गत सप्ताह कथित बलात्कार के आरोप में बांदा जिले के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी की गिरफ्तारी से जाहिर है कि मुख्यमंत्री मायावती के लिए एक चेतावनी दीवार पर स्पष्ट लिखी हुई है. वह यह है कि उनके लिए उनकी पार्टी बसपा के विधायक और मंत्री ही सबसे बड़ा बोझ साबित होने जा रहे हैं.
2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों के पास आते जाने से अगर मायावती इस चेतावनी को नहीं समझतीं तो आगामी दौर उनके लिए मुश्किलों से भरा साबित हो सकता है. मुख्यमंत्री अभी तक दूसरी पार्टियों के आधा दर्जन लोगों के अलावा अपनी ही पार्टी बसपा के चार मंत्रियों, दो विधायकों और एक सांसद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करवा चुकी हैं.
यही नहीं, अगर मुख्यमंत्री पुलिस को भी बसपा कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार करने से नहीं रोकेंगी, तो उसका अमानवीय रुख और अपराधियों के प्रति पक्षपाती रवैया उनकी समस्याओं में इजाफा ही करता जाएगा. बांदा के ताजातरीन मामले में पुलिस ने पहले शिकायतकर्ता लड़की-अवयस्क शीलू-को ही जेल में डाल दिया था. बताते हैं कि उसके साथ विधायक और उनके तीन गुर्गों ने कथित बलात्कार किया था. ऐसा शायद उत्तर प्रदेश में ही हो सकता है, जहां कोई फरियादी तो सलाखों के पीछे बंद हो और अपराधी सत्ता के गलियारों में घूमता नजर आए.{mospagebreak}
यही नहीं, बांदा जिले के पुलिस अधीक्षक ए.के. दास ने खुद जेल के भीतर जाकर शीलू को धमकाया कि वह अपना मुंह बंद रखे, वरना उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे. जेल का अर्थ होता है न्यायिक हिरासत, जहां अदालत की अनुमति के बिना पुलिस आरोपी या अभियुक्त से नहीं मिल सकती. पर इस मामले में पुलिस अधीक्षक ने विधायक और राजनैतिक आकाओं को खुश करने के लिए संवैधानिक मर्यादाएं भी पार कर डालीं.
बताते हैं कि अच्छेलाल नामक एक बसपा कार्यकर्ता ने बांदा जिले में नारायणी के बसपा विधायक द्विवेदी से कहा था कि वह 17 साल की उसकी बेटी शीलू को अपने घर में नौकरानी के तौर पर रख लें, क्योंकि कुछ स्थानीय गुंडे उसे परेशान करते रहते हैं. 11 दिसंबर को शीलू को द्विवेदी के घर पर छोड़ दिया गया और अगले ही दिन उसके साथ वहां कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया.
जाहिरा तौर पर उसका मुंह बंद करने के लिए 13 दिसंबर को विधायक के पुत्र मयंक ने एक एफआइआर दर्ज करवाई कि शीलू उनके आवास से एक मोबाइल, कपड़े और कुछ नकदी लेकर फरार हो गई है. विधायक के इशारे पर पुलिस ने पीड़ित लडक़ी को गिरफ्तार कर लिया और उसके कब्जे से 5,000 रु. नकद, एक मोबाइल और कुछ कपड़े बरामद करके 14 दिसंबर को उसे जेल में पहुंचा दिया.{mospagebreak}
अगले दिन शीलू के पिता और भाई संतु जब दहाड़ें मार-मारकर लड़की के साथ हुए आपराधिक कृत्य की दुहाई दे रहे थे तो बताते हैं कि स्थानीय पुलिस ने दोनों को धमकाया. बलात्कार का मामला दबाने की पुलिस की कोशिशें नाकाम रहीं तो इसलिए कि बसपा विधायक और उनके गुंडों के खिलाफ बलात्कार के आरोप समूचे बुंदेलखंड में गूंजने लगे.
विख्यात गुलाबी गैंग इस मुद्दे पर प्रदर्शन और विरोध सभाएं करने लगा. संपत नामक ख्यात महिला कार्यकर्ता की अगुआई में गुलाबी गैंग ऐसी महिलाओं का समूह है, जो गुलाबी रंग की साड़ी पहनती हैं और महिलाओं के प्रति किए गए अपराधों का विरोध करती हैं.
अंततः लोगों की निगाहों के केंद्र बने इस मामले में राजधानी लखनऊ में भी विपक्ष ने मायावती सरकार को घेरना शुरू कर दिया. नतीजतन, मायावती सरकार को सीबी-सीआइडी द्वारा नए सिरे से जांच का निर्देश देना पड़ा.
वैसे भी विपक्ष को मायावती सरकार के खिलाफ किसी मुद्दे की तलाश थी ही. अरसे से मुख्यमंत्री के खिलाफ लड़ती आ रहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा-जोशी ने कहा, ''जब तक विधायक को सजा नहीं मिलती, मैं खामोश नहीं बैठूंगी. मायावती ने कार्रवाई तभी की जब शीलू प्रकरण पर उन्होंने खुद को कांग्रेस और मीडिया से घिरा पाया.'' शीलू बांदा जेल में थी तो बहुगुणा-जोशी उससे मिलने गई थीं, पर जेल प्रशासन ने उन्हें अनुमति नहीं दी. स्थानीय कांग्रेस विधायक विवेक सिंह ने जेल में शीलू से मुलाकात कर स्थानीय स्तर पर यह मामला उठाया था.{mospagebreak}
भाजपा की स्मृति ईरानी भी शीलू और उनके परिवारीजनों से मिलने बांदा गईं. राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के लिए शीलू कांड के राजनैतिक दोहन का सुनहरी मौका था, पर वह ऐसा नहीं कर पाई. उसके प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अखिलेश सिंह ने जेल में बंद निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से मुलाकात का वक्त तो निकाल लिया, पर शीलू से मिलने की जहमत उन्होंने नहीं उठाई.
सपा की कुछ महिला नेताओं ने अपनी औपचारिकता जरूर पूरी की. निस्संदेह विपक्ष, मुख्य रूप से कांग्रेस, इस मुद्दे पर बसपा सरकार को घेरने और यह स्थापित करने के मूड में है कि ''राज्य में कैसे पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता की तरह काम कर रही है.'' लेकिन सीआइडी की रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद मायावती ने आरोपी विधायक से कोई सहानुभूति न जताकर मामले को शांत करने का प्रयास किया है.
फिर भी कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं. निषाद नामक पिछड़ी जाति की शीलू को दलित क्यों बताया गया? स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाली यह लड़की स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार वयस्क है और अपने पिता पर भी 'बुरी नजर रखने' का आरोप लगा चुकी है. शीलू की गुमशुदगी की एक रिपोर्ट मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में हरनामपुर थाने में लिखवाई गई थी. उस मामले में 15 दिसंबर को मध्य प्रदेश पुलिस ने जब उसका बयान दर्ज किया तो उसने एक बार भी विधायक द्वारा बलात्कार की बात क्यों नहीं कही?{mospagebreak}
शीलू विधायक के निवास से 12 दिसंबर को निकल गई थी, पर 14 दिसंबर को पकड़ी गई. बीच में वह कहां रही? एक पिता ने क्यों और किन हालात में अपनी बेटी को विधायक के घर पर रखा? जेल में 18 दिसंबर तक शीलू के लिखित बयानों में विधायक द्वारा बलात्कार का उल्लेख क्यों नहीं है? क्या बांदा के एक ताकतवर बसपा नेता के दौरे से यह कहानी पूरी तरह बदल गई?
बहरहाल, जिस तरह से शीलू प्रकरण को समर्थन मिला उससे राज्य में अमरमणि त्रिपाठी-मधुमिता शुक्ल कांड की याद ताजा हो गई है, जो 2003 में मायावती के राज में ही हुआ था. तब त्रिपाठी तत्कालीन मायावती सरकार में मंत्री थे और महीनों तक मधुमिता का यौन उत्पीड़न करने के बाद उसकी हत्या करवा दी गई.
मुख्यमंत्री ने मामले की सीआइडी जांच का आदेश दिया था, लेकिन जब विभाग ने कार्रवाई की तो दो पुलिस अफसरों को त्रिपाठी पर उंगली उठाने के आरोप में निलंबित कर दिया गया. शीलू मामले में भी उम्मीद की जा रही थी कि मायावती सरकार इसे दबाने की कोशिश करेगी. सीआइडी टीम ने जब विधायक और उनके तीन सहयोगियों सुरेश नेता, राजेंद्र शुक्ल और रावण गर्ग को दबोच लिया तो त्रिपाठी कांड के विपरीत मायावती ने तुरंत कार्रवाई करके यह स्पष्ट कर दिया कि वे दोषियों को नहीं बख्शेंगी.{mospagebreak}
12 जनवरी को कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने तुरत-फुरत बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की कि मुख्यमंत्री ने बसपा विधायक और उसके गुंडों को बलात्कार के मामले में दोषी पाने वाली सीआइडी की रिपोर्ट पर फौरन कार्रवाई करने का फैसला किया है और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
अगले दिन नारायणी पुलिस ने मामला दर्ज कर लखनऊ से लौट रहे विधायक को पकड़कर जेल पहुंचा दिया. मायावती शीलू बलात्कार कांड के भूत से इस कदर आतंकित थीं कि अपने जन्मदिन समारोह में भाषण करते हुए उन्होंने यह मुद्दा खुद ही उठाया और कहा कि शीलू के खिलाफ लगाया गया चोरी का आरोप फर्जी लगता है, लिहाजा उसे रिहा कर दिया जाए.
उधर, जेल भेजे गए विधायक की पत्नी आशा द्विवेदी ने 20 जनवरी को लखनऊ में घोषणा की कि यदि उनके पति को न्याय नहीं मिला तो वे पूरे परिवार के साथ अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेंगी. पुत्र मयंक के साथ उन्होंने स्पष्ट कहा, ''मेरे पति निर्दोष हैं और नपुंसक हैं.'' उनके मुताबिक विधायक को राजनैतिक षड्यंत्र का शिकार बनाया गया है, पर इस संबंध में उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया. उनका कहना था, ''भगवान के बाद हमें बहन मायावती पर विश्वास है.''{mospagebreak}
सीआइडी रिपोर्ट पर मायावती की तुरंत कार्रवाई, शीलू की जेल से रिहाई और दोषी चार पुलिस अधिकारियों और एक जेल अधिकारी का निलंबन भी इस मुद्दे पर उनकी सरकार के खिलाफ गुस्से को ठंडा करने में नाकाम रहा और यह मुद्दा बांदा जैसे दूरदराज के इलाके से उठकर देश की सर्वोच्च अदालत तक जा पहुंचा, जहां नामी वकील हरीश साल्वे ने मामले की न्यायिक जांच कराने की वकालत की. लेकिन मुख्यमंत्री ने मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत में किए जाने का अनुरोध किया है.
जाहिर है, समय बीतने के साथ मायावती के विधायक और मंत्री उनके लिए बोझ साबित होते जा रहे हैं, और विपक्ष के हाथ में हुकूमत पर हमला करने का औजार बन रहे हैं. द्विवेदी के पूर्व शेखर तिवारी और गुड्डू पंडित जैसे विधायकों को जेल जाना पड़ा था और राजेश त्रिपाठी को अपनी विवादित हरकतों की वजह से तीन अन्य मंत्रियों की तरह बरखास्तगी का दंश झेलना पड़ा था.
पर मायावती इससे कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं. महज एक विधायक या मंत्री को बचाने से उनकी छवि को राज्य भर में धक्का पहुंचता है. दूसरे मुख्यमंत्री को ईमानदारी से पुलिस को यह चेतावनी देनी चाहिए कि वह सत्तारूढ़ दल की एजेंट के रूप में काम करने के बजाए वस्तुगत आधार पर काम करे.
{mospagebreak}उत्तर प्रदेश में हर बार यही होता है कि पुलिस सत्तारूढ़ दल के आदेशों का ही पालन करती है. मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में बसपा विधायक राजू पाल की कुछ सपा नेताओं ने इस बेदर्दी से हत्या कर दी कि गोलियों से छलनी कर दिए जाने के बाद वे कई मीटर तक घिसटते चले गए.
पुलिस इस जघन्य कांड में मूक दर्शक बनी रही और फिर वह मामले को रफा-दफा करने में लग गई. मुलायम सिंह ने मुख्य आरोपी को तो चुनावों में पार्टी का टिकट भी दे दिया था. उनके राज में कुछ संदिग्ध तत्वों को पुलिस में भर्ती करने से एक और खतरनाक रुझान सामने आया था. कल्याण सिंह के राज में जब आरएसएस के कारसेवक अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को ढहा रहे थे तो हजारों पुलिसकर्मी चुपचाप खड़े थे.
राज्य की विधान परिषद में अधिकतम कुख्यात अपराधियों को भेजकर मायावती पहले ही अपनी माफिया विरोधी और अपराधी विरोधी छवि को धूमिल कर चुकी हैं. यही नहीं, उन्होंने लोकायुक्त द्वारा जमीन पर अवैध कब्जा करने वाला करार दिए गए राजेश त्रिपाठी को 2012 में फिर बसपा के टिकट पर चिल्लूपार से चुनाव लड़वाने की घोषणा भी कर दी है.
मुख्यमंत्री की हैसियत से मुलायम सिंह ने भी अपनी गलतियों से सबक नहीं लिया था और अपराधियों को संरक्षण दिया था और 2007 में राज्य की जनता ने उनकी हुकूमत उखाड़ फेंकी थी. अगर मायावती दीवार पर लिखी चेतावनी को नहीं पढ़ पाती हैं, तो उन्हें भी अपना बोया ही काटने को तैयार रहना चाहिए.