एंट्रिक्स-देवास सौदे पर विचार करने के लिए इसरो द्वारा गठित समिति ने संस्थान के पूर्व प्रमुख जी. माधवन नायर और तीन अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों को जिम्मेदार ठहराया है. इससे पहले माधवन समेत इन अधिकारियों के किसी भी सरकारी पद पर नियुक्ति पर रोक लगाई जा चुकी है.
पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा की अध्यक्षता में एक समिति ने रिपोर्ट तैयार की है जिसके मुताबिक एंट्रिक्स.देवास सौदे में पारदर्शिता की कमी थी. समिति ने नायर, ए. भास्करनारायणन, के.आर. श्रीधर मूर्ति और के.एन. शंकर के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है. ये सभी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. एंट्रिक्स इसरो की व्यावसायिक इकाई है.
सौदे की जांच के लिए गठित पांच सदस्यीय उच्चस्तरीय दल ने शनिवार रात सार्वजनिक हुई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न केवल गंभीर प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक त्रुटियां हुईं बल्कि कुछ लोगों की ओर से दोषपूर्ण रवैये की बात सामने आती है जिसके अनुरूप कार्रवाई के लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए.
प्रत्यूष सिन्हा की अगुवाई में पिछले साल 31 मई को समिति का गठन किया गया था. समिति ने कहा कि सौदे के लिए देवास का चयन करने से लगता है कि पारदर्शिता और जरूरी सोच.विचार की कमी रही.
रिपोर्ट के अनुसार मंजूरी की प्रक्रिया केंद्रीय मंत्रिमंडल और अंतरिक्ष आयोग को अधूरी तथा गलत जानकारी देने से भी जुड़ी है. एंट्रिक्स-देवास समझौता 28 जनवरी, 2005 को हुआ था लेकिन 27 नवंबर, 2005 के नोट में अंतरिक्ष आयोग या कैबिनेट में इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी. उक्त नोट में सहमति के तहत बनाये जाने वाले जीसैट 6 उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए अनुमति मांगी गयी थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एंट्रिक्स-देवास करार की शर्तें काफी हद तक देवास के पक्ष में थीं. रिपोर्ट के मुताबिक, सहमति की शर्तों में कहा गया है कि उपग्रह की विफलता की स्थिति में जोखिम पूरी तरह अंतरिक्ष विभाग उठाएगा.
इसमें यह भी कहा गया है कि हैरानी की बात है कि मध्यस्थता के उद्देश्य से देवास को अंतरराष्ट्रीय ग्राहक माना गया है जबकि अनुबंध में इसका पंजीकृत पता बैंगलोर में दिखाया गया है. रिपोर्ट इस बात को भी उजागर करती है कि एंट्रिक्स-देवास सौदे के लिए अंतरिक्ष विभाग और वित्त मंत्रालय के कानूनी प्रकोष्ठों से कोई मंजूरी नहीं ली गयी जैसा कि भारत सरकार के किसी विभाग द्वारा कोई अंतरराष्ट्रीय करार करने के लिए अनिवार्य है.
इसमें कहा गया है कि इनसैट निगम समिति (आईसीसी) से परामर्श किये बिना देवास के लिए जीसैट की क्षमता चिह्नित कर दी गयी, जो कि सरकारी नीति का स्पष्ट उल्लंघन है.
समिति की रिपोर्ट कहती है कि इस बात के सबूत हैं कि प्रायोगिक परीक्षणों पर विचार करते समय तकनीकी परामर्श समूह (टीएजी) को एंट्रिक्स-देवास करार के बारे में नहीं बताया गया. इसमें कहा गया है कि इस सेवा को देने के लिए अन्य संभावित साझेदारों का पता लगाने का प्रयास तक नहीं किया गया जबकि कुछ अन्य देशों में भी इस तरह की सेवा उपलब्ध है.
रिपोर्ट के अनुसार, सैटकॉम नीति और आईसीसी दिशानिर्देशों में पहले आओ.पहले पाओ की तर्ज पर उपग्रह की क्षमता के लिए पट्टे की अनुमति देने के मद्देनजर देवास का चयन करने में आशय का स्पष्टीकरण नहीं करने में पारदर्शिता की कमी दिखाई देती है.
समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा जानबूझकर किया गया लगता है कि जीसैट-6ए उपग्रह के लिए अंतरिक्ष आयोग से मंजूरी पत्र मांगते समय भी सौदे का खुलासा नहीं किया गया. समिति ने चार अन्य वैज्ञानिकों के विरुद्ध भी कार्रवाई का प्रस्ताव रखा है, जिनमें एस.एस. मीनाक्षीसुंदरम, वीणा राव, जी. बालचंद्रन और आर.जी. नाडादुर हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, इन्हें सौदे के ब्यौरे पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने के साथ इस बात का भी जिम्मेदार ठहराया गया है कि सक्षम प्राधिकारों के फैसले के लिए रखे गये अनेक नोटों में सभी जरूरी विवरण और इनके अनेक जरूरी परामर्श प्रक्रियाओं से गुजरने की बात सुनिश्चित नहीं की गयी.
प्रत्यूष सिन्हा समिति के गठन से पहले सरकार ने जनवरी, 2005 में हुए एंट्रिक्स-देवास करार के तकनीकी, व्यावसायिक, प्रक्रियात्मक और वित्तीय पहलुओं की समीक्षा के लिए 10 फरवरी, 2011 को उच्चाधिकार प्राप्त समीक्षा समिति बनाई थी, जिसमें सदस्यों के रूप में बी.के. चतुर्वेदी और रोद्दम नरसिम्हा शामिल थे.