लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में यूपीए सरकार को अवैध करार देते हुए कहा कि उसने करोड़ों रुपये देकर सरकार बचाई है.
असम में हुए हिंसा पर लोकसभा में बोलने के दौरान आडवाणी ने 2008 में यूपीए सरकार द्वारा विश्वास मत हासिल करने के संदर्भ में ये बातें कही.
आडवाणी ने असम हिंसा पर भी केंद्र और असम की सरकार को कटघरे में खड़ा किया. उन्होंने तरुण गोगोई को निशाने पर लिया और उनके एक बयान पर प्रतिक्रिया दी. आडवाणी ने कहा, ‘तरुण गोगोई कहते हैं कि असम ज्वालामुखी के ऊपर बैठा है. तो यह ज्वालामुखी किसने बनाया.’
उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेशी वोटर को संदेहास्पद वोटर की संज्ञा दी जाती है. अगर कोई संदेहास्पद है तो वो वोटर कैसे हो सकता है. जो भारत का नागरिक है उसे ही वोट देने का अधिकार है. इस समस्या को भारतवासी और विदेशी के संदर्भ में देखना चाहिए.’
यह कटु सत्य है कि चुनाव में बांग्लादेशी मतदाताओं का वोट राजनीतिक पार्टी के लिए मददगार साबित होता है. आडवाणी ने कहा कि इसी वोट के लिए घुसपैठ को बढ़ावा दिया गया और उन्होंने घुसपैठ के विरोध में 1980 के दशक में असम छात्र आंदोलन का संदर्भ दिया.
हालांकि आडवाणी ने कहा, ‘कोई बांग्लादेशी आता है और उसको कोई मारता है तो यह कोई खुशी की बात नहीं है. अगर भारतवासी है और वो बेघर हो गया है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है.’
आडवाणी ने कहा कि बांग्लादेशी विस्थापितों की समस्या की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन जब 1980 में वहां के छात्रों ने इसके खिलाफ आंदोलन किया तो यह सबकी नजर में आया.
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने राजनीतिक जीवन में ऐसा आंदोलन कभी नहीं देखा था. उन्होंने शांतिपूर्वक आंदोलन किया. आंदोलन के नेता के कहने पर पूरा असम बंद रहता था. उन्होंने चुनाव का भी बहिष्कार किया. लेकिन तब कि केंद्र सरकार ने आईएमडीटी एक्ट, 1983 लागू करके छात्र आन्दोलन पर नियंत्रण किया और असम में घुसे बांग्लादेशियों को सुरक्षा प्रदान की.’
उन्होंने कहा, ‘2003 में सुप्रीम कोर्ट ने आईएमडीटी एक्ट को एक याचिका के तहत निरस्त कर दिया. लेकिन अब तक इस समस्या का हल नहीं हो सका है.’
आडवाणी ने भारत सरकार से सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की पुरजोर वकालत की. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि असम हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा की जगह जातीय हिंसा कहना भी सही नहीं है.