प्रणब मुखर्जी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुनने के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद नीलम संजीव रेड्डी के अलावा आज तक इस शीर्ष संवैधानिक पद के लिए किसी प्रत्याशी के नाम पर आम सहमति नहीं बन सकी. 14वें राष्ट्रपति के लिए प्रणब और संगमा में सीधा मुकाबला हुआ जिसमें प्रणब मुखर्जी 3,97,776 मतों से विजयी रहे.
संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा कि विरोधाभासों के कारण उत्पन्न चुनौतियों का निपटारा करना किसी भी नेतृत्व के लिए अहम चुनौती होती है. विभिन्न राजनीतिक दलों को प्रणब के पक्ष में लाने में संप्रग को कामयाबी मिली है.
देश के प्रथम नागरिक के पद पर निर्वाचन की प्रक्रिया में शुरू से ही नागरिकों ने गहरी दिलचस्पी ली है. यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के लिए 1952 में संपन्न प्रथम चुनाव में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के अलावा चार अन्य प्रत्याशियों ने भी हिस्सा लिया. राष्ट्रपति पद के लिए 1957 में संपन्न दूसरे चुनाव में भी डा राजेन्द्र प्रसाद का मुकाबला दो अन्य उम्मीदवारों से हुआ था. 1962 में द्वितीय राष्ट्रपति डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चुनाव के समय भी दो अन्य उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे.
1967 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में 17 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जबकि राष्ट्रपति के पांचवें चुनाव के वक्त 15 प्रत्याशी मैदान में थे. राष्ट्रपति पद के चुनाव को अधिक गंभीर और महत्वपूर्ण बनाने के इरादे से पहली बार 1969 में गुप्त मतदान की व्यवस्था लागू की गई. यही नहीं, मतदान पत्रों के क्रमांक डालने का सिलसिला भी इसी चुनाव से शुरू हुआ था. देश की राजनीति में 1969 के राष्ट्रपति का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को इन्दिरा गांधी के प्रत्याशी वी वी गिरि ने बुरी तरह पराजित कर दिया था.
राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और चुनाव की वैधानिकता को अदालत में चुनौती दिये जाने जैसे तथ्यों के मद्देनजर सरकार ने निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर मार्च 1974 में राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति कानून, 1952 में संसद से संशोधन कराया और प्रस्तावक के रूप में कम से कम दस और अनुमोदक के रूप में भी इतने ही निर्वाचकों के हस्ताक्षर अनिवार्य कर दिया. यही नहीं, राष्ट्रपति के चुनाव को अदालत में चुनौती देने के संबंध में व्यवस्था की गई कि सिर्फ पराजित उम्मीदवार या कम से कम 20 निर्वाचकों के संयुक्त हस्ताक्षर से ही उच्चतम न्यायलय में चुनाव याचिका दायर की जा सकेगी.
इस प्रावधान के बाद चुनाव मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों की संख्या में कमी आयी. अगस्त 1974 में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में फखरुद्दीन अली अहमद का मुकाबला एकमात्र प्रत्याशी त्रिदिव चौधरी से हुआ जबकि 1977 में नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुन लिए गए थे.
नीलम संजीव रेड्डी के बाद 1982 में कांग्रेस के ज्ञानी जैल सिंह का मुकाबला सेवानिवृत्त न्यायाधीश एच आर खन्ना से हुआ था.
वर्ष 1987 में राष्ट्रपति के चुनाव ने उस समय रोचक मोड़ ले लिया जब कांग्रेस के आर वेंकटरमण और विपक्ष के न्यायमूर्ति वी कृष्ण अय्यर के अलावा एक निर्दलीय मिथिलेश कुमार का नामांकन पत्र भी सही पाया गया.
निर्दलीय मिथिलेश कुमार की स्थिति इतनी विचित्र थी कि चुनाव के दौरान एक बार वह मोती बाग में एक पेड़ के नीचे सो गए तो उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा घेरा डालना पड़ा. मिथिलेश कुमार को सुरक्षा कारणों से नयी दिल्ली इलाके में एक विशाल बंगला आवंटित किया गया था. इस बंगले में मिथिलेश कुमार के सोने के लिए एक बड़ी और मोटी दरी मुहैया करायी गयी थी.
इस चुनाव में हालांकि वेंकटरमण भारी मतों से विजयी हुए थे लेकिन मिथिलेश कुमार भी 2223 मत प्राप्त करने में सफल रहे थे. वेंकटरमण के सेवानिवृत्त होने पर 1992 में हुए चुनाव में कांग्रेस के डॉ. शंकर दयाल शर्मा के सामने विपक्ष के जी जी स्वेल, प्रख्यात वकील राम जेठमलानी और धरती पकड़ काका जोगिन्दर सिंह चुनाव मैदान में थे. इस चुनाव में जेठमलानी को 2704 और धरती पकड़ को 1135 मत मिले थे.
डॉ. शंकर दयाल शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के बाद से राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या में कमी आयी और इन चुनाव में दो प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला हुआ. जुलाई 1997 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी केआर नारायणन का मुकाबला पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन से हुआ जबकि 2002 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के चुनाव के समय वाम मोर्चा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान मे उतारा था.
देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को भी 2007 में चुनाव का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में उनका मुकाबला भाजपा के वरिष्ठ नेता भैरों सिंह शेखावत से हुआ था.