पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने कहा है कि 9/11 हमले के बाद यदि उनके मुल्क ने अमेरिकी सैनिकों को अपनी सरजमीं से अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अभियान चलाने की इजाजत नहीं दी होती, तो उसे संभवत: ‘अमेरिका और भारत’ की संयुक्त सेना का सामना करना पड़ता.
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मुशर्रफ ने चीन की सरकारी सीसीटीवी के साथ दुबई में साक्षात्कार में कहा है, ‘मुझे बिल्कुल अफसोस नहीं है. मुझे लगता है कि यह बहुत सही फैसला था और यदि मुझसे इसी हालात के बारे में कहा गया होता तो मैं यही फैसला करता.’
उन्होंने कहा कि पूरे यकीन के साथ यह फैसला किया था कि तालिबान और उसकी विचारधारा पाकिस्तान के लिए उपयुक्त नहीं है. वह इस संभावना को लेकर भी चिंतित थे कि यदि अमेरिकी सैनिकों ने भारत से अफगानिस्तान में तालिबान पर हमला किया, तो इससे पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन होता.
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मुशर्रफ ने कहा, ‘अफगानिस्तान पर अमेरिका हमला करने जा रहा था, यह स्पष्ट था. वे कहां से हमला कर सकते थे? भारत से.. और भारत सभी तरह की सुविधाएं देने को तैयार था.’ मुशर्रफ ने कहा, ‘यदि अमेरिकी सैनिक भारत से आते और हम उनके साथ नहीं होते तो क्या हुआ होता? तब पाकिस्तान को अमेरिका और भारत का एक साथ मुकाबला करना पड़ता क्योंकि यदि वे पाकिस्तान होकर अफगानिस्तान जाते तो भूमि और वायु सीमा में हमारी संप्रभुता का उल्लंघन होता.’
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उन्होंने कहा, ‘इसलिए यह पाकिस्तान के हित में बिल्कुल नहीं था.’ अमेरिकी सैनिकों को पाकिस्तान से अभियान चलाने की इजाजत देते वक्त उन्होंने इस बात पर विचार किया कि तालिबान की तरफदारी करने से इसका पाकिस्तान पर क्या असर पड़ सकता है.
पूर्व सैन्य शासक ने कहा, ‘मैंने इस पर विचार किया कि तरफदारी करने या नहीं करने का क्या प्रभाव होगा. मेरे मन में पहला सवाल यही आया कि क्या हम पाकिस्तान का तालीबानीकरण चाहते हैं? क्या हम तालिबान के पक्ष में हैं? क्या हम पाकिस्तान में उस तरह की सरकार चाहते हैं? क्या इस्लाम पर हमारे विचार तालिबान की तरह ही हैं?
उन्होंने कहा, ‘मैं पाकिस्तान में तालिबान और तालिबान की विचारधारा नहीं चाहता इसलिए शुरूआती चरण में ही उसके साथ क्यों हो जाउं?’ इस संबंध में उनके फैसले से 35,000 नागरिकों की हत्या होने के चलते अपनी आलोचना किए जाने पर उन्होंने कहा कि आप जिस आंकड़े की बात कर रहे हैं, तो आप इसके ब्योरे में जाए.