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लोकतंत्र की जड़ें ना हिलें: राष्‍ट्रपति प्रतिभा पाटील

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने देश के 63वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, ‘संस्थाओं में सुधार करते समय हमें इस बात से सतर्क होना पड़ेगा कि खराब फलों को गिराने के लिए पेड़ को इतना भी न हिला दिया जाए कि पेड़ ही नीचे आ गिरे.’

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प्रतिभा पाटिल
प्रतिभा पाटिल

हर बात पर शंका करने की प्रवृत्ति पर चिन्ता का इजहार करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने कहा कि हो सकता है हमारी संस्थाएं दोषरहित न हों लेकिन इन संस्थाओं ने कई चुनौतियों का सामना किया है और इनमें किसी तरह का बदलाव लाने के लिए पूरी सतर्कता बरतना आवश्यक है.

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राष्ट्रपति ने देश के 63वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, ‘संस्थाओं में सुधार करते समय हमें इस बात से सतर्क होना पड़ेगा कि खराब फलों को गिराने के लिए पेड़ को इतना भी न हिला दिया जाए कि पेड़ ही नीचे आ गिरे.’

उन्होंने कहा कि अल्पकालिक दबाव होंगे लेकिन इस प्रक्रिया में दीर्घकालिक लक्ष्यों से नजर नहीं हटनी चाहिए. हमें महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एजेंडा पर मिल जुलकर काम करना चाहिए. प्रतिभा पाटिल ने कहा कि भारत अपने लोकतांत्रिक रिकार्ड को लेकर गौरव कर सकता है लेकिन जैसा कि किसी भी सक्रिय लोकतंत्र में होता है, उसे दबावों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण पहलू नजरियों की अभिव्यक्ति है. अनवरत वार्ता की यह प्रक्रिया इस प्रकार चलनी चाहिए कि हम एक दूसरे को सुनने के लिए तैयार रहें. जो लोग लोकतंत्र में भरोसा करते हैं, उन्हें अन्य लोगों के नजरिए के तर्क को देखना चाहिए.

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राष्ट्रपति ने कहा कि हम अकसर तत्परता से दूसरों को दोषी ठहरा देते हैं लेकिन सकारात्मक जवाब नहीं दे पाते. ऐसा लगता है कि हर चीज पर शंका करने की प्रवृत्ति सी हो गयी है. क्या हमें अपनी जनता और संस्थाओं की क्षमता में आस्था नहीं है. क्या हम अपने ही बीच अविश्वास का जोखिम उठा सकते हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण बड़े संयम और कुर्बानियों से होता है और भारत जैसे विशाल देश के लिए फूट नहीं बल्कि एकता ही सही रास्ता है.

प्रतिभा पाटिल ने कहा कि सभी मुद्दों का समाधान वार्ता के जरिए होना चाहिए और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. नकारात्मकता और अस्वीकार्यता अपनी नियति की ओर बढते एक गतिशील देश का रास्ता नहीं हो सकतीं. उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हमारी संस्थाएं दोषरहित न हों लेकिन इन संस्थाओं ने कई चुनौतियों का सामना किया है. हमारी संसद ने नयी राहें निकालने वाले कई कानून बनाये. हमारी सरकारों ने जनता की प्रगति और कल्याण के लिए योजनाएं बनायीं. हमारी न्यायपालिका की एक सम्मानजनक स्थिति है और हमारे मीडिया ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

राष्ट्रपति ने कहा कि सभी संस्थाएं एक ही राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मिलकर काम कर रही हैं इसीलिए सकारात्मक उर्जा का संचार होगा. उन्होंने उम्मीद जतायी कि देश हित की भावना, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा होगी और अलग अलग पक्षों के बीच समाधान निकलेगा. इससे हमारे लोकतंत्र की जडें और देश की आधारशिला मजबूत होगी.

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प्रतिभा पाटिल ने कहा कि हमारा साझा भविष्य है और हमें भूलना नहीं चाहिए कि इस भविष्य को तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम जिम्मेदारी की भावना और एकता का परिचय दें. राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान हमारा दिशासूचक होना चाहिए और उससे राष्ट्रनिर्माण का मार्गदर्शन मिलना चाहिए. ‘यही हमारे लोकतंत्र का घोषणापत्र है. यही वह दस्तावेज है जो हर नागरिक को व्यक्तिगत आजादी की गारंटी देता है. यही वह आधार है, जिस पर देश की संस्थाएं बनायी गयीं और जिससे उन्हें अधिकार और कार्यप्रणाली हासिल हुई.’

उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पर आगे बढ़ने के लिए काफी जोरदार कार्य करने की आवश्यकता है ताकि त्वरित आर्थिक एवं टिकाउ विकास हासिल हो सके. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता गरीबी, भूख और कुपोषण, रोग और निरक्षरता मिटाना होनी चाहिए. सभी सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन प्रभावशाली ढंग से होना चाहिए. सेवाएं प्रदान कर रही एजेंसियों में कर्तव्य को लेकर जबर्दस्त भावना होनी चाहिए और उन्हें पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त, समयबद्ध तथा जवाबदेही वाले ढंग से कार्य करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो पेचीदा और चुनौती भरी है. वैश्वीकरण की ताकतों ने परस्पर जुडी और एक दूसरे पर आश्रित दुनिया तैयार की हैं. कोई देश अलग थलग नहीं है. हर मुल्क बाहरी घटनाक्रम से लगातार प्रभावित हो रहा है.

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प्रतिभा पाटिल ने कहा कि सभी देश चाहे विकसित हों या विकासशील, किसी न किसी रूप में वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और बेरोजगारी एवं महंगाई के प्रभाव का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जनता की आकांक्षाएं बढ़ रही हैं और यह तत्काल समाधान की उम्मीदों से जुड़ी होती हैं. हम देख रहे हैं कि सूचना की दुनिया में क्रान्ति हुई है और नयी से नयी प्रौद्योगिकीय खोजें हो रही हैं. इन्होंने जीवनशैली को बदल दिया है और भौतिकवाद की इच्छा बढ़ रही है. ये सवाल निरंतर बना हुआ है कि विकास और संसाधनों को किस तरह से अधिक से अधिक बराबरी के आधार पर बांटा जा सके.

प्रतिभा पाटिल ने कहा कि भारत के लिए यही सीख होगी कि कैसे एक प्राचीन सभ्‍यता और एक युवा राष्ट्र ऐसे आगे बढ़े कि अपनी नियति हासिल कर सके. उन्होंने कहा कि हम एक ऐसा भारत चाहते हैं, जिसमें बराबरी और न्याय हो. हम लोकतंत्र, कानून के राज और मानव मूल्यों को एक मजबूत राष्ट्र बनाने के रूप में देखते हैं. हम अपनी जनता में वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय नजरिया चाहते हैं. हम भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखते हैं, जो वैश्विक मंच पर नैतिक बल को बढ़ावा देता रहे.

राष्ट्रपति के मुताबिक वह मानती हैं कि भारत के इस नजरिये के पीछे एकता है लेकिन कभी-कभी विपरीत दबावों के चलते ध्यान भटक जाता है. ‘हमें अपने देश और इसकी जनता के निर्माण में कैसे आगे बढ़ना है? मुझे लगता है कि जवाब हमारे प्राचीन मूल्यों, आजादी के आंदोलन के आदशों, संविधान के सिद्धांतों के साथ-साथ हमारी एकता, सकारात्मक नजरिये और विकास करने की अकांक्षा में छिपा है.’

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उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति का लक्ष्य ऐसा माहौल प्रोत्साहित करना है, जो इसके सामाजिक आर्थिक बदलाव के लिहाज से अनुकूल हो. उन्होंने कहा कि हम दुनिया के सभी मुल्कों के साथ सहयोग और दोस्ती का पुल बनाना चाहते हैं. वैश्विक चुनौतियों का जवाब हासिल करने के लिए हम अंतररष्ट्रीय समुदाय के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ना चाहते हैं. भारत की भूमिका और स्तर लगातार बढ़ रहा है और हमारा देश दुनिया के देशों के दर्जे की सीढ़ी पर ऊपर चढ़ता जा रहा है.

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा भूतकाल भविष्य के लिए अनिवार्य मार्गदर्शक बनता है. इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की पंक्तियों का स्मरण किया, जिसका आशय है कि हर महान आदमी अपने इतिहास को इतना मूल्यवान इसलिए बनाकर रखता है कि उसमें न सिर्फ यादें बल्कि उम्मीदें भी हों ताकि भविष्य की तस्वीर बन सके. भारत का भूतकाल शानदार रहा है और ऐसा ही भविष्य भी होना चाहिए.

कृषि क्षेत्र के बारे में उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसका अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ एकीकरण अभी अपर्याप्त है. हमें साझेदारी के मॉडल को देखने की जरूरत है. किसानों की उद्योग के साथ और विभिन्न गतिविधियों में अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ साझेदारी ताकि न सिर्फ उत्पादन बढ़े बल्कि किसानों को लाभ भी हो. राष्ट्रपति ने कहा कि उनका मानना है कि महिलाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा में पूर्ण रूप से जोड़ा जाना चाहिए. इसका महिला सशक्तीकरण का स्थिर सामाजिक ढांचा तैयार करने में बड़ा प्रभाव पड़ेगा.

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