राज्यसभा में मंगलवार को राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी केंद्र (एनसीटीसी) पर लाए गए संशोधन प्रस्तावों पर सरकार अपनी साख बचाने में कामयाब हो गई. एनसीटीसी पर हुए मतविभाजन में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने सरकार का साथ दिया जिससे विपक्ष का संशोधन प्रस्ताव गिर गया.
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के अपने जवाब में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन को भरोसा दिलाया कि एनसीटीसी के गठन पर सरकार एक आम सहमति बनाने के साथ ही मुख्यमंत्रियों से इस मसले पर चर्चा करेगी.
प्रधानमंत्री की ओर से आश्वासन मिलने के बाद सपा और बसपा ने मतविभाजन के समय सरकार का साथ दिया. मतविभाजन के समय तृणमूल के छह सांसद सदन में मौजूद नहीं थे. संशोधन प्रस्ताव, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित अन्य विपक्षी दलों ने पेश किया था. प्रधानमंत्री ने कहा, 'ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा, जिससे संविधान के संघीय ढांचे का अतिक्रमण हो.'
सिंह ने ठीक यही बात सोमवार को लोकसभा में भी कही थी. प्रधानमंत्री ने 16 अप्रैल को प्रस्तावित मुख्यमंत्रियों की बैठक का जिक्र करते हुए कहा, 'मैं समझता हूं कि एनसीटीसी का विचार और इसके काम करने का तरीका, दो अलग मुद्दे हैं. एनसीटीसी की कार्यपद्धति को लेकर मतभेद हो सकते हैं. लेकिन मुझे भरोसा है कि बातचीत और राय-मशविरे के जरिए मतभेदों को दूर किया जा सकता है.'
प्रधानमंत्री ने सदन को यह भी सूचित किया कि मुख्यमंत्रियों की एक बैठक 16 अप्रैल को होने वाली है, और उस दौरान एनसीटीसी पर उनके विचारों पर रायशुमारी की जाएगी. सरकार द्वारा आश्वासन के बावजूद विपक्षी दलों द्वारा संशोधन वापस न लेने पर उपसभापति के.रहमान खान ने मतविभाजन का निर्देश दिया. सरकार कुछ चिंताजनक क्षण से गुजर ही रही थी कि खान ने घोषणा की कि एनसीटीसी पर संशोधन के पक्ष में 82 और विरोध में 105 मत पड़े.
संशोधन प्रस्ताव गिरने के बाद भाजपा, वामदल और बीजू जनता दल के सांसद सरकार के रुख के विरोध में सदन से बाहर चले गए. सरकार का साथ देने पर सपा नेता मोहन सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी साम्प्रदायिक पार्टियों को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती. सिंह ने पत्रकारों से कहा, 'देश प्रत्येक साल आम चुनावों का सामना करने की स्थिति में नहीं है और देश में साम्प्रदायिक ताकतों का कब्जा हो जाए, इसकी हम अनुमति नहीं दे सकते.'
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने अनिच्छा पूर्वक सरकार का समर्थन किया है. वहीं, विपक्ष का संशोधन प्रस्ताव गिरने पर भाजपा नेता वेंकैया नायडू ने इसे संघवाद की हार बताया. उन्होंने कहा, 'संघवाद पर बार-बार हमला किया जा रहा है. हम पूरी तरह निराश हैं.'
इसके पहले, राज्यसभा में विपक्ष के नेता भाजपा के अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री से भरोसे की मांग की. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इस बात का भरोसा दें कि एनसीटीसी के तहत काम करने वाले केंद्रीय बल राज्यों की जानकारी अथवा उनकी अनुमति के बगैर राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे. वहीं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री को वादा करना चाहिए कि सरकार मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत करने के बाद ही एनसीटीसी के मसले पर आगे बढ़ेगी.
विपक्ष की आशंकाओं का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री पी.के. बंसल ने कहा कि प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि इस मसले पर मुख्यमंत्रियों से परामर्श ली जाएगी और इससे संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. इस बीच, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर मतविभाजन के लिए जोर दिया लेकिन उसके संशोधनों को उप सभापति से मंजूरी नहीं मिली.
संशोधनों पर सदन में मौजूद 94 सदस्यों में से 84 सदस्य सरकार के पक्ष में थे. सदन से पहले ही बहिर्गमन कर जाने से राजग एवं वाम पार्टियों के सदस्य वहां उपस्थित नहीं थे.