍यादा की जरूरत है, इसे देखते हुए मुकेश इस क्षेत्र में नकदी लगा सकते हैं.

इसके कुछ शुरुआती सबूत पहले ही देखे जा सकते हैं. माना जा रहा है कि आरआइएल बुनियादी सुविधाएं विकसित करने वाली और वित्त मुहैया करने वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनेंस कंपनी (आइएल ऐंड एफएस) में जापान के ओरिक्स कॉरपोरेशन से उसकी 23.87 प्रतिशत हिस्सेदारी को 1.2 अरब डॉलर में खरीदने के लिए बातचीत कर रही है. {mospagebreak}

अगर यह सौदा हो जाता है तो आरआइएल भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के बाद आइएल ऐंड एफएस में दूसरा सबसे बड़ा निवेश करने वाली कंपनी बन जाएगी और उसीके साथ वह वित्तीय सेवा के क्षेत्र में कदम रखेगी. व्यापार के एक अखबार ने हाल ही में खबर दी थी कि इस बातचीत में मोदी आरआइएल टीम के मुखिया होंगे और ओरिक्स की ओर से उसके उपाध्यक्ष यूकियो यानासे अगुआई करेंगे, जो रिलायंस के बड़े अधिकारियों से बात करने के लिए हाल ही में भारत आए थे.

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मजे की बात है कि 1980 के दशक के अंत में बुनियादी ढांचा विकसित करने और वित्तीय सेवाएं देने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी और पूर्व की यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से स्थापित आइएल ऐंड एफएस के पास 100 अरब डॉलर की प्रतिष्ठित दिल्लीमुंबई औद्योगिक कॉरिडोर परियोजना में 41 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. गैर बैंकिंग की यह वित्तीय संस्था आइएल ऐंड एफएस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की प्रमोटर भी है.

यह 3 अरब डॉलर की भारत की सबसे बड़ी निजी इक्विटी कंपनी को संचालित करती है और अदालत के आदेशों के जरिए रामलिंग राजू द्वारा प्रमोट की गई मायटास इन्फ्रास्ट्रक्चर (अब आइएल ऐंड एफएस इंजीनियरिंग) और मायटास प्रॉपर्टीज का अधिग्रहण कर चुकी है.

बहरहाल कुछ लोगों का तर्क है कि अकेले ऊर्जा का कारोबार रिलायंस की सारी नकदी को गटक जाएगा. इस तरह बीपी के साथ सौदा काफी महत्व रखता है. अब तक रिलायंस ने इसके सिर्फ एक ब्लॉक डी6 की खुदाई की है और गैस निकालने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार किया है. इतना करने में ही कंपनी को 7 अरब डॉलर खर्च करने पड़े हैं.{mospagebreak}

इस हिसाब से अगर बचे हुए 23 ब्लॉक पर इतना ही पैसा निवेश करना पड़ा तो बीपी से सौदे के बाद खर्च के 70 प्रतिशत हिस्से का मतलब यह होगा कि इन ब्लॉकों को विकसित करने पर ही रिलायंस को 115 अरब डॉलर खर्च करने होंगे. रिलायंस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''गैस कुओं की खुदाई से जुड़े जोखिम और अनिश्चितता को देखते हुए आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये निवेश एक लंबी अवधि, यानी करीब 10 वर्ष तक चलेंगे.''

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ऊंचा दांव लगा होने से आश्चर्य नहीं कि रिलायंस ने वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में कहीं अधिक बड़ी और ताकतवर कंपनी के साथ बड़ी साझेदारी करने का फैसला किया. इससे पहले रिलायंस ने गहरे समुद्र में खुदाई के काम मेंअकेले ही उतरने का फैसला किया था. लेकिन डी6 में गैस के प्रवाह में लगे झटकों ने विश्लेषकों को चिंता में डाल दिया था.

2007 में तेजी के बाद से तेल शोधन के कारोबार में लगातार मुनाफा घटने के कारण जानकारों को उम्मीद थी कि गैस से मुनाफा होगा. पिछले 12 महीनों में रिलायंस की शेयर कीमत 1,150 रु. से गिरकर 977 रु. पर पहुंच गई. बीपी से सौदे की घोषणा के बाद बैंक ऑफ अमेरिकामेरिल लिंच के विद्याधर गिंडे और यूबीएस के प्रकाश जोशी व रुचि पटवारी जैसे विश्लेषकों ने रिलायंस के शेयर खरीदने की सलाह दी.{mospagebreak}

फिलहाल, पलड़ा मुकेश की ही ओर झुका दिखता है. 2011 के वार्षिक वैश्विक ऊर्जा आकलन में बीपी ने अनुमान लगाया था कि अगले 20 वर्षों में भारत की ऊर्जा खपत में 115 प्रतिशत का इजाफा होगा, और गैस सबसे तेजी से बढ़ने वाला जीवाश्म ईंधन है.

2025 तक भारत में गैस की कुल खपत प्रतिदिन 12.5 अरब क्यूबिक फुट तक पहुंचने का अनुमान है जबकि अभी यह 5.1 अरब क्यूबिक फुट है. रिलायंस देश के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत और खपत का 30 प्रतिशत उत्पादन करती है.अब सवाल यह है कि क्या यह गैस मुकेश की दूसरी आकांक्षाओं को भी ईंधन देगी?

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