अगर मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर की वार्षिक 40 करोड़ रु. की आमदनी को देखें तो मानना पड़ेगा कि भगवान गणेश समृद्धि के देवता हैं. लेकिन इस मंदिर के 'स्वामी' 63 वर्षीय कृष्णकुमार पाटील, उनकी 81 वर्षीया मां इंदिरा और 50 वर्षीया बहन शैला पर उनकी कृपादृष्टि मानो नहीं पड़ी है. वे मंदिर से 500 मीटर दूर एक निम्न आयवर्ग की बस्ती में 200 वर्गफुट के किराए के मकान के टूटे-फूटे कमरे में कैद रहते हैं, क्योंकि उनके पास सिर्फ एक ही जोड़ी साड़ी है.
यह परिवार मंदिर में से अपने हिस्से के लिए महाराष्ट्र सरकार और सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट के साथ लंबी कानूनी लड़ाई में उलझ है. बॉम्बे हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि सहानुभूतिवश उन्हें मंदिर के 11 ट्रस्टियों में शामिल कर लिया जाए. सरकार ने इसमें असमर्थता जताई है और इसका कोई कारण नहीं बताया है.
पाटील के पूर्वज लक्ष्मण विठु पाटील ने यह मंदिर 19 नवंबर, 1801 को बनवाया था. मंदिर की अधिकृत वेबसाइट भी इस दावे की पुष्टि यह कहते हुए करती है कि लक्ष्मण ने यह मंदिर किन्हीं देऊबाई पाटील के निर्देश पर और उनकी वित्तीय मदद से बनाया था. 1928 में पारिवारिक विवाद के बावजूद पाटील परिवार 1941 तक इस मंदिर का प्रबंधन संभालता रहा. उसके बाद से यह परिवार मंदिर के प्रबंधन को अपने नियंत्रण में लाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है.{mospagebreak}
कृष्णकुमार के पास आमदनी का कोई स्थायी स्त्रोत नहीं है. कुछ वर्ष पहले तक वे एक गैराज में गाड़ियां धोने का काम करते थे. वे कहते हैं, ''मैं अब मधुमेह का रोगी हूं, कड़ी मेहनत नहीं कर सकता. हम जिंदा हैं, तो सिर्फ भक्तों द्वारा दी जा रही मदद के बूते.''
हाइकोर्ट ने 4 मार्च, 2005 को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह कृष्णकुमार को सहानुभूति के आधार पर मंदिर का ट्रस्टी नियुक्त करने पर विचार करे. अगस्त, 2007 में कृष्णकुमार ने विधि व न्याय विभाग को याचिका दी कि वह उन्हें ट्रस्टी नियुक्त करे लेकिन ट्रस्ट ने उनका आवेदन खारिज कर दिया.
कृष्णकुमार फिर हाइकोर्ट पहुंचे, जिसने 21 जनवरी, 2009 को फैसला दिया कि, ''राज्य की ओर से प्रस्तुत हुए विद्वान वकील ने कहा है कि सरकार आज की स्थिति में ट्रस्टियों के खाली पड़े दो पदों के लिए आवेदकों की याचिका पर विचार करेगी. उन्होंने यह भी कहा है कि यह काम आठ सप्ताह के भीतर कर लिया जाएगा. इस बयान को देखते हुए याचिका में कुछ नहीं बचता है, और इसलिए इसे खारिज किया जाता है.'' लेकिन इस वर्ष 1 सितंबर को सरकार ने कृष्णकुमार को सूचित किया कि ट्रस्टी के पद पर नियुक्ति के आवेदन को खारिज कर दिया गया है.
मंदिर के भीतर के एक सूत्र के अनुसार कृष्णकुमार का दावा मंदिर प्रबंधन का कुछ नियंत्रण उन्हें दिलवाने के लिहाज से पर्याप्त सशक्त है, लेकिन उनकी गर्ममिजाजी के कारण मंदिर के ट्रस्टियों द्वारा उनका समर्थन किए जाने की संभावना नहीं है. इस सूत्र का कहना है, ''अगर वे सभी से प्रेम से पेश आते, तो उन्हें उनका हिस्सा मिल गया होता.''{mospagebreak}
लेकिन कृष्णकुमार अपनी गर्ममिजाजी को सही ठहराते हैं, वह कहते हैं, ''मंदिर के चौकीदार लोगों से पैसे लेकर उन्हें बिना कतार में आए भीतर जाने देते हैं, मैं इसे कैसे स्वीकार कर सकता हूं?'' एक ट्रस्टी नितिन कदम कहते हैं कि उन्हें कृष्णकुमार से सहानुभूति है लेकिन उनकी नियुक्ति सरकार के हाथ में है और इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते.
ट्रस्टियों ने कृष्णकुमार और उनके परिवार को यह छूट दे रखी है कि वे कतार में खड़े हुए बिना मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं. वे रोजाना दिन में दो बार मंदिर जाते हैं-सुबह और शाम की आरती में. मंदिर आने वाले अति विशिष्ट व्यक्ति और जाने-माने लोग उन्हें 'मंदिर के मालिक' के तौर पर जानते हैं. मां इंदिरा भी कई बार मंदिर आती हैं.
एक दिन अभिनेत्री प्रिटी जिंटा ने उन्हें दर्शन के लिए एक घंटे से ज्यादा समय तक खड़े देखा और वह यह देख कर हैरान रह गईं कि वे इतनी देर तक खड़ी कैसे रह सकती हैं. इंदिरा कहती हैं, ''प्रिटी जिंटा ने मुझसे पूछा कि मैं तो जल्दी ही थक जाती हूं, आप कैसे नहीं थकतीं?''
कृष्णकुमार कहते हैं कि उन्हें कतार में खड़े हुए बिना मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है क्योंकि यह ''उनकी संपत्ति'' है. फिर भी उनके दिल में एक दर्द है. वे कहते हैं, ''मैंने देखा है कि अमिताभ बच्चन और कई अन्य जाने-माने लोगों की मुरादें सिद्धिविनायक से प्रार्थना के बाद पूरी हो गई हैं. पता नहीं मेरी अभिलाषा कब पूरी होगी.''