कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए नीलामी की व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी थी. कोयला मंत्री ने कहा कि कोयले के धनी पांच राज्यों मसलन छत्तीसगढ़, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल कोयला ब्लॉकों की नीलामी के खिलाफ थे.
कोयला मंत्री ने जोर देकर कहा कि इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कतई जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने कहा कि पांच राज्यों, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओड़िशा तथा पश्चिम बंगाल, ने कोयला ब्लाकों का आवंटन निविदा के जरिये करने के विचार का पुरजोर विरोध किया था.
हालांकि, खुद के इस्तेमाल (कैप्टिव) के लिए कोयला ब्लॉकों का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये करने का विचार सबसे पहले 2004 में बना था, लेकिन सरकार ने अभी तक इसके तरीके को अंतिम रूप नहीं दिया है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की इसी सप्ताह पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005 से 2009 के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों को 57 कोयला ब्लॉकों का आवंटन बिना प्रतिस्पर्धी बोली के किया गया. इस तरह निजी क्षेत्र की इन कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा.
कैग इस निष्कर्ष पर कोयला उत्पादन की औसत लागत तथा 2010-11 में कोल इंडिया की खानों से निकले कोयले के औसत मूल्य के आधार पर किया है. जायसवाल ने कहा कि कोयला मंत्रालय ने राज्यों के बीच इस मुद्दे पर सहमति बनाने का काफी प्रयास किया, लेकिन वे इसके लिए राजी नहीं हुए. राज्यों का मानना था कि इससे औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित होंगी और कोयले का दाम बढ़ जाएगा. जायसवाल ने इस मुद्दे पर संसद में विपक्ष के हंगामे की आलोचना करते हुए कहा कि यदि मौका मिले तो वह सही तस्वीर सामने रख सकते हैं.