नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार को दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यह कहते हुए कमतर आंकने का प्रयास किया कि यह नगर निकाय चुनाव है तथा इसकी किसी अन्य बात से तुलना नहीं की जा सकती.
दिल्ली के तीनों निगमों में भाजपा के हाथों अपनी पार्टी की हार पर दीक्षित ने कहा, ‘यह मेरा चुनाव नहीं था. यह एमसीडी चुनाव था.’
उन्होंने कहा, ‘जब विधानसभा चुनाव आएंगे तब हम देखेंगे. यदि कोई त्रुटियां हैं तो हम उसे सुधारेंगे. हमने संख्याबल में सुधार किया है. सुधारजनक कदम उठाये जायेंगे.’ उनका बयान पूर्वी दिल्ली के सांसद और उनके बेटे संदीप दीक्षित के उस बयान के विपरीत है जिसमें 2जी जैसे घोटालों और महंगाई से पनपी कांग्रेस विरोधी भावना तथा लोगों एवं सरकार के बीच दूरी को पराजय के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.
मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि हर चुनाव में विजेता और पराजित दोनों होते हैं और किसी को भी उसे गरिमामय ढंग से स्वीकार करना चाहिए. भाजपा की जीत को दीक्षित के लिए एक करारा झटका है जो करीब 14 साल से निरंतर दिल्ली पर शासन कर रही हैं और जिन्होंने निगम पर भगवा दल की पकड़ कमजोर करने के प्रयास के तहत एमसीडी को तीन हिस्सों में बांट दिया.
जब पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इसका विरोध किया तब भी वह उनके विरोध पर पार पाने में सफल रहीं. इन नेताओं ने चेतावनी दी थी कि 53 वर्षीय निगम को चुनाव से पहले विभाजित करना पार्टी के लिए महंगा पड़ेगा.
शहर भर में कई रैलियों को संबोधित करने वाली और पार्टी के पक्ष में जबर्दस्त प्रचार करने वाली दीक्षित ने इस बात से इनकार किया था कि महंगाई कोई मुद्दा है जैसा कि भाजपा ने पेश किया था, लेकिन अब ऐसा जान पड़ता है कि उनका आकलन सही नहीं था.