राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार पीए संगमा ने संप्रग उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के खिलाफ लाभ के दो और पदों पर अभी तक काबिज रहने के नये आरोप लगाए हैं.
साथ ही प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी के सिलसिले में जताई गई आपत्तियों की फिर से जांच के लिए चुनाव आयोग से हस्तक्षेप करने की मांग की है.
राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचन अधिकारी द्वारा उनकी शिकायत को खारिज किए जाने पर असंतोष जाहिर करते हुए संगमा की ओर से तीन सदस्यीय एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया. आयोग ने उन्हें अपनी मांग के बारे में लिखित रूप में सोमवार शाम तक दलील पेश करने का वक्त दिया है.
बैठक के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दावा किया कि मुखर्जी ‘वीरभूम इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान’ के उपाध्यक्ष और ‘रवीन्द्र भारती सोसाइटी’ के अध्यक्ष के तौर पर लाभ के दो और पदों पर अब भी काबिज हैं.
उन्होंने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त वीएस संपत से मुलाकात की और अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराया. संविधान चुनाव आयोग को चुनाव कराने में हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है.
स्वामी ने कहा, ‘यहां धोखाधड़ी का मुद्दा है. चुनाव आयोग को यह फैसला करने दीजिए कि क्या नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया में कोई धोखाधड़ी हुई है या नहीं. चुनाव आयोग को अंतिम फैसला करने दीजिए.’
प्रतिनिधिमंडल में भाजपा नेता और संगमा के वकील सत्यपाल जैन और उनके चुनाव एजेंट भर्तृहरि महताब भी शामिल थे. इस प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (आईएसआई) से मुखर्जी के इस्तीफे पर उनके हस्ताक्षर का मुद्दा उठाया.
निर्वाचन अधिकारी के फैसले का विरोध करते हुए जैन ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग के समक्ष तीन दलीलें पेश की है और उससे हस्तक्षेप करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि नियमों के मुताबिक चुनाव आयोग के पास हस्तक्षेप करने की शक्ति है क्योंकि चुनाव प्रक्रिया जारी है. हम सोमवार को अपना लिखित जवाब पेश करेंगे. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को सभी चुनाव कराने और उसकी निगरानी करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है तथा हालात उसके हस्तक्षेप की मांग करता है.
जैन ने झारखंड में हालिया राज्यसभा चुनाव और 1980 में गढ़वाल से हेमवती नंदन बहुगुणा के लोकसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग ने इन मौकों पर हस्तक्षेप किया था.
उन्होंने बताया, ‘हमने मुख्य चुनाव आयुक्त से कहा कि नियमों के मुताबिक निर्वाचन अधिकारी उनके द्वारा जताई गई सभी आपत्तियों पर विचार करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. निर्वाचन अधिकारी ने हमारी ओर से उठाई गई सभी आपत्तियों पर विचार नहीं किया है.’
महताब ने कहा, ‘इस तरह से निर्वाचन अधिकारी ने उस व्यक्ति की मदद की, जिनके खिलाफ फर्जीवाड़ा के आरोप लगाए गए हैं. आईएसआई से प्रणव मुखर्जी का इस्तीफा उचित तरीके से स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि एमजीके मेनन इसे स्वीकार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं हैं.’
प्रतिनिधिमंडल द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष उठाई गई आपत्तियों में ये बातें भी शामिल हैं कि निर्वाचन अधिकारी के पास प्रस्तावकों और अनुमोदकों के हस्ताक्षरों की जांच करने की शक्ति है. उनका यह भी कर्तव्य है कि वह उनके हस्ताक्षरों की सत्यता की जांच करें. संगमा खेमे ने मुखर्जी के इस्तीफा पत्र का मुद्दा उठाया था, जिसपर उनका हस्ताक्षर विवादास्पद था. यह बात भी विवादास्पद थी कि यह पत्र पिछली तारीख का था.
जैन ने कहा कि इन आपत्तियों पर विचार करने की बजाय निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर फैसला अन्य उचित फोरम से दिया जा सकता है. हालांकि, निर्वाचन अधिकारी ने उस फोरम का नाम नहीं बताया.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम की धारा पांच (ई) के तहत यदि प्रस्तावक या अनुमोदक के हस्ताक्षरों के बारे में विवाद है या इस सिलसिले में कोई फर्जीवाड़ा है, तो निर्वाचन अधिकारी इस विषय पर फैसला कर सकते हैं.