गरीबी रेखा तय करने के लिए अपनाई गई कार्य-पद्धति के लिए आलोचना का सामना कर रहा योजना आयोग जल्द ही एक तकनीकी समिति का गठन करेगा, जिसमें सभी मुद्दों पर गौर करने के लिए विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा.
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि समिति की घोषणा कुछ सप्ताहों में की जाएगी. उन्होंने प्रधानमंत्री के ग्रामीण विकास फेलोज कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा, 'हम उन मानदंडों पर काम कर रहे हैं, जिसके आधार पर समिति काम करेगी.'
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित समिति की सिफारिशों के आधार पर गरीबी रेखा तय होगी और 12वीं पंचवर्षीय योजना में नए मानदंड को ध्यान में रखा जाएगा.
अहलूवालिया ने कहा कि गरीबी रेखा तय करने के लिए बहुआयामी पद्धति अपनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा कि यह गरीबी रेखा केवल खपत से जुड़ी हुई है लेकिन गरीबी को सिर्फ खपत से नहीं मापा जा सकता, बल्कि यह इस पर निर्भर करेगा कि किसी के पास पानी का कनेक्शन, पक्का या कच्चा मकान है या नहीं तथा इसके अलावा आपके पास दो या तीन अन्य आयाम भी होने चाहिए.'
उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक क्षेत्र की विभिन्न सरकारी योजनाओं से गरीबी रेखा को नहीं जोड़ा गया है.
अहलूवालिया ने कहा, 'तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाई गई गरीबी रेखा को सरकारी योजना के तहत मिलने वाले लाभ से नहीं जोड़ा गया है और इससे केवल मापने का मकसद पूरा होगा तथा नीति की प्रभावकारिता को आंका जा सकेगा.'
आयोग के अनुसार, तेंदुलकर समिति के फार्मूले के आधार पर वर्ष 2009-10 में गरीबी का अनुपात घटकर 29.8 फीसदी हो गया है, जो 2004-05 में 37.2 फीसदी था.
उल्लेखनीय है कि आयोग की आलोचना तब होने लगी जब शहरों में प्रतिदिन 28.65 रुपये तथा ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिदिन 22.42 रुपये खर्च करने की क्षमता रखने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर माना गया.
अहलूवालिया ने स्पष्ट किया कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रति व्यक्ति 32 रुपये और 26 रुपये के खर्च का मानक सुझाया था.
योजना आयोग ने गरीबी की रेखा शहरों में प्रति परिवार (पांच सदस्यों वाला) 4,500 रुपये प्रति माह और गांवों में 3,900 रुपये प्रति माह प्रति परिवार का स्तर तय किया है.
उनके मुताबिक सरकार का मानना था कि गरीबी रेखा के ऊपर एक अत्यंत कमजोर तबका रहता है इसलिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम में 30 फीसदी गरीबों के साथ 15 फीसदी अतिरिक्त लोगों को जोड़ा गया.
उन्होंने कहा, 'इससे ऊपर के 35 फीसदी लोग साधारण लोग हैं. सिर्फ 20 फीसदी आबादी की स्थिति अच्छी है और ऊपर के सिर्फ एक फीसदी लोग ही समृद्ध हैं.'