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पीडीएस: कहीं मिसाल, कहीं बदहाल

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में छत्तीसगढ़-गुजरात मिसाल बने तो यूपी, दिल्ली, हरियाणा के आंकड़े दर्शा रहे दयनीय हालात.

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सार्वजनिक वितरण प्रणाली
सार्वजनिक वितरण प्रणाली

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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के मातोडीह गांव के निवासी 55 वर्षीय श्यामलाल साहू को दो साल पहले तक चावल लेने के लिए चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. उन्हें कई बार दुकान बंद होने से खाली हाथ लौटना पड़ता था. कभी दुकान खुली मिलती थी, तो सामान नहीं आया है, यह कहकर दुकानदार लौटा देता था.

लेकिन पेशे से मजदूर साहू कहते हैं, ''अब राशन दुकान न सिर्फ गांव में खुल गई है, बल्कि  जब चाहे तब राशन मिल जाता है. मैं नियमित तौर से चावल, गेहूं, केरोसिन तेल ले रहा हूं.'' दरअसल 'जहां चाह, वहां राह' की कहावत को छत्तीसगढ़ ने चरितार्थ किया है.

सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) भ्रष्टाचार का पर्याय मानी जाती है और पिछले तीन साल में देश भर से 503 शिकायतें मिली हैं, जिनमें सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम के बीच इसी साल महज अप्रैल-जून तक 66 शिकायतें मिल चुकी हैं. इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से 27, दिल्ली से 9, हरियाणा-राजस्थान से 6-6 शिकायतें शामिल हैं. जबकि महज दस साल पहले अस्तित्व में आए छोटे-से राज्य छत्तीसगढ़ ने एक बड़ी मिसाल पेश की है और इस साल यहां एक भी शिकायत नहीं मिली.

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देश भर में पीडीएस की करीब पांच लाख दुकानें हैं, जो 18 करोड़ परिवारों को लाभ पहुंचाने के मकसद से खोली गई हैं. विश्व की सबसे बड़ी अनाज वितरण योजना मानी जाने वाली पीडीएस पर सालाना 50,000 करोड़ रु. खर्र्च होते हैं. पर भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुकी पीडीएस में शिकायतों की आधिकारिक संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. साल 2008 में देश भर से 94 शिकायतें मिली थीं, तो 2009 में 169, 2010 में 174 और 2011 के शुरुआती तीन महीने में ही 66 शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं.

इनमें सबसे दयनीय हालात उत्तर प्रदेश के हैं, जहां तीन साल में 123 यानी देश की 25 फीसदी शिकायतें मिली हैं. कांग्रेस शासित राज्य दिल्ली से 101, हरियाणा से 41 और राजस्थान से 26 शिकायतें केंद्र सरकार को मिली हैं जबकि इसी दौरान भाजपा शासित राज्य गुजरात से महज आठ और छत्तीसगढ़ से 10 शिकायतें मिली हैं.

केंद्रीय खाद्य उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक राज्यों ने शिकायतों पर कार्रवाई भी की है. पिछले तीन साल में देश भर में कुल 28,22,384 जगहों का निरीक्षण किया गया, 5,54,432 जगहों पर छापे मारे गए और 18,045 लोगों को आरोपित किया गया. लेकिन इस कार्रवाई का कोई असर होता नहीं दिख रहा.

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दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ ने अपनी सभी 10,549 राशन दुकानों का डाटाबेस तैयार कर उन्हें सभी जिला खाद्य दफ्तरों को इंटरनेट से जोड़ ऐसा नेटवर्क बनाया है कि आम आदमी खुद निगरानी रख सके. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, ''मैं जब पहले ग्राम सुराज यात्रा पर जाता था, तो ज्यादातर शिकायतें पीडीएस को लेकर ही होती थीं. लेकिन इस बार एक भी शिकायत नहीं आई.''

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में केंद्र सरकार को भाजपा शासित राज्यों छत्तीसगढ़ और गुजरात को पीडीएस में मॉडल राज्य करार देते हुए देश भर में इस आधुनिक कंप्यूटरीकृत प्रणाली को लागू करने की सलाह दी है. अमूमन यह माना जाता है कि पीडीएस से भ्रष्टाचार के घुन को बाहर नहीं निकाला जा सकता. मगर छत्तीसगढ़ ने अपने खुद के संसाधन से तैयार सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के जरिए महज 23 करोड़ रु. में एक ऐसा नेटवर्क बना दिया, जिसकी आज चौतरफा तारीफ हो रही है. रमन सिंह कहते हैं, ''अब तक नौ राज्यों के प्रतिनिधि दौरा कर हमारे मॉडल को देख चुके हैं. हाल ही में ब्रिटेन की विपक्ष की नेता ने भी दो दिन रहकर इस योजना की बारीकियों को देखा.''

साफ है कि छत्तीसगढ़ का पीडीएस मॉडल राजनैतिक इच्छाशक्ति का उम्दा उदाहरण है. साल 2008 में कोटा उपचुनाव की हार ने रमन सिंह को ऐसा झ्कझेरा कि उन्होंने पीडीएस में बदलाव की ठान ली. तत्कालीन खाद्य सचिव डॉ. आलोक शुक्ल इस बदलाव के आर्किटेक्ट बने तो खाद्य आपूर्ति निगम के प्रबंध निदेशक गौरव द्विवेदी और एनआइसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक ए.के. सोमशेखर ने सहयोगी की भूमिका निभाई.

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जिन्होंने तीन मूल मंत्रों, पारदर्शिता, सामुदायिक भागीदारी और दोषियों को न बख्शना के साथ महज छह महीने के प्रयास में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की तस्वीर के साथ-साथ उपभोक्ताओं की तकदीर बदल दी.

तीनों अफसरों ने धान की उपज से लेकर पीडीएस के जरिए उपभोक्ता तक पहुंचने तक की प्रक्रिया के लिए वेबसाइट बनाकर पूरी खरीद प्रक्रिया को राज्य के सभी 1,577 खरीद केंद्र में कंप्यूटर लगवा इंटरनेट से जोड़ा. अब धान का वजन सॉफ्टवेयर में जाते ही बिल के साथ-साथ चेक स्वतः प्रिंट होकर आ जाता है. इस तरह मौके पर ही किसानों को भुगतान हो जाता है.

इस सिस्टम से स्टॉक की जानकारी अपडेट रहती है और उसे सड़ने से बचाने के लिए समय रहते ही सही जगह पर पहुंचा दिया जाता है. इस तरह की खरीद से राज्य सरकार को ब्याज की मद में हर हफ्ते खर्च होने वाली करीब 10-15 करोड़ रुपए की बचत भी होने लगी. नई प्रणाली के जरिए सब कुछ रिकॉर्ड में आने लगा और मिल मालिकों के लिए धान मीलिंग के वक्त लीकेज या किसी भी गड़बड़ी की संभावना खत्म हो गई.

पर तीसरे चरण में चावल को सार्वजनिक वितरण की दुकान तक पहुंचाने की चुनौती थी. माल लेकर ट्रक कहीं और न पहुंचे, इसलिए अब निगरानी का बीड़ा सरकार के साथ-साथ आम नागरिकों के हाथ में दिया गया. ट्रक रवानगी की सूचना संबंधित क्षेत्र के जितने लोगों को, जिन्होंने अपने मोबाइल नंबर पंजीकृत करा रखे हैं, एक एसएमएस के जरिए दे दी जाती है. ट्रक में जीपीएस सिस्टम लगाया गया है और ड्राइवर को आदेश है कि वह मोबाइल से ट्रक और उतरते हुए चावल की एमएमएस बनाएगा, जिसे फोटो सर्वर पर भेजेगा. इस सामुदायिक निगरानी ने पीडीएस को मजबूती दी. इस साल राज्य में 51 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई और किसानों को मौके पर सीधे 5,500 करोड़ का भुगतान किया गया.

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राज्य में 35 लाख बीपीएल परिवारों को लाभ पहुंचे, इसके लिए सभी राशन कार्डधारकों और  दुकानदारों के नाम वेबसाइट पर डाले गए. इस अभियान के तहत शुरुआत में ही 2,25,000 फर्जी राशनकार्ड पकड़े गए. पीडीएस संबंधित शिकायत दर्ज कराने के लिए एक टोल फ्री नंबर शुरू किया गया, जिससे शिकायत होने पर तय वक्त में निपटान की व्यवस्था है. इस योजना को साकार करने वाले डॉ. शुक्ल फिलहाल केंद्रीय चुनाव आयोग में उप चुनाव आयुक्त हैं.

वे कहते हैं, ''पहले साल ही करीब ढाई-तीन हजार शिकायतें आईं और सैकड़ों क्विंटल अनाज  जब्त कर 150 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया.'' उनके मुताबिक सरकार ने दोषियों की जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया, जिससे कई मामलों में हाइकोर्ट ने भी जमानत याचिका खारिज कर दी. निचले स्तर तक की नौकरशाही को जिम्मेदार बनाने और लोगों को भरोसा दिलाने के मकसद से महीने में एक दिन और आदिवासी इलाकों में हाट वाले दिन राशन दुकानों पर चावल उत्सव मनाने का अभियान शुरू हुआ. शुक्ल कहते हैं, ''चावल उत्सव के दिन ही 40 फीसदी अनाज का उठाव होने लगा और मौके पर लोगों की शिकायत दूर होने लगी.''

राज्य के इस ई-अभियान के लिए इस टीम को वर्ष 2008-09 के पीएम एक्सीलेंसी अवार्ड से भी नवाजा गया जिसने अप्रैल-मई  में काम शुरू कर पहली नवंबर 2008 से इसे लागू कर दिया. शुक्ल कहते हैं, ''पीडीएस के बारे में आम धारणा है कि इसे सुधारा नहीं जा सकता. लेकिन राजनैतिक इच्छाश्ाक्ति और प्रशासनिक कार्यक्षमता हो तो उसे सुधारना मुश्किल नहीं है.''  लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में वरिष्ठ उप निदेशक गौरव द्विवेदी कहते हैं, ''हर महीने स्टॉक में अनाज रख पाना चुनौती थी, लेकिन हमें लगा कि जब निजी क्षेत्र ऐसा कर सकता है तो सरकार किस मायने में कम है.''

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साफ है कि अगर राजनेता इच्छाशक्ति दिखाएं तो पीडीएस से भ्रष्टाचार के घुन का खात्मा किया जा सकता है. लेकिन जनता को भागीदारी निभानी होगी, तभी नेता और प्रशासन निष्ठा से फर्ज निभाने को मजबूर होंगे.
-साथ में संजय दीक्षित रायपुर में

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