सरकार ने इच्छा जतायी कि राजनीतिक दलों के बीच आम राय बनने के बाद ही लोकपाल विधेयक राज्यसभा में आए.
विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने संसद भवन परिसर में कहा, ‘हम चाहेंगे कि आम राय बनने के बाद ही विधेयक राज्यसभा में आए. यदि विधेयक लाकर और उसके बाद उस पर सदन में आम राय बनाने की कोशिश की जाए तो इससे कुछ परेशानियां खड़ी हो जाएंगी.’
उनसे सवाल किया गया था कि क्या लोकपाल विधेयक संसद के चालू सत्र में लिया जाएगा.
सूत्रों के अनुसार, सरकार तृणमूल कांग्रेस जैसे घटक दलों के साथ ही विपक्षी दलों को मनाने के लिए लोकपाल विधेयक में से राज्यों में लोकायुक्तों के गठन के प्रावधान को हटा सकती है.
ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि घटक दलों और विपक्ष की मांग पर झुकते हुए सरकार राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति संबंधी प्रावधान को राज्यसभा में विधेयक को लाने से पूर्व हटा सकती है.
हालांकि एक मंत्री ने बुधवार को बताया था कि मतभेदों को दूर करने के लिए राजनीतिक दलों से अभी भी बातचीत जारी है.
सूत्रों ने बताया कि बहुप्रतीक्षित विधेयक में तीन-चार अड़चनें हैं. इस विधेयक का मकसद भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी तंत्र की स्थापना करना है तथा सरकार इन अड़चनों पर आम राय बनाने का प्रयास कर रही है.
राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की अन्ना हजारे की मांग पर खुर्शीद ने कहा कि हजारे कहते हैं कि राज्यों में लोकायुक्त होना चाहिए लेकिन दिल्ली में उनके समर्थक सरकार से कुछ और ही चाहते हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विधेयक के संबंध में मुद्दों को सुलझाने के लिए 23 मार्च को एक सर्वदलीय बैठक बुलायी थी. बैठक में कोई आम राय नहीं बन पायी लेकिन यह फैसला किया गया कि दल विधेयक पर बातचीत जारी रखेंगे.
यह विधेयक पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में पारित नहीं कराया जा सका था. विपक्ष ने सरकार पर अल्पमत में होने के कारण मत विभाजन से भागने का आरोप लगाया था और हाई वोल्टेज ड्रामे के बीच सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था.
उसी सत्र में यह विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका था लेकिन राज्यसभा में इसे सत्र के अंतिम दिन लाया गया और संप्रग के घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने उस समय सरकार को संकट से निकालने में मदद से इनकार कर दिया.
इस साल भी सर्वदलीय बैठक में तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक जैसे घटक दलों के साथ ही विपक्ष ने लोकपाल के साथ ही राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति के प्रावधान का विरोध किया था. ये दल चाहते थे कि राज्य इस मामले में फैसला करने के लिए स्वतंत्र हों.