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आखिर, कांग्रेस से इतनी खफा क्यों है तृणमूल?

राष्ट्रपति चुनाव कई दलों के लिए इस बार मुसीबत बन कर आया है. एनडीए अपना उम्मीदवार ना खड़ा कर पाने से चिंतित है तो ममता बनर्जी अलग-थलग पड़ने से. लेकिन ममता के तेवर नरम नहीं पड़े हैं.

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राष्ट्रपति चुनाव कई दलों के लिए इस बार मुसीबत बन कर आया है. एनडीए अपना उम्मीदवार ना खड़ा कर पाने से चिंतित है तो ममता बनर्जी अलग-थलग पड़ने से. लेकिन ममता के तेवर नरम नहीं पड़े हैं. तृणमूल पार्टी ने सख्त लहजे में सोमवार को कह दिया कि वो किसी भी वक्त सरकार को छोड़ सकते हैं. सिर्फ ममता बनर्जी का एक इशारा होना बाकी है.'

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आखिर, कांग्रेस से इतनी खफा क्यों है तृणमूल? राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस और टीएमसी के बीच तल्खी का पता तो सबको था लेकिन तल्खी टूट के करीब पहुंच चुकी है इसका खुलासा सोमवार शाम को हुआ.

बेशक तृणमूल कांग्रेस के नेता संदीप बंदोपाध्याय ने सांसदों के इस्तीफे से इनकार कर दिया लेकिन उनकी बातों में धमकी साफ छिपी है. लाख टके का सवाल ये है कि आखिर ऐसी नौबत आई कैसे? टीएमसी कांग्रेस पर इतना क्यों भड़की हुई है?

इसका खुलासा टीएमसी के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष ने आजतक पर किया. घोष का इल्जाम है कि कांग्रेस ने हमेशा ममता बनर्जी का अपमान किया. आजतक ने जब कुणाल घोष को और कुरेदा तो झगड़े की जड़ बाहर आ गई. ममता जी ने सोनिया से बात की, ममताजी उनके घर गई थीं. उनसे अच्छी बात हुई. बातचीत के बाद वो बाहर आईं और मीडिया से बात की. ममता ने हामिद और प्रणब के नाम का उल्लेख किया. अगले रोज कांग्रेस के नेता ममता पर वायलैंट अटैक कर रहे थे.

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लेकिन ममता ने जो कुछ कहा वो उसकी जानकारी सोनिया और अहमद पटेल को थी. यानी टीएमसी की नाराजगी इस बात से है कि ममता बनर्जी को कांग्रेस नेताओं ने बिना वजह निशाना बनाया. लेकिन, एक और बात है रिश्तों में खटास के पीछे.

तृणमूल सांसद कुणाल घोष ने कहा, 'एक और बात है. ये टीएमसी के लिए बहुत गर्व की बात है कि प्रणब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. उनका सम्मान करते हैं. उनके पास टाइम नहीं है टीएमसी से बात करने का. लेकिन बुद्धदेव और विमान बोस से बातचीत करने का वक्त है.

सीपीएम के लोगों से बात करने का टाइम है लेकिन जो हमारे अलायंस में है उसके साथ बात करने का समय और इच्छा नहीं है. जाहिर है ममता बनर्जी को ये बातें इतनी नागवार गुजरी हैं कि मामला यूपीए से आर या पार करने के करीब पहुंच गया है. लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि राष्ट्रपति की उम्मीदवारी पर सियासी तौर पर अलग-थलग पड़ चुकीं ममता के लिए क्या यूपीए से अलग होने का माकूल वक्त है?

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