महंगाई और ऊंची ब्याज दरों का असर अब औद्योगिक उत्पादन गतिविधियों में स्पष्ट दिखाई देने लगा है. वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू मांग कमजोर पड़ने से अक्तूबर माह में औद्योगिक उत्पादन में पिछले साल इसी माह के उत्पादन की तुलना में 5.1 फीसदी की गिरावट आ गई.
देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में पिछले साल अक्टूबर में जहां 11.3 प्रतिशत की धमाकेदार वृद्धि दर्ज की गई थी वहीं इस साल अक्टूबर में यह 5.1 प्रतिशत घट गया. यह गिरावट पिछले दो साल में सर्वाधिक है. इस साल जुलाई से ही औद्योगिक उत्पादन की चाल काफी धीमी पड़ गई थी. सितंबर 2011 में इसमें मात्र 1.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी जबकि अगस्त में 4.1 प्रतिशत वृद्धि रही थी.
गिरावट की सबसे बड़ी वजह विनिर्माण और खनन क्षेत्र का कमजोर प्रदर्शन रहा है. यूरो क्षेत्र और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सुस्ती के साथ साथ घरेलू बाजार में उंची ब्याज दरों की वजह से भी औद्योगिक क्षेत्र में गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.
औद्योगिक उत्पादन घटने और मुद्रास्फीति में नरमी, विशेषतौर से खाद्य मुद्रास्फीति नीचे आने के बाद यह माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक अब मुख्य नीतिगत दरों में कमी लायेगा. यहां यह उल्लेखनीय है कि महंगाई पर अंकुश लगाने के लिये रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद से 13 बार प्रमुख नीतिगत दरों (रेपो और रिवर्स रेपो) में वृद्धि कर चुका है. बहरहाल, माना जा रहा है कि आगामी 16 दिसंबर की मध्य तिमाही समीक्षा में केन्द्रीय बैंक इस मामले में कुछ राहत देगा.
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन ने औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने कहा, ‘औद्योगिक उत्पादन वृद्धि में कुछ कमी की तो उम्मीद की जा रही थी लेकिन इसमें सीधे गिरावट आयेगी इसकी उम्मीद नहीं थी.’ मौद्रिक नीति के बारे में रंगराजन ने कहा कि रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति पर गौर करना होगा. ‘यदि मुद्रास्फीति का रुझान स्पष्ट तौर पर गिरावट की तरफ संकेत करेगा तो फिर नीतिगत कारवाई के बारे में विचार हो सकता है.’ औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े आने के बाद बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 343 अंक टूट गया. औद्योगिक उत्पादन में इससे पहले जून 2009 में 1.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई. खनन क्षेत्र में अक्तूबर में उत्पादन पिछले साल अक्तूबर की तुलना में 7.2 प्रतिशत घट गया. विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन सूचकांक में भी छह प्रतिशत की गिरावट रही.
उल्लेखनीय है कि इस सूचकांक में विनिर्माण यानी कारखाना उत्पादन का 75 प्रतिशत तक का भारांश है. पिछले साल अक्तूबर में खनन और विनिर्माण क्षेत्रों में क्रमश 6.1 प्रतिशत और 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्तूबर की अवधि में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि 3.5 प्रतिशत रही है जो कि पिछले वर्ष इसी अवधि में 8.7 प्रतिशत रही थी. अक्तूबर में सबसे ज्यादा गिरावट पूंजीगत सामान जैसे मशीनरी आदि के उत्पादन में 25.5 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई. एक साल पहले इसी महीने में यह 21.1 प्रतिशत बढ़ा था.
उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में भी अक्तूबर में 0.8 प्रतिशत की गिरावट रही. टिकाउ उपभोक्ता सामानों का उत्पादन भी 0.3 प्रतिशत घट गया. हालांकि, इन दोनों ही क्षेत्रों में पिछले साल अक्तूबर में क्रमश 9.3 और 14.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी ने कहा, ‘हमें लगता है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों को यथावत रखेगा. उन्हें मुद्रास्फीति के आंकडों पर कुछ समय नजर रखनी होगी और हमारा मानना है कि आईआईपी में गिरावट अगले कुछ महीनों तक जारी नहीं रहेगी, हालांकि वृद्धि का आंकडा कुछ कम रह सकता है.’ इकरा की अर्थशास्त्री आदिति नायर ने कहा, ‘औद्योगिक उत्पादन में अक्टूबर में 5.1 प्रतिशत की गिरावट उम्मीद से अधिक है. हालांकि, हाल के महीनों में निवेश और उपभोग वृद्धि में सुस्ती के संकेत रहे हैं.’
उद्योग जगत ने भी औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट को उद्योगों के लिये गंभीर बताया है. भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा, ‘यदि यह रुझान जारी रहा तो आने वाले महीनों में रोजगार और रोजीरोटी पर बुरा असर पड़ सकता है.’ सीआईआई महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, ‘इस स्थिति से निपटने के लिये निवेश बढाने के लिये हर संभव उपाय किये जाने चाहिये. ढांचागत क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों की परियोजनाओं को तैयार रखा जाना चाहिये. ब्याज दर वृद्धि रुकनी चाहिये और इसमें कमी लाई जानी चाहिये. इसके साथ ही वित्तीय स्थिति में सुधार होना चाहिये ताकि प्रभावी ब्याज दर को कम करने में मदद मिल सके.’