बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर, धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री से सम्बंधित उनकी टिप्पणी को लेकर परोक्ष हमला बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने जानना चाहा है कि देश में हिंदुत्व के प्रति इस तरह की घृणा क्यों है.
आरएसएस के मुख पत्र पांचजन्य में प्रकाशित सम्पादकीय में सवाल किया गया है कि प्रधानमंत्री को धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए, ऐसा कहने का क्या मतलब है?
संपादकीय में कहा गया है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रधानमंत्री के पद के लिए इस तरह की कोई खास पहचान नहीं निर्धारित की है, शायद इसलिए क्योंकि वे मानते थे कि भारत हमेशा शास्वत मूल्यों, धर्म और संस्कृति के लिए खड़ा रहा है और हमारे समाज का आधार व राष्ट्रीय जीवन सभी समग्रताओं और आपसी अस्तित्व की भावना है.
संपादकीय में कहा गया है कि केंद्र सरकार के प्रमुख के रूप में किसी प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी लोकतांत्रिक मूल्यों और बगैर भेदभाव के सभी के अधिकारों की हिफाजत करना है. संपादकीय में आगे कहा गया है कि धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री की आवश्यकता के बारे में टिप्पणियां वोटबैंक की राजनीति के लिए तथा अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए की जा रही हैं.
पांचजन्य ने नीतीश कुमार या उनकी पार्टी जनता दल (युनाइटेड) का नाम नहीं लिया है. ज्ञात हो कि नीतीश ने कहा था कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का प्रधानमंत्री उम्मीदवार धर्मनिरपेक्ष और उदार होना चाहिए. आम चुनाव में अभी दो वर्ष शेष हैं और राजग या भाजपा ने अभी प्रधानमंत्री का अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.