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'ममता' के आगे झुकी नार्वे सरकार, चाचा के पास रहेंगे बच्चे

नार्वे के बाल कल्याण अधिकारियों द्वारा माता-पिता से अलग किये गये भारतीय बच्चों की कठिनाईयां जल्द ही खत्म हो सकती हैं क्योंकि भारत और नार्वे के बीच समझौते के तहत उन्हें कोलकाता के उनके चाचा को सौंपा जाना है.

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नार्वे के बाल कल्याण अधिकारियों द्वारा माता-पिता से अलग किये गये भारतीय बच्चों की कठिनाईयां जल्द ही खत्म हो सकती हैं क्योंकि भारत और नार्वे के बीच समझौते के तहत उन्हें कोलकाता के उनके चाचा को सौंपा जाना है.

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आठ महीने से चल रहा गतिरोध तब खत्म हो गया जब समझौता हुआ कि तीन वर्षीय अभिज्ञान और उसकी एक वर्ष की बहन ऐश्वर्या को उनके चाचा अरूणाभाश को सौंपा जाएगा जो कोलकाता में रहते हैं. अरूणाभाश ने कहा, ‘मैं मीडिया का धन्यवाद करता हूं. मैंने समझौता और शर्तों को नहीं देखा है.’ उन्होंने कहा कि वह बच्चों को वापस लाएंगे. बच्चों के नाना अजय भट्टाचार्य ने भी समझौते की खबर पाकर खुशी जाहिर की. भावुक अजय ने कहा, ‘मैं काफी खुश हूं.’

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि नार्वे में दूतावास के माध्यम से भारत सरकार, नार्वे नगर निगम, नार्वेजियन चाईल्ड सर्विसेज, अभिभावक (अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य) और उनके वकील के बीच हुए समझौते में अनुरूप के भाई को दोनों बच्चों की देखभाल के लिये नामित किया गया. सूत्रों ने कहा कि समझौते में कहा गया कि चाचा अरूणाभाश अभिभावकों की इच्छा पर सहमत हो गये हैं और जिम्मेदारी से भी अवगत हैं. वह बच्चों की देखभाल करेंगे.

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सूत्रों ने कहा कि बारनेवारने (नार्वेजियन चाईल्ड वेलफेयर सर्विसेज) ने इसे मंजूरी दे दी है और बच्चों को उनके चाचा को देने पर राजी हो गया है. सूत्रों ने कहा कि कोलकाता में रहने वाले अरूणाभाश जल्द ही नार्वे रवाना होंगे और उनकी यात्रा का सभी खर्च सरकार उठाएगी. बहरहाल समझौते के तहत अभिभावकों के पास अब भी उनकी देखभाल और उनको देखने जाने का अधिकार है.

सूत्रों ने कहा कि कोई भी सूचना मांगने पर परिवार और बाल कल्याण मंत्रालय को जानकारी उपलब्ध करानी होगी. अभिज्ञान और ऐश्वर्या को बारनेवारने पिछले वर्ष मई में एहतियातन देखभाल के लिये ले गया था जिसने दावा किया कि बच्चों का अभिभावकों से भावनात्मक अलगाव हो गया है और नार्वे की स्थानीय अदालत के निर्देश के मुताबिक उन्हें पालन पोषण करने वाले केंद्र में रख दिया गया था. भट्टाचार्य ने कहा कि इसके लिये सांस्कृतिक गलतफहमी जिम्मेदार है.

नार्वे के अधिकारियों ने बच्चों को हाथ से खिलाने और अभिभावकों के शयन कक्ष में ही सुलाने पर आपत्ति जताई थी. जो अन्य कारण बताये गये थे उनमें अच्छे खिलौने और कपड़े ना होना तथा घर में बच्चों के खेलने के लिये अपर्याप्त जगह जैसी बातें गिनाई गईं. प्रवासी दंपति इसलिए भी त्वरित समाधान चाहते थे क्योंकि मार्च में उनका नार्वे का वीजा खत्म हो रहा था. उन्होंने कहा कि उसके बाद वहां कानूनी लड़ाई लड़ना काफी कठिन हो जाता.

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परिवार के आग्रह पर विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने नार्वे के विदेश मंत्री से बात की और उनसे ‘आसान एवं त्वरित’ समझौते का आग्रह किया था. भारत ने नार्वे के विदेश मंत्रालय से चिंता जताई थी कि बच्चों को उनकी जातीय, धार्मिक और भाषायी संस्कृति से दूर कर दिया गया. नार्वे के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘मेरा मानना है कि कूटनीतिक दबाव से मदद मिली है.’ दंपति नार्वे की राजधानी से करीब 500 किलोमीटर दूर स्टावेंजर में रह रहे थे. अनुरूप अमेरिकी कंपनी हेलीबर्टन में भू वैज्ञानिक के रूप में काम करते हैं.

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