जलवायु परिवर्तन संबंधी संस्था आईपीसीसी द्वारा गंभीर वैज्ञानिक भूलों को स्वीकार किये जाने के बाद जलवायु परिवर्तन के कारण 2035 तक हिमालय के अधिकतर ग्लेशियरों के पिघलने के बारे में दी गयी चेतावनी को गुमराह करने वाला कहा जा रहा है. भारत के राजेंद्र पचौरी की अध्यक्षता में जलवायु परिवर्तन की अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने दो वर्ष पहले एक व्यापक रिपोर्ट पेश की थी.
इस रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में नवीनतम और अत्यधिक अनुसंधान का हवाला दिया गया था. इसका मुख्य संदेश यह था कि विश्व के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और 2035 तक हिमालय के ग्लेशियरों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. ‘संडे टाइम्स’ ने रविवार को खबर दी है कि कुछ दिनों पहले वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया था कि उनकी ग्लोबल वार्मिंग रिपोर्ट लोकप्रिय विज्ञान जर्नल ‘न्यू साइंटिस्ट’ की एक न्यूज स्टोरी पर आधारित थी.
यह न्यूजस्टोरी आईपीसीसी की 2007 की रिपोर्ट से आठ वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी. इस रिपोर्ट में यह बात भी उभर कर सामने आयी है कि न्यू साइंटिस्ट की न्यूज स्टोरी भी भारतीय वैज्ञानिक सैयद हसनैन के लघु टेलीफोनी इंटरव्यू पर आधारित थी जो उस समय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन करते थे. अखबार के अनुसार हसनैन ने इसके बाद कहा है कि उनका दावा एक अनुमान था और इस संबंध में कोई औपचारिक अनुसंधान नहीं किया गया था.
यदि इस बात की पुष्टि हो जाये तो जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के संबंध में यह एक गंभीर विफलता होगी. जलवायु परिवर्तन के संबंध में विश्व को सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक परामर्श मिल सके इसके लिए आईपीसीसी की स्थापना की गयी थी. इससे पहले हिमालय पर इस रिपोर्ट की वैज्ञानिक सबूतों पर खरा नहीं कह कर आलोचना की गयी लेकिन राजेंद्र पचौरी ने इसे खारिज किया था और पिछले सप्ताह आईपीसीसी ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था.
लंबे समय तक आईपीसीसी के निष्कर्षों से नाराज चल रहे ट्रेंट विश्वविद्यालय के भूगोल विज्ञानी ग्राहम कोगले के नेतृत्व में काम कर रहे वैज्ञानिकों के दल ने इस भूल का पता लगाया था. कोगले ने पता लगाया कि आईपीसीसी का दावा ‘न्यू साइंटिस्ट’ की रिपोर्ट का ही पुन:उल्लेख है और इसके बाद उन्होंने पत्रकार फ्रेड पीयर्स से संपर्क किया जिन्होंने वास्तविक साक्षात्कार लिया था.
पीयर्स ने इसके बाद फिर से हसनैन का साक्षात्कार किया जिन्होंने कहा कि 1999 में की गयी टिप्पणियां अनुमानों पर आधारित थी. पीयर्स ने अद्यतन जानकारी ‘न्यू सांइटिस्ट’ में प्रकाशित की. एक भारतीय पत्रिका में हसनैन की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद पीयर्स ने 1999 में वैज्ञानिक से संपर्क किया था.