मनमोहन सिंह के बाद अब विदेशी पत्रिका ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर निशाना साधा है. लंदन की पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने भारतीय पत्रकार की किताब के हवाले से छापा है कि कांग्रेस के युवराज कन्फ्यूज्ड हैं.
कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का जिक्र होते ही कांग्रेस पार्टी के युवराज का चेहरा उभरने लगता है. एक ऐसी शख्सियत जो 2014 में पार्टी की अगुवाई कर सकते हैं. एक ऐसा नाम जिसके सहारे कांग्रेस आगे की राजनीतिक नैया को खेना चाहती है.
लेकिन कांग्रेस की उम्मीदों की इस पहचान पर उठने लगे हैं कई सवाल. सवाल उनकी काबिलियत को लेकर, सवाल उनकी समझ को लेकर, सवाल उनकी नीतियों को लेकर. क्या गांवों में यूं मिट्टी ढोना असर नहीं कर रहा? क्या बच्चों से यूं खेलना उन्हें लोगों से नहीं जोड़ रहा? क्या दलितों के बीच खाना बेअसर हो रहा है? क्या राहुल के भाषण आम लोगों को नहीं लुभाते? क्या विरोधियों पर जोरदार हमला करनेवाले राहुल कन्फ्यूज्ड हैं?
ये तमाम सवाल आज इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि एक अंग्रेजी पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने राहुल गांधी के बारे में छापी हैं कुछ बेहद अलग सी बातें. बातें ऐसी जो राहुल गांधी की राजनीतिक समझदारी पर ही सवाल खड़े कर रही हैं. बातें ऐसी जो राहुल गांधी की काबिलियत को ही कटघरे में खड़ा कर रही हैं.
द इकोनॉमिस्ट ने अपने लेख में हवाला दिया है एक भारतीय लेखिका आरती रामचंद्रन की एक किताब का. विदेशी पत्रिका दावा करती है कि वो जो लिख रही है, उसका आधार आरती रामचंद्रन की नई किताब 'डिकोडिंग राहुल गांधी' ही है.
आरती की किताब के आधार पर द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है, 'किताब के मुताबिक, ऐसा साफ लगता है कि ब्रांड राहुल पूरी तरह से कनफ्यूज्ड है. एक व्यक्ति जिसके पास हर तरह की सुविधाएं हैं, जो सिर्फ अपने परिवार की वजह से खड़ा है, वो अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए जूझता दिखता है.'
द इकोनॉमिस्ट के तीर राहुल गांधी के लिए और भी हैं. पत्रिका को राहुल की हर रणनीति में कमजोरी दिखती है. पत्रिका में ये जोर देकर लिखा गया है कि समस्या ये है, 'राहुल गांधी ने अब तक राजनेता के तौर पर कोई बड़ी समझदारी नहीं दिखाई है. ना उनमें जिम्मेदारियों की भूख दिखती है. वो शर्मिले हैं. वो पत्रकारों से बात करना नहीं चाहते हैं. ना ही संसद में अपनी आवाज बुलंद करते हैं. किसी को ये समझ में नहीं आ रहा है कि वो किस काबिल हैं. संदेह इसका भी है कि राहुल गांधी खुद भी अपने आप को समझ पा रहे हैं.
जाहिर है, राहुल पर किसी पत्रिका का ये निशाना पहली बार है. लेकिन पहले प्रधानमंत्री और अब राहुल गांधी, कांग्रेस के दो बड़े नेताओं पर एक के बाद एक ऐसे हमले कांग्रेस के लिए चिंता के सबब तो हैं ही.