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गांधी की गिरफ्तारी से देश में भड़क उठे थे दंगे

भारत की स्वाधीनता के लिए नौ अगस्त 1942 को आजादी के अंतिम संग्राम का ऐलान करने पर महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया तो समूचा देश हिंसा की आग में जल उठा.

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महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

भारत की स्वाधीनता के लिए नौ अगस्त 1942 को आजादी के अंतिम संग्राम का ऐलान करने पर महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया तो समूचा देश हिंसा की आग में जल उठा. शांति और अहिंसा के मसीहा को हिरासत में जाते देख उनके अनुयायियों सहित आम जनमानस हिंसा पर उतर आया.

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गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत नौ अगस्त 1942 को मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान से हुई. राष्ट्रपिता ने पहले ही कह दिया था कि अब आजादी के लिए ‘करो या मरो’ के ध्येय से लड़ाई लड़नी होगी जिससे हर देशवासी के मन में आजादी पाने की तीव्र ललक पैदा हो गई.

इतिहासकार सुधीर कांत के अनुसार अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा आठ अगस्त 1942 के बम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किए जाते ही ब्रितानिया हुकूमत हरकत में आ गई. उसने अगले ही दिन महात्मा गांधी को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर दिया. कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में बंद कर दिया गया.

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सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए. हालांकि अरुणा आसफ अली हाथ नहीं आईं. उन्होंने नौ अगस्त 1942 को मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान में राष्ट्र ध्वज फहरा दिया.

नेताओं की गिरफ्तारी से समूची मुम्बई दंगों की आग में झुलस उठी. नौ अगस्त के दिन पुलिस ने पांच बार गोली चलाई और पांच बार आंसू गैस का इस्तेमाल किया.

ब्रितानिया हुकूमत ने गवालिया टैंक मैदान में फहराए गए तिरंगे झंडे का अपमान किया जिससे लोगों का गुस्सा और भड़क उठा. शहर में कई पुलिसकर्मी भीड़ के गुस्से का शिकार बने. कपूर के अनुसार रेडियो कांग्रेस से जैसे ही नेताओं की गिरफ्तारी की खबर देश में फैली अंग्रेजों के खिलाफ मानो लावा धधक उठा और 10 अगस्त के दिन जबर्दस्त हिंसा हुई.

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देश में कई स्थानों पर विस्फोट हुए. सरकारी इमारतों को जला दिया गया बिजली काट दी गई तथा परिवहन और संचार सेवाओं को ध्वस्त कर दिया गया.

जगह जगह हड़ताल की गई और कई स्थानों पर जिला प्रशासन को उखाड़ फेंका गया. महाराष्ट्र बंगाल और देश के कई हिस्सों में लोगों ने स्थानीय प्रशासन को उखाड़कर समानांतर प्रशासन स्थापित कर दिया.

इस तरह नौ अगस्त को शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन अगले दिन 10 अगस्त तक रक्तरंजित हो गया.

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आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने सैकड़ों भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया और एक लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए. यह लड़ाई दो साल तक चली लेकिन आखिरकार अंग्रेज इसे दबाने में सफल हो गए.

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