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ओलंपिक की उल्‍टी गिनती: जंग सोना पाने की

अपने खेल के महारथी बता रहे हैं 2012 के ओलंपिक खेलों से जु़ड़ी अपनी उम्मीदों और विचारों के बारे में.

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एथलेटिक्स  पी. टी उषापी. टी उषा
भारत की दिग्गज एथलीटों में से एक, 1986 के लॉस एंजिलिस ओलंपिक में वे सेकंड के 1/100वें हिस्से से कांस्य से चूक गई थीं.
''मैं सिर्फ दो ही एथलीटों में उम्मीद की किरण देखती हूं: लॉन्ग जंप और ट्रिपल जंप में मयूखा जॉनी और 800 मी में टिंटू लुका. जुलाई में जापान के कोबे में हुई 19वीं एशियन एथलेटिक्स मीट में मयूखा ने स्वर्ण पदक जीता था. 14 मी को पार करने वाली वे पहली भारतीय हैं और उन्होंने ट्रिपल जंप का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाते हुए कांस्य पदक हासिल किया. वे लंदन में पदक जीत सकती हैं. टिंटू कोबे में बहुत ही बेहतरीन ढंग से दौड़ी थीं लेकिन फिटनेस संबंधी दिक्कत के चलते वे मामूली अंतर से रजत पदक गंवा बैठी थीं. उनकी टांग की मांसपेशी में क्लॉट था. उन्हें तीन महीने तक आराम करना पड़ा और अब वे ठीक हो चुकी हैं. मुझे लगता है यही वह समय है जब भारत को अपना ओलंपिक स्कूल स्थापित करना चाहिए जिससे संभावित विजेता तैयार हो सकें. पूरे देश से 'सुपर किड्स' चुने जाएं और उन्हें विश्वस्तरीय प्रशिक्षण मिले. भारत प्रतिभाओं से भरा पड़ा है, जरूरत उन्हें तराशने की है.''

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गगन नारंगनिशानेबाजी गगन नारंग
राष्ट्रमंडल और एशियाई चैंपियन, म्युनिख 2010 में विश्व चैंपियनशिप में उन्हें तीसरा स्थान मिला था.
''मुझे नहीं लगता कि भारत में किसी को यह याद होगा कि मैंने राष्ट्रमंडल खेलों में चार पदक जीते थे. कोई मेरा जिक्र इसलिए कर सकता है कि मुझे राजीव गांधी खेल रत्न के लिए नामित किया गया था. हर चीज इस बात पर निर्भर करती है कि मैं अगले साल क्या करता हूं. मेरे लिए लंदन एक बड़ी चुनौती है. अगर पिछले साल चैंपियनशिप में मैने तीसरा स्थान हासिल नहीं किया होता तो चीजें कुछ और होतीं. उस समय मैं निजी कारणों से काफी तनाव में था. अब, मैं 2012 में ओलंपिक पदक को अपनी झेली में डालने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं. मैं जानता हूं मेरे लिए इसके क्या मायने हैं. एक बार मेरे पिता ने मुझे विश्वस्तरीय राइफल दिलाने के लिए घर तक बेच दिया था. यह मेरे लिए वाकई काफी मुश्किल भरा समय था. मैं उनके लिए जरूर ओलंपिक पदक जीतना चांगा. ओलंपिक सम्मान बेहतर प्रदर्शन करने के लिए खिलाड़ियों के वास्ते वाकई बड़ी प्रेरणा है. मैं पुणे में सख्त प्रशिक्षण ले रहा हूं और ऊंचा स्कोर हासिल करने के लिए मैंने खुद को पूरी तरह झेंक रखा है.''

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मुक्केबाजी  मेरी कोममेरी कोम
पांच बार विश्व चैंपियन, एशियन गेम्स में स्वर्र्ण पदक विजेता
''मैं उस समय बहुत दुखी थी जब मुझे 2010 के गुआंगझू एशियाई खेलों में तीसरा स्थान मिला. मुझे लगा मैं अपने देश को शर्मिंदा कर रही हूं. लेकिन चीन के हाइकोउ में एशियन कप (48 किग्रा) में स्वर्ण पदक ने लंदन ओलंपिक से पहले मेरा आत्मविश्वास बढ़ा दिया है. लंदन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहला मौका है जब महिला मुक्केबाजी को ओलंपिक में शामिल किया जा रहा है. यह मेरी अग्निपरीक्षा होगी. मैं नहीं चाहती मेरा परिचय पांच बार की विश्व चैंपियन कह कर दिया  जाए. बजाए इसके मैं ओलंपिक चैंपियन कहलाना चांगी. मेरे दोस्तों ने मुझ्से कहा कि वे मुझ्से बेहतरीन प्रदर्शन और दक्षता की उम्मीद रखते हैं  ताकि मैं स्वर्ण पदक जीत सकूं. महिला मुक्केबाजी का विकास पिछले डेढ़ दशक में हुआ है. लेकिन अब इसे ओलंपिक में शामिल कर लिया गया है, विकसित राष्ट्र जरूर ही इस खेल पर ध्यान केंद्रित करेंगे. पिछले साल बारबाडोस में 72 राष्ट्रों ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था. अन्य 20 देश ओलंपिक में अपने मुक्केबाजों को भेजेंगे. मैं उनके लिए पूरी तरह तैयार हूं.''

हॉकी  परगट सिंहपरगट सिंह
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान, वे 1980 के मॉस्को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे.
''खेल संबंधी उत्कृष्टता दीर्घकालिक तैयारी से आती है न कि अल्पकालिक तैयारी से. हमें जरूरत है निर्धारित तंत्र की. क्या ऐसा हो रहा है? जवाब है ''नहीं.'' यह जानने की जरूरत है कि हमें क्या करना चाहिएः कुछ कहते हैं 5-3-2 के फॉर्मेट में खेलना चाहिए, कुछ कहते हैं 3-3-1-2 के फॉर्मेट में. भारत को ऐसे कोच की जरूरत है जो संभावनाओं का विश्लेषण कर सके और लक्ष्य निर्धारित कर सकें. यहां मौजूद गड़बड़ी पर नजर दौड़ाएं. भारतीय हॉकी संघ (आइएचएफ) और हॉकी इंडिया आपस में लड़ रहे हैं, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है. दोनों ही आधिकारिक प्रतिनिधि होने का दावा कर रहे हैं. पांच खिलाड़ी शिविर छोड़कर जा चुके हैं, जिनमें कप्तान भी शामिल है. उन्हें कौन वापस लाएगा. आइएचएफ को इस बात का एहसास कब होगा कि ओलंपिक अब सिर पर हैं? इन परिस्थितियों में, हम उम्मीद कर रहे हैं कि भारत पदक जीतेगा. इसकी कोई संभावना नहीं है. बहुत बेहतर प्रदर्शन करें तो हम शीर्ष चार में पहुंच सकते हैं. यहां से खेल किसी का भी हो सकता है.''

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साथ में एम.जी. राधाकृष्णन और अरविंद छाबड़ा

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