भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल विधेयक एक बार फिर और टल गया क्योंकि भारी हंगामे के बीच राज्यसभा ने इस चर्चित विधेयक को सदन की 15 सदस्यीय प्रवर समिति के पास भेज दिया जो अगले मानसून सत्र के आखिरी हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगी.
भाजपा, बसपा, सपा, वाम सहित विभिन्न दलों ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव का समर्थन किया. प्रवर समिति में विपक्ष के नेता अरूण जेटली, भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी, भूपिन्दर यादव, कांग्रेस के शांताराम नाइक, सत्यव्रत चतुर्वेदी, जदयू के शिवानंद तिवारी, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, माकपा के के एन बालगोपाल, राकांपा के डी पी त्रिपाठी, अन्नाद्रमुक के वी मैत्रेयन और मनोनीत अशोक गांगुली भी शामिल हैं.
राजद के रामकृपाल यादव सहित कुछ सदस्यों ने प्रवर समिति में एक भी महिला सदस्य या छोटी पार्टी के सदस्यों को नहीं रखे जाने पर विरोध जताया.
उच्च सदन में कार्मिक मामलों के राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने जब यह विधेयक चर्चा और पारित करने के लिए रखा तो सदन में लगभग वही नजारा था जो पिछले साल 29 दिसंबर को देखने को मिला था. हालांकि विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द करने का प्रस्ताव पारित हुआ लेकिन 29 दिसंबर 2011 को लंबी चर्चा और भारी हंगामे के बावजूद आधी रात को एकाएक सदन को स्थगित किए जाने से यह विधेयक पारित नहीं हो पाया था.
नारायणसामी ने 29 दिसंबर के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि विधेयक पर लंबी चर्चा हुयी थी और सदस्यों ने 197 संशोधन पेश किए थे. उस रोज वह अपना जवाब पूरा नहीं कर पाए थे.
उन्होंने कहा कि इस बीच प्रधानमंत्री ने राजनीतिक दलों के साथ चार बैठकें की ताकि लोकपाल विधेयक पर आम सहमति तैयार बने. प्रधानमंत्री ने उच्च सदन में विभिन्न दलों के नेताओं की 23 मार्च को बैठक बुलायी थी. इस बैठक में मतभेद काफी हद तक कम हुए थे.
नारायणसामी ने कहा कि लोकपाल विधेयक पर चार प्रमुख मुद्दों पर मतभेद हैं. इनमें विभिन्न वर्ग के कर्मचारियों को शामिल करने, सिटीजन चार्टर, लोकपाल की नियुक्ति एवं उसको हटाना तथा जांच एवं अभियोजन से संबंधित मुद्दे शामिल हैं.
नारायणसामी अपनी बात पूरी कर पाते, इस बीच सपा के नरेश अग्रवाल ने प्रस्ताव किया कि विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाए. उन्होंने इसके लिए विभिन्न दलों के 15 सदस्यों के नामों की भी पेशकश की.
अग्रवाल के इस प्रस्ताव के बाद सदन में भारी हंगामा शुरू हो गया. भाजपा के राजीव प्रताप रूडी, रविशंकर प्रसाद, वीपी सिंह बदनौर, माकपा के सीताराम येचुरी आदि सदस्यों ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए इस बात पर गहरी आपत्ति जतायी कि इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव कोई सदस्य कैसे कर सकता है. इन सभी सदस्यों का कहना था कि यदि ऐसा कोई प्रस्ताव लाना था तो वह सरकार की ओर से आना चाहिए था.
इसके जवाब में संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने भी विभिन्न नियमों का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी सदस्य संशोधन के जरिए इस तरह का प्रस्ताव कर सकता है.
इस बीच विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने कहा कि सरकार ने रविवार शाम ही संशोधित विधेयक सदस्यों को वितरित किया है और सोमवार को इसे सदन में लाया गया. उन्होंने कहा कि 1960 के दशक से लोकपाल के गठन को टाला जा रहा है. उन्होंने कहा कि आज संसदीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुयी है.
जेटली ने 29 दिसंबर 2011 को याद करते हुए कहा कि उस दिन सदन लोकपाल विधेयक पर निर्णय के बेहद करीब पहुंच गया था. विधेयक पर 197 संशोधन अवश्य दिए गए थे लेकिन मुख्य विरोध चार मुद्दों को लेकर था. उन्होंने कहा कि यदि उस दिन मत विभाजन होता तो विपक्ष के कुछ संशोधन पारित हो जाते.
उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा कि वह सदन और देश के सामने स्पष्ट करें कि सरकार लोकपाल बनाना चाहती है या नहीं. उन्होंने कहा कि पूरा बजट सत्र निकल गया लेकिन सरकार उस समय विधेयक लेकर आयी जब सत्र खत्म होने में एक दिन बच गया है.
जेटली ने कहा कि सरकार जो संशोधित विधेयक लायी है वह लोकायुक्त के मामले में राज्यों के लिए एक ‘मॉडल’ कानून की तरह होगा. उन्होंने कहा कि सरकार को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि जब तक दो राज्यों की विधानसभाओं से ऐसा प्रस्ताव नहीं आए तब तक वह मॉडल कानून नहीं बना सकती.
उन्होंने कहा कि सरकार इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भी भेज सकती है लेकिन इस बारे में उसे स्वयं आगे आकर प्रस्ताव करना चाहिए.
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि सरकार को यह विधेयक जल्दबाजी में नहीं पारित करना चाहिए और उसे सभी दलों की इस बारे में राय लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए.
मायावती ने भी कहा कि सरकार को किसी सदस्य के प्रस्ताव की बजाए स्वयं पेशकश करनी चाहिए कि विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाए.
राजद के रामकृपाल यादव ने कहा कि लोकपाल विधेयक के जरिए जनतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने इस बात पर आपत्ति जतायी कि प्रवर समिति में एक भी महिला, अल्पसंख्यक, छोटे दल के सदस्य को नहीं रखा गया है.
विभिन्न दलों के सदस्यों द्वारा जतायी गयी राय के बाद नारायणसामी ने इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि समिति की रिपोर्ट मानसून सत्र के आखिरी हफ्ते के पहले दिन सौंपी जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार इस समिति में उन्हीं सदस्यों को रखने का प्रस्ताव करती है जिनका सपा सदस्य ने पूर्व में प्रस्ताव किया था.