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युद्ध अपराध: भारत ने की श्रीलंका के खिलाफ वोटिंग

संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवाधिकार निकाय ने एक प्रस्ताव को पारित कर लिट्टे के खिलाफ लड़ाई में कथित युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका की निंदा की है. अमेरिका प्रायोजित इस प्रस्ताव पर भारत ने पश्चिमी देशों का साथ देते हुए उसके पक्ष में मतदान किया.

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संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवाधिकार निकाय ने एक प्रस्ताव को पारित कर लिट्टे के खिलाफ लड़ाई में कथित युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका की निंदा की है. अमेरिका प्रायोजित इस प्रस्ताव पर भारत ने पश्चिमी देशों का साथ देते हुए उसके पक्ष में मतदान किया.

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47 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत समेत 24 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 15 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया. आठ देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

आम तौर पर देश विशेष से जुड़े प्रस्ताव पर मतदान नहीं करने वाले भारत ने द्रमुक समेत तमिलनाडु की पार्टियों की ओर से जबर्दस्त दबाव के बाद अंतिम समय में अपने रुख में परिवर्तन करते हुए श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया. द्रमुक इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से अपने मंत्रियों को हटाने पर विचार कर रही थी.

दिलचस्प बात यह है कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत भारत के पड़ोसियों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया. मालदीव ने कहा कि प्रस्ताव जरूरी नहीं है और श्रीलंका को रिकमेंडेशन्स ऑफ द लेसंस लर्न्‍ट एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन (एलएलआरसी) को लागू करने के लिए समय दिया जाना चाहिए. मतदान श्रीलंका के बागान उद्योग मंत्री महिंदा समरसिंघे की ओर से जोरदार विरोध के बाद हुआ.

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उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के बारे में बाहर से कोई भी उनके देश को आदेश नहीं दे सकता. प्रस्ताव में सरकार से कहा गया कि वह स्पष्ट करें कि कैसे वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के कथित उल्लंघन का निराकरण करेगी और कैसे वह एलएलआरसी की सिफारिशों को लागू करेगी. इसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय को प्रोत्साहित किया कि वह श्रीलंका को सलाह और सहायता की पेशकश करे और सरकार इसे स्वीकार करे.

प्रस्ताव के समर्थन में मतदान करने के अपने रुख को स्पष्ट करते हुए भारत ने कहा कि उसका मानना है कि मानवाधिकारों के प्रोत्साहन और रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यों पर होती है. उसने कहा कि वह प्रस्ताव के व्यापक संदेश और जिस उद्देश्य को यह प्रोत्साहित करता है उसका समर्थन करता है. उसने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय से कोई भी सहायता या यूएन स्पेशल प्रोसिजर्स की कोई भी यात्रा श्रीलंकाई सरकार के साथ विचार-विमर्श के जरिए होनी चाहिए.

स्पष्टीकरण नोट में कहा गया है, ‘ये मानदंड हैं जिसका परिषद में हम सब समर्थन करते हैं. श्रीलंका जैसे लोकतांत्रिक देश को सुलह और शांति के लक्ष्य को हासिल करने लिए समय दिया जाना चाहिए.’ भारत ने कहा कि परिषद में सबकी जिम्मेदारी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि ‘हमारे निष्कर्ष इस लक्ष्य में बाधा पहुंचाने की बजाय इसमें योगदान करते हैं.’

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भारत ने श्रीलंकाई सरकार से यह भी अनुरोध किया कि वह व्यापक बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाए और 13 वें संविधान संशोधन को लागू करने समेत सत्ता के सार्थक हस्तांतरण की दिशा में ठोस प्रगति दर्शाए. उसने कहा, ‘हम श्रीलंका से यह भी अनुरोध करेंगे और वह जवाबदेही के उपायों को आगे बढ़ाए और मानवाधिकारों को प्रोत्साहन दे जिसके लिए वह प्रतिबद्ध है. इन्हीं कदमों की परिषद में हम घोषणा करते हैं जो अल्पसंख्यक तमिल समुदाय समेत श्रीलंका के सभी समुदायों के बीच वास्तविक मेल-मिलाप कायम करेगा.’

भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र परिषद को श्रीलंका की सरकार ने इस सत्र में रिपोर्ट और अन्य उपायों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी दी है. उसने कहा, ‘हम इन कदमों का स्वागत करते हैं. हम आश्वस्त हैं कि रिपोर्ट का कार्यान्वयन वास्तविक मेल-मिलाप को बढ़ावा देगा.’

श्रीलंका में घटनाक्रमों से अछूता नहीं रह सकने की बात करते हुए भारत ने कहा कि वह श्रीलंका से बातचीत जारी रखेगा ताकि मेल-मिलाप की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके जिससे उसके सभी नागरिकों का समानता, मर्यादा, न्याय और आत्म सम्मान पर आधारित भविष्य सुनिश्चित किया जा सके. समरसिंघे ने अमेरिका प्रायोजित प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए इसे ‘गलत समझा गया, गैर जरूरी और गलत समय पर पेश किया गया’ प्रस्ताव करार दिया. इस दौरान उनके साथ श्रीलंकाई विदेश मंत्री जी एल पीरिस और वरिष्ठ तमिल नेता और मंत्री डगलस देवनंदा भी मौजूद थे.

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द्वीप देश में मई 2009 में दशकों लंबे संघर्ष के खत्म होने के बाद स्थिरता और शांति हासिल करने का दावा करते हुए उन्होंने परिषद से कहा कि श्रीलंका को हासिल की गई प्रगति को और मजबूत बनाने के लिए और समय दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘प्रस्ताव में ऐसे कई हानिकारक तत्व हैं जो साफ तौर पर महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं जिसका भविष्य में प्रतिकूल प्रभाव न सिर्फ हमारे देश पर बल्कि अनेक अन्य देशों पर पड़ेगा.’

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