ईसा के जन्म से लगभग 700 वर्ष पूर्व यूरोप महाद्वीप में और विशेष रूप से भूमध्यसागर के तट के देशों में जुपिटर देवता की पूजा लगभग सभी लोग करते थे. जुपिटर-पूजक अपने देवता को सर्वशक्तिमान मानते थे. यूरोप के लोगों का विश्वास था कि संसार के प्राणियों को जुपिटर की कृपा से ही सुख और शांति प्राप्त होती है और उसके कोप से दुष्टों का सर्वनाश हो जाता है. इसी कारण ये लोग जुपिटर की मूर्ति को कहीं सफेद संगमरमर की शांत और गंभीर मुद्रा में तथा हाथों में ज्वाला लिए रक्षक के रूप में और कहीं काले पत्थर की रौद्र रूप में बनवाते थे. यूनान और रोम में तो घर-घर में जुपिटर की पूजा होती थी.
किंतु फारस के आक्रमणकारियों ने यूनान देश की राजधानी एथेंस नगर के लगभग सभी देव-मंदिरों को तोड़ डाला अथवा आग लगा कर राख कर दिया था. इतना ही नहीं, इतना ही नहीं, उन्होंने एथेंस निवासियों को तलवार के घाट उतार दिया. आज भी इन नष्ट-भ्रष्ट पवित्र देव मंदिरों के खंडहरों के नीचे की भूमि राखदार मिलती है. इन युद्धों के समाप्त होने पर ऐथेंस-निवासियों ने अपनी सारी शक्ति लगाकर फिर से अपने देव-मंदिरों को बनाना प्रारंभ किया. इन मंदिरों को बनाने में एथेंस के शासक पैरीक्लीज, कारीगर इकटिनीस तथा संगतराश फिडियास का हाथ था.
इन महापुरुषों के प्रयास से ये देव-मंदिर इतने सुंदर बने कि आज तक संसार में इनकी जोड़ का कोई भी भवन नहीं बन सका. आज भी ऐथेंस के देव-मंदिर संसार के सर्वश्रेष्ठ भवन माने जाते हैं, किंतु ये भवन 1000 वर्ष तक देव-मंदिर रहे. इसके बाद 1000 वर्ष तक ईसाइयों के गिरजाघर और फिर तुर्क लोगों की मस्जिदें बनीं और अब तो ये संसार के सबसे बड़े खंडहरों के रूप में सुनसान पड़े हैं. संसार के कोने-कोने से आकर कुशल कारीगर और संतगराश इन देव-मूर्तियों द्वारा फिडियास की कार्य-कुशलता का अध्ययन करते हैं.
फिडियास का नाम ईसा के जन्म से लगभग 464 वर्ष पहले प्रसिद्ध होना आरंभ हुआ. ऐथेंस का शासक पैरीक्लीज उसका घनिष्ठ मित्र था और उसने फिडियास को ऐथेंस के सभी देव-मंदिरों, मूर्तियों तथा स्मारकों के बनाने का काम सौंप दिया था. फिडियास साधारण मनुष्य न था. वह प्राचीनकाल का सुविख्यात संगतराश था. यह विलक्षण व्यक्ति केवल अपने औजारों का प्रयोग करने की ही पूर्ण योग्यता न रखता था, उसे उन विषयों का भी पूर्ण ज्ञान था, जिनका उसके व्यवसाय से सबंध था, जैसे इतिहास, कविता, कल्पित कहानियां, रेखा-गणित, प्रकाश-विज्ञान आदि. सबसे पहले फिडियास ने ही यूनानी लोगों को प्रकृति का पूर्णतया अनुकरण करने की शिक्षा दी थी. यूनान निवासी इस अनुपम कलाकार के कार्यो और परामर्श का बड़ा सम्मान करते थे. उसने मिनर्वा देवी की बड़ी ही उत्कृष्ट मूर्ति का निर्माण किया था.
हाथी-दांत और सोने की बनी यह मूर्ति 39 फुट ऊंची है. इस मूर्ति में फिडियास ने देवी की ढाल पर अपना तथा अपने मित्र पैरीक्लीज का चित्र भी खोदा है और इसी के कारण ऐथेंस निवासी उसे ईर्ष्या करने लगे थे. अत: उन्होंने फिडियास पर यह दोषारोपण किया कि उसने देवी की मूर्ति के सामान का अपहरण किया है. फिडियास ऐथेंस-निवासियों के इस बुरे व्यवहार से दुखी होकर ओलिम्पिया चला गया. वहां जाकर उसने ओलिम्पिया के जुपिटर देवता की उस मूर्ति का निर्माण किया. वह कला की एक विलक्षण कृति थी और उसकी गणना संसार के सात आश्चर्यो में हुई. यह मूर्ति हाथी-दांत और स्वर्ण से 30 फुट ऊंची बनाई गई थी और इसके प्रत्येक भाग का अनुपात पूर्णतया ठीक था. इसका वैभव भी मंदिर के वैभव जैसा ही था. इसके सौंदर्य ने यूनान देश के धर्म को कहीं अधिक सौंदर्यपूर्ण बना दिया था. वह मूर्ति फिडियास की सर्वोत्कृष्ट कृति थी और इस मूर्ति के कारण ही संसार के इतिहास में फिडियास तथा यूनान देश का नाम सदा के लिए अमर हो गया.
ऐसे महान त्यागी और विद्वान कलाकार पर उसके देशवासियों ने दूसरी बार यह दोष लगाया कि फिडियास ने अपना तथा अपने मित्र पैरीक्लीज का चित्र देवी की मूर्ति की ढाल पर खोदकर घोर अधर्म किया है. कहते हैं, इस अपराध में फिडियास को बंदीघर में डाल दिया गया और वहीं ईसा के जन्म से 432 वर्ष पूर्व उसकी मृत्यु हो गई.