scorecardresearch
 

'आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं'

‘बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, ये तो कोई नहीं जानता.’ जिंदादिली की नयी परिभाषा गढने वाले बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना अब नहीं रहे, लेकिन में फिल्म 'आनंद' का किरदार उन्हें अमर कर गया. 'आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.'

Advertisement
X
राजेश खन्ना
राजेश खन्ना

‘बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, ये तो कोई नहीं जानता.’ जिंदादिली की नयी परिभाषा गढने वाले बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना अब नहीं रहे, लेकिन में फिल्म 'आनंद' का किरदार उन्हें अमर कर गया. 'आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.'

Advertisement

राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा. ऋषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर (लिम्फोसर्कोमा आफ इंटेस्टाइन) पीड़ित किरदार को जिस ढंग से उन्होंने जिया, वह भावी पीढी के कलाकारों के लिये एक नजीर बन गया.

इस फिल्म में अपनी जिंदगी के आखिरी पलों में मुंबई आने वाले आनंद सहगल की मुलाकात डॉक्टर भास्कर बनर्जी ( अमिताभ बच्चन) से होती है. आनंद से मिलकर भास्कर जिंदगी के नये मायने सीखता है और आनंद की मौत के बाद अंत में कहने को मजबूर हो जाता है कि ‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.’

बहुत कम लोगों को पता है कि आनंद के लिये ऋषिकेश मुखर्जी की असली पसंद महमूद और किशोर कुमार थे, लेकिन एक गलतफहमी की वजह से किशोर इस फिल्म में आनंद का किरदार नहीं कर सके.

Advertisement

दरअसल किशोर कुमार ने एक बंगाली व्यवसायी के लिये एक स्टेज शो किया था और भुगतान को लेकर उनके बीच विवाद हो गया था. किशोर ने अपने गेटकीपर से कहा था कि उस बंगाली को भीतर ना घुसने दे.

मुखर्जी जब फिल्म के बारे में बात करने किशोर कुमार के घर गए तो गेटकीपर ने उन्हें वही बंगाली समझ लिया और बाहर से ही भगा दिया. मुखर्जी इस घटना से इतने आहत हुए कि उन्होंने किशोर के साथ काम नहीं किया.

 

Advertisement
Advertisement