‘यत्र नायरुस्तु पूजयन्ति तत्र रमन्ति देवता’, पर अब लगता है कि यह आदर्श वाक्य हमारे पवित्र ग्रंथ की ही शोभा बढ़ा रहा है क्योंकि तमाम कानूनों के बावजूद हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा न केवल जारी है बल्कि बढ़ी भी है.
एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर तीन मिनट पर महिला के खिलाफ हिंसा से संबंधित एक मामला दर्ज होता है. हर दिन दहेज से संबंधित 50 मामले सामने आते हैं तथा हर 29 वें मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार होता है. वैश्विक स्तर पर हर 10 महिलाओं में एक महिला अपने जीवन में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होती है.
दरअसल महिला के जन्म लेने के साथ ही उसके खिलाफ हिंसा चक्र शुरू हो जाता है. महिला जहां घर में बालिका भ्रूण हत्या से लेकर ऑनर किलिंग, दहेज हिंसा, पति और परिवार के अन्य सदस्यों के बुरे बर्ताव तथा अन्य घरेलू हिंसा का शिकार होती है. वहीं घर की दहलीज के बाहर भी उन्हें युवक द्वारा उनपर अम्ल फेंके जाने, साइबर अपराध, एमएमएस, दफ्तर में छेडछाड़ जैसी कई तरह की हिंसा से दो चार होना पड़ता है.{mospagebreak}
मध्यप्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ सविता इनामदार कहती हैं कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा घर से शुरू हो जाती है. लोग परिवार में ही लड़के और लड़कियों में भेदभाव करते हैं. जहां लड़कों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए पढ़ाया लिखाया जाता है वही लड़कियों की केवल शादी के लिए परिवरिश की जाती है.
इनामदार ने कहा कि दरसअल लड़कियों को महज वंशवृद्धि का माध्यम मान लिया जाता है. इस सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. लड़कियों की भी लड़कों की भांति उचित शिक्षा परवरिश आदि होनी चाहिए और उन्हें भी अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए तैयार किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि लड़कियों के लिए शादी जीवन में महत्वपूर्ण जरूर है लेकिन अनिवार्य नहीं होना चाहिए. वर्ष 1994 के विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक लड़कियों और महिलाओं के लिए जिन दस जोखिम कारकों का चयन किया गया है उनमें बलात्कार और घरेलू हिंसा को कैंसर, सड़क दुर्घटना, युद्ध मलेरिया को ज्यादा खतरनाक माना गया है.
जानी मानी महिला कार्यकर्ता डॉ रंजना कुमार कहती हैं कि पुलिस आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है लेकिन खुशी की बात यह है कि अब बहुत सी महिलाओं हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचती हैं और कई मामलों में उन्हें परिवार के सदस्य भी सहयोग करते हैं. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि बालिका भ्रूण हत्या की वजह से लगातार महिला पुरूष अनुपात बिगड़ता जा रहा है लेकिन इसके लिए न केवल हमारी सामाजिक मानसिकता बल्कि सरकारी मशीनरी भी जिम्मेदार है. लोग बेटे के लालच में बेटियों को मार देते हैं जबकि जिन प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है वे भी इसपर समुचित ध्यान नहीं दे रहे.
कुमारी ने कहा कि उपभोक्तावादी संस्कृति से भी खासकर शहरों में हिंसा में इजाफा हुआ है. शहरों में मध्यमवर्गीय परिवार के लोग पहले तो महिला को नौकरी करने देना नहीं चाहते लेकिन जब वह नौकरी करने लगती है तब अक्सर उसकी तनख्वाह के खर्च को लेकर कहासुनी और मारपीट तक की नौबत आ जाती है.
उन्होंने कहा कि जहां तक ऑनर किलिंग की बात है तो यह हमारी सामंतवादी सोच का परिचायक है और खाप पंचायतें इसे बढ़ावा दे रही हैं. उन्होंने कहा कि ठीक है कि कुल में शादी नहीं हो, तो इसके लिए समझाया बुझाया जा सकता है लेकिन जो शादियां हो चुकी हैं उन्हें तोड़ना या लड़की की हत्या करना बिल्कुल जायज नहीं है. {mospagebreak}
कुमारी ने कहा कि सबसे प्रमुख पहलू यह हैं कि खाप पंचायत के लोग गांव के धनी और दबंग लोग होते हैं और इस प्रकार की हत्या निम्नम ध्यमवर्गीय परिवारों में होती है. उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के प्रति समाज में बदलाव आ तो रहा है लेकिन वह बहुत ही धीमा है.
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1999 में एक प्रस्ताव के माध्यम से 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया था. डोमनिक गणतंत्र में तीन मीराबेल बहनों की उनकी राजनीतिक गतिविधियों को लेकर 1960 में क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गयी थी, उन्हीं की याद में यह दिवस मनाया जाता है.