राजधानी दिल्ली की पुलिस 7 सितंबर को दिल्ली हाइकोर्ट परिसर में हुए विस्फोट में शामिल संदिग्धों के अस्पष्ट स्केच बनवाने की शर्मिंदगी से अभी उबर नहीं पाई है.
15 लोगों की जान लेने वाले इस विस्फोट के कुछ ही समय बाद पुलिस ने संदिग्धों के जो स्केच (रेखाचित्र) जारी किए उनके आधार पर शहर में स्केच से मिलते-जुलते चेहरों वाले 100 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की गई. इन्हें बाद में छोड़ दिया गया. पुलिस के कलाकारों के तैयार किए ये स्केच इतने अस्पष्ट थे कि उनसे कोई मदद मिलना मुश्किल ही था.
जब विस्फोट के असली किरदार पकड़े गए तो उनकी शक्ल स्केच से कहीं से भी नहीं मिलती थी. मुंबई में 11 जून को वरिष्ठ पत्रकार ज्योर्तिमय डे की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार सतीश कालिया की शक्ल भी पुलिस के कलाकारों के तैयार किए स्केच से बिल्कुल ही नहीं मिलती थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि पुलिस के पास स्केच बनाने वाला एक ही कलाकार-26 वर्षीय नरेश कोर्डे है, जिन्होंने मुंबई, पुणे, गोरखपुर, हैदराबाद और वाराणसी में हुए तमाम बम विस्फोटों के साथ-साथ बलात्कार और हत्या के अनगिनत मामलों से जुड़े अपराधियों के स्केच तैयार किए हैं.
हरेक अपराध के बाद संदिग्ध लोगों के स्केच बनाना और उन्हें जारी करना अब एक औपचारिकता बन गया है. पुलिस उम्मीद करती है कि लोग स्केच से मिलते-जुलते लोगों को ढूंढ़ेंगे लेकिन अपराध से जुड़े इन स्केचों की कहानी की कामयाबी की दास्तान बहुत उत्साहवर्धक नहीं है. जांच एजेंसियां इन स्केचों को जांच प्रक्रिया में महत्वपूर्ण मानती हैं, हालांकि इन्हें स्वीकार करने लायक सबूत नहीं माना जाता.
कोर्डे ने अपना पहला स्केच 1999 में घाटकोपर पुलिस के लिए बनाया था जब वे महज 14 बरस के थे. उन्होंने एक मरे हुए शख्स का बिल्कुल पहले जैसा चेहरा बना दिया था जिसकी बहुत ज्यादा पिटाई होने के कारण उसकी पहचान करना मुश्किल था. उसे एक गटर में फेंक दिया गया था. इस शख्स के स्केच से उसकी पहचान करने में पुलिस सफल हो सकी और जांच शुरू हो सकी. तब से कोर्डे स्केच बनाने वाले अकेले कलाकार हैं जिन पर मुंबई पुलिस भरोसा करती है. अगर कोर्डे उपलब्ध नहीं होते तो मुंबई पुलिस दिल्ली से स्केच बनाने वाले कलाकार को बुलाती है.
कोर्डे अब अपने तैयार किए एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से स्केच बनाते हैं. मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि हुलिये के आधार पर स्केच तैयार करने के लिए उनके पास टेक्नोलॉजी नहीं है. कोर्डे पुलिस के उसका सॉफ्टवेयर खरीदने की पेशकश ठुकरा चुके हैं. उनका कहना है, ''अगर मैं इसे बेचता हूं और दूसरे लोगों को इसका इस्तेमाल सिखाता हूं तो मैं बेरोजगार हो जाऊंगा.''
लोगों के लिए जारी किए जाने वाले स्केच का एकदम -ब- होना इस बात पर निर्भर करता है कि प्रत्यक्षदर्शियों ने अपराधी को कितने ध्यान से देखा है, और उन्हें उसकी शक्ल किस हद तक याद है और वे कलाकार को उसका हुलिया किस तरह बताते हैं. अपराधी के ब्यौरे में उसकी नाक, उसका हेयर स्टाइल, आंखें, भौहें, ठुड्डी, गाल, कद-काठी, लंबाई तथा दूसरी बातें शामिल हैं.
कोर्डे का कहना है, ''फाइनल स्केच तैयार करने से पहले विभिन्न गवाहों की बात सुनने के लिए मुझे छह घंटे से भी ज्यादा समय तक बैठना पड़ता है. अगर इस प्रक्रिया में कोई गलती हो जाती है तो स्केच सही नहीं बनता. हर व्यक्ति के कम-से-कम चार हमशक्ल होते हैं. इसलिए 100 फीसदी सही स्केच बनाना मुश्किल होता है.''
मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त एम.एन. सिंह मानते हैं कि स्केच से केवल 25 प्रतिशत जानकारी मिल पाती है. ''ये जांचकर्ताओं के लिए मददगार होते हैं जिन्हें शून्य से जांच शुरू करनी होती है.'' हालांकि महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने 13 जुलाई को मुंबई में हुए बम विस्फोटों के संदिग्धों के स्केच नहीं जारी करने का फैसला किया है. उसका कहना है कि स्केच से जांच में बाधा आ सकती है.