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वोडाफोन मामले में वकील की याचिका खारिज

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को टेलीकॉम कम्पनी वोडाफोन से जुड़े 11,218 करोड़ रुपये (2.2 अरब डॉलर) के कर विवाद मामले में अधिवक्ता एम. एल. शर्मा की याचिका खारिज कर दी.

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सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को टेलीकॉम कम्पनी वोडाफोन से जुड़े 11,218 करोड़ रुपये (2.2 अरब डॉलर) के कर विवाद मामले में अधिवक्ता एम. एल. शर्मा की याचिका खारिज कर दी.

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न्यायालय ने इसे 'गैर-जिम्मेदाराना और निंदनीय' बताया. शर्मा ने पिछले महीने दायर अपनी याचिका में इसे हितों के टकराव का मामला बताते हुए आरोप लगाया था कि वोडाफोन कर मामले की सुनवाई से पहले सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया ने यह नहीं बताया था कि उनके बेटे होशनर कपाड़िया परामर्श कम्पनी 'अर्नस्ट एंड यंग' के साथ काम करते हैं, जिसने कराधान के मुद्दे पर वोडाफोन को सलाह दी थी.

न्यायमूर्ति कपाड़िया, न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने 20 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करते हुए फैसला वोडाफोन के पक्ष में सुनाया था.

अधिवक्ता शर्मा ने इसी के खिलाफ याचिका दायर की थी. लेकिन न्यायमूर्ति आफताब आलम की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को 'हल्का तथा निंदनीय' बताते हुए इसे खारिज कर दिया और उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. न्यायमूर्ति आलम ने याचिकाकर्ता के उद्देश्य पर भी सवाल उठाए.

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मामला वर्ष 2007 में वोडाफोन द्वारा हांगकांग की कम्पनी हचिसन को तत्कालीन दूरसंचार कम्पनी हच एस्सार में 67 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए दी गई 11.2 अरब डॉलर की रकम पर लगाए गए कर से जुड़ा है.

कर विभाग ने इसके लिए कम्पनी पर 2.2 अरब डॉलर का कर लगाया गया, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि भारतीय अधिकारियों को दो वश्विक कम्पनियों के बीच हुए समझौते को लेकर कर लगाने का अधिकार नहीं है, भले ही उसमें शामिल सम्पत्ति देश में हो. बम्बई उच्च न्यायालय ने कम्पनी से कर का भुगतान करने के लिए कहा था.

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