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शोकाकुल इंदिरा क्यों शामिल हुईं शास्त्री जी के मंत्रिमंडल में?

अपने पिता जवारलाल नेहरू के निधन के बाद शोकाकुल इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल हो गई थीं, क्योंकि उन्हें आभास था कि इंकार करने पर उनकी बुआ विजया लक्ष्मी पंडित को आमंत्रित किया जा सकता है, जिनसे उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे. यह बात इंदिरा के विश्वासपात्र रहे जनक राज जय ने कही.

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इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी

अपने पिता जवारलाल नेहरू के निधन के बाद शोकाकुल इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल हो गई थीं, क्योंकि उन्हें आभास था कि इंकार करने पर उनकी बुआ विजया लक्ष्मी पंडित को आमंत्रित किया जा सकता है, जिनसे उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे. यह बात इंदिरा के विश्वासपात्र रहे जनक राज जय ने कही.

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जनक राज जय बताते हैं कि जब शास्त्री जी ने इंदिरा से अनुरोध किया कि नेहरू जी की अस्थियां इलाहाबाद के संगम में विसर्जित करने के बाद वह उनकी सरकार में शामिल हो जाएं तो शुरुआत में उन्होंने झिड़क दिया था.

जय अब 82 वर्ष के हो गए हैं. यूनिवर्सल लॉ पब्लिशिंग कम्पनी से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘स्ट्रोक्स ऑन लॉ एंड डेमोक्रेसी इन इंडिया’ में वह कहते हैं कि उन्होंने संयोग से शास्त्री जी को इंदिरा से यह कहते सुना था कि उनकी सरकार में नेहरू परिवार का एक व्यक्ति अवश्य होना चाहिए.

612 पन्नों की यह पुस्तक गुरुवार को जारी हुई. इस पुस्तक के अनुसार, शास्त्री जी ने इंदिरा से यह बात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर टहलते हुए कही थी. साथ में लेखक भी थे जो उनकी बातों की ओर कान लगाए हुए थे.

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शास्त्री जी के आग्रह पर इंदिरा तमतमा गई थीं. उन्होंने जवाब में कहा कि प्रधानमंत्री उनसे यह अपील तब कर रहे हैं, जब वह शोकमग्न हैं.

राज कहते हैं, ‘उन्होंने सममुच उन्हें झिड़क दिया था. शास्त्री जी को जरूर शर्मिदगी महसूस हुई होगी, क्योंकि इंदिरा ने यह बात मेरी मौजूदगी में कही थी. शास्त्री जी को झिड़कने के बाद उन्हें पीछे छोड़कर इंदिरा तेजी से आगे बढ़ गई थीं.’

तत्कालीन प्रधानमंत्री तब बुदबुदा उठे, ‘यदि इंदिरा मेरे मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होती हैं तब मुझे विजय लक्ष्मी पंडित को शामिल होने के लिए कहना पड़ेगा.’

लेखक बताते हैं कि उन्होंने यह बात थोड़े ही दिन बाद इंदिरा गांधी को बता दी. जय कहते हैं, ‘मैंने पूरी ईमानदारी से सोचा था कि इंदिरा गांधी नए मंत्रिमंडल में शामिल होने योग्य उपयुक्त व्यक्ति हैं.’

वह लिखते हैं, ‘जब इंदिरा गांधी को अहसास हुआ कि उनकी बुआ विजय लक्ष्मी मंत्री बन सकती हैं, तब उन्होंने मुझे से शास्त्री जी से मुलाकात का समय तय करवाने के लिए कहा.’

जय के मुताबिक, आखिरकार इंदिरा गांधी शास्त्री जी से मिलीं और उनसे कहा कि उनके मंत्रिमंडल में शामिल होकर उन्हें गर्व महसूस होगा, लेकिन उन्होंने ‘कोई हल्का मंत्रालय’ देने के लिए कहा. उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया गया.

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जय ने अपनी इस किताब में और भी कई रोचक खुलासे किए हैं.

* जब अमिताभ बच्चन को रोजगार की तलाश थी तब वह इंदिरा के पास पहुंचे. इंदिरा ने जय को कहा कि वह बंगाल के राज्यपाल पद्मजा नायडू को एक पत्र लिखें और अतिमाभ को कोई उपयुक्त नौकरी दिए जाने का आग्रह करें. इस प्रकार अमिताभ को कलकत्ता में पहली नौकरी मिली.

* तत्कालीन रक्षा मंत्री वी. के. कृष्ण मेनन अपने ड्राइवर के पैरों में छड़ी से मारते थे जब भी वह गाड़ी धीमी गति से चलाता.

* इंदिरा गांधी ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दूसरी बार राष्ट्रपति बनने से रोका था और उनकी जगह जाकिर हुसैन के नाम को आगे बढ़ाया. इस प्रकार इंदिरा ने अपने संरक्षक संत को धोखा दिया जिसने उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रूप में प्रशिक्षित किया.

* एक बार नेहरू अपनी कार से कार्यालय जा रहे थे. रास्ते में साउथ एवेन्यू के पास उनकी गाड़ी पंक्चर हो गई. एक टैक्सी ड्राइवर ने जब यह देखा तो उसने नेहरू से आग्रह किया कि वह उसकी टैक्सी में बैठ जाए. उसी टैक्सी से नेहरू कार्यालय पहुंचे. नेहरू के पास उस समय टैक्सी चालक को देने के लिए पैसे भी नहीं थे और चालक ने भी इसे संज्ञान में नहीं लिया.

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* लंदन जा रहे नेहरू ने एक बार अपने नाई से पूछा कि उसे कुछ चाहिए तो नहीं. उसने कहा, ‘सर कभी-कभी मैं देरी से पहुंचता हूं क्योंकि मेरे पास कोई घड़ी नहीं है. यदि यह मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा.’ नेहरू ने उसके लिए लंदन में घड़ी खरीदी और उसे भेंट किया.

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