रूस की एक अदालत ने भगवद गीता के अनुवादित संस्करण पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया. इससे दुनिया भर में गीता के अनुयायी खुश हैं. फैसले के तुरंत बाद मास्को इस्कॉन के संधु प्रिय दास ने कहा, ‘साइबेरियाई शहर तोमस्क की अदालत ने याचिका खारिज कर दी है.’
तोमस्क के सरकारी अभियोजकों ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी. निचली अदालत ने अभियोजकों की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें ‘भगवद गीता’ पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया था. इंटरनेशनल सोसाइटी फार कृष्णा कान्श्सनेस (इसकॉन) के ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने ‘भगवद गीता एज इट इज’ नाम से लिखा है.
उन लोगों का दावा है कि पुस्तक उग्रवाद को बढ़ावा देने वाला साहित्य है जिसमें नफरत की बात कही गयी है. यह उन लोगों का अपमान है जो सामाजिक विसंगति के विरोधी हैं.
फैसले से खुश दास ने कहा कि तोमस्क ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है.
उन्होंने कहा कि जैसे ही अदालत ने फैसला सुनाया, वहां मौजूदा लोग खुशी से झूम उठे. दास ने कहा, ‘हम रूस के न्यायिक प्रणाली के शुक्रगुजार हैं.’
इस्कॉन ने निदेशक (मीडिया कम्युनिकेशन) ब्रजेन्द्र नंदन दास ने फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘हम जीत गये. पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की याचिका खारिज हो गयी है.’ तोमस्क की निचली अदालत ने पिछले वर्ष 28 दिसंबर को भगवद गीता पर प्रतिबंध की मांग करने वाली याचिका खारिज की थी.
भारत ने उस समय फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि यह संवेदनशील मुद्दे का सतर्क समाधान है. जून 2010 में दायर मूल याचिका में भगवद गीता के अनुवादित संस्करण पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया था. मामले की सुनवाई को लेकर दुनिया भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.