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हरियाणा में अपने धाराओं के तीन धुनी

बात 8-9 साल पहले की है. हरियाणा के एक अखबार में खबर छपी, जिसका शीर्षक थाः 'शाकाहार खाएंगे तो होगी बेटी.' हरियाणा में स्त्री-पुरुष अनुपात पहले से ही गड़बड़ाया हुआ था (1,000 पुरुषों के मुकाबले 861 स्त्रियां). सो, दूर तक और घातक असर करने वाली इस खबर को नजरअंदाज करना दिल्ली हाइकोर्ट के एक जागरूक वकील दीपक मिगलानी के लिए मुश्किल हो गया, जो उस वक्त कानून के छात्र थे.

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बात 8-9 साल पहले की है. हरियाणा के एक अखबार में खबर छपी, जिसका शीर्षक थाः 'शाकाहार खाएंगे तो होगी बेटी.' हरियाणा में स्त्री-पुरुष अनुपात पहले से ही गड़बड़ाया हुआ था (1,000 पुरुषों के मुकाबले 861 स्त्रियां). सो, दूर तक और घातक असर करने वाली इस खबर को नजरअंदाज करना दिल्ली हाइकोर्ट के एक जागरूक वकील दीपक मिगलानी के लिए मुश्किल हो गया, जो उस वक्त कानून के छात्र थे.

वे भारतीय प्रेस परिषद गए, जिसने अखबार को माफीनामा छापने के आदेश दिए. पर न तो माफीनामा छपा और न ही हुई कोई कार्रवाई. इससे मिगलानी को बेहद कोफ्त हुई. क्या करें? जनांदोलन! अपने कानूनी अधिकारों के प्रति आम जनता के जागरूक होने तक वह भी मुमकिन नहीं. संकल्प की घड़ी थी. मिगलानी ने तय कर लिया कि इंटरनेट के जरिए वे जनता को इस बारे में जागरूक करके रहेंगे. भाई दिनेश भी साथ आ जुटे, जो पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में वकील थे.

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पांच साल पहले शुरुआत हुई भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धाराओं की जानकारी आसान भाषा में इंटरनेट पर देने के साथ, याहू ग्रुप्स पर लीगल 'टिप आव द डे' नाम से. इसे पहले कोई 400 लोगों के पते पर भेजा गया. प्रतिक्रिया खासी उत्साहजनक रही. 2007 में इस प्रयास को नाम दिया गया लीगल प्वाइंट फाउंडेशन, एक स्वयंसेवी संगठन. उनकी बात फैलने लगी. 2009 से कई सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों के जरिए हफ्ते में 2-3 दफा 50,000 से भी ज्‍यादा लोगों को लीगल टिप यानी कानूनी मशविरा मुहैया करवाया जाने लगा.{mospagebreak}

मशविरे भी कितने जरूरीः कर्ज लेकर दिवालिया घोषित हुए तो न कारोबार कर सकते हैं, न सरकारी नौकरी; दो जगह मतदाता बने या राशनकार्ड रखा तो नौकरी तक जा सकती है; किसी बैंक से शिकायत है तो इसी मकसद से बनाए रिजर्व बैंक के एक मंच पर जाइए.

मातृत्व अवकाश के दौरान सेवामुक्त हुई महिलाओं ने सलाह लेकर अपने नियोक्ताओं को बताया कि वे कानूनन गलती कर रहे हैं. पिछले दो साल से लीगल टीप पा रहे हैदराबाद के संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रवीण कुमार साफ कहते हैं, ''आइपीसी में लगातार नई धाराएं जुड़ रही हैं. वक्त की कमी से कानूनी किताबें भी खंगालना मुश्किल होता है. ऐसे में ये टिप मेरे काफी काम आ रहे हैं.''

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मिगलानी बंधुओं की इस पहल में पंचकूला (हरियाणा) के एक कानूनी पेशेवर कमलजीत भी आ जुटे. इस तिकड़ी ने इसी साल जनवरी में फेसबुक पर लीगल इंडिया ग्रुप नाम की एक और इकाई बनाई, जिसके सदस्यों की संख्या 2,000 से ऊपर हो चुकी है.

बहरहाल, आज देश के अलग-अलग हिस्सों में फाउंडेशन के 100 से ज्‍यादा कार्यकर्ता सक्रिय हैं. फेसबुक पर एक 'लिखो इंडिया ग्रुप' बनाया गया है, जिसके तहत विदेशों में भारतीयों पर नस्ली हमले और ऑनर किलिंग जैसे मुद्दों पर ध्यान खींचने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्‍यादा से ज्‍यादा चिट्ठी लिखने की लोगों से अपील की जाएगी. इस तिकड़ी का अगला लक्ष्यः दो साल में लीगल कॉल सेंटर और लीगल टिप एसएसएस सेवा शुरू करना. तमाम सेवाओं के बदले वे लेते क्या हैं? ''मेल एड्रेस'' ताकि इस जागरूकता अभियान से कोई अछूता न रह जाए.

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