राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए सरगर्मी तेज हो गई जबकि संप्रग के प्रमुख घटक तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ इसपर चर्चा की और संकेत हैं कि कई अन्य पार्टियों की तरह उसे भी हामिद अंसारी या प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी पर कोई एतराज नहीं है.
राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मुकाबले का भाजपा का आह्वान और इस पद के लिए अंसारी तथा मुखर्जी की उम्मीदवारी पर उसके विरोध को कहीं से हिमायत नहीं मिली.
वामपंथी पार्टियों ने और यहां तक कि भाजपा के महत्वपूर्ण सहयोगी जद-यू ने साफ कर दिया कि उन्हें इन उम्मीदवारों की हिमायत करने पर कोई ऐतराज नहीं है और वे आमसहमति के लिए उत्सुक हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद भवन में गुरुवार सुबह इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ चर्चा की.
मुखर्जी भी इस चर्चा में शरीक हुए. सोनिया से जब राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम पर ‘भ्रम’ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘कोई भ्रम नहीं है. धर्य रखें, अभी समय है.’
ममता ने सोनिया के साथ हुई बातचीत का खुलासा नहीं किया लेकिन दिन भर मीडिया से उन्होंने जब जब बात की, कहती रहीं कि वह राष्ट्रपति पद उम्मीदवार के लिए आम सहमति को तरजीह देंगी और कांग्रेस को तय करना है कि वह किसे उम्मीदवार बनाती है.
उन्होंने संसद के केन्द्रीय कक्ष में कहा, ‘मैं आम सहमति को तरजीह दूंगी. यदि सहमति नहीं बनती तो स्वाभाविक तौर पर मुकाबला होगा.’ उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए उनकी पसंद के उम्मीदवार के बारे में बार-बार किये गये सवालों को यह कहते हुए टाल दिया कि सभी विकल्प खुले हैं.
यह पूछने पर कि क्या उनका दल मुखर्जी का समर्थन करेगा, ममता ने कहा कि पहले कांग्रेस को फैसला लेना है. आखिर वह कांग्रेस के नेता हैं. ‘मैं किसी अन्य दल के आंतरिक मसलों में दखल नहीं देती.’
इस बीच तृणमूल सूत्रों ने बताया कि यदि आम सहमति बन जाती है तो ममता शायद संप्रग के उम्मीदवार का समर्थन करेंगी. अंसारी को 2007 में उप राष्ट्रपति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वाम दलों ने आज भी कहा कि उन्हें अंसारी या मुखर्जी के नाम पर ऐतराज नहीं है.
अंसारी और मुखर्जी जैसे उम्मीदवारों के बारे में वाम दलों के रूख पर पूछे गये सवाल के जवाब में माकपा पोलितब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने कहा कि यदि कांग्रेस इन दो नामों तक सीमित रहती है तो वाम दल देखना चाहेंगे कि किस नाम को लेकर आम सहमति बन रही है.