दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव आते ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की तरह यहां भी ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ कराने की चर्चा होने लगती है, लेकिन इस बार भी यहां प्रेसिडेंशियल डिबेट संभव नहीं हो सका. जबकि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ होने वाली है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के निर्वाचन अधिकारी डॉ. सतीश कुमार की राय में इस विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ के लिए उपयुक्त माहौल नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ को लेकर किसी भी छात्र संगठन की तरफ से विश्वविद्यालय प्रशासन को कोई लिखित आग्रह नहीं मिला है.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय न केवल दिल्ली बल्कि देश और विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में गिने जाते हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ की परंपरा रही है, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में नहीं होती.
दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ कराए जाने के सवाल पर साफ इंकार करते हुए इस विश्वविद्यालय के निर्वाचन अधिकारी डॉ. सतीश कुमार ने कहा, ‘इस विश्वविद्यालय का खुला परिसर ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ के लिए सबसे बड़ी बाधा है. यहां कॉलेजों का क्षेत्र भी बड़ा है, जिसके कारण एनएसयूआई, एबीवीपी के कार्यकर्ताओं के बड़ी संख्या में पहुंचने पर इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा.'
उन्होंने कहा कि कई बार एबीवीपी और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की खबरें आती हैं और ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ के दौरान ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर विश्वविद्यालय के लिए परेशानी हो सकती है. हालांकि हमें ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ को लेकर अभी तक किसी की तरफ से कोई आग्रह नहीं मिला है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रोफेसर डी. एस. रावत ने कहा, ‘इस विश्वविद्यालय में प्रेसिडेंशियल डिबेट तो नहीं होती, लेकिन छात्र संगठनों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो चैनल ‘दिल्ली विश्वविद्यालय कम्युनिटी रेडियो’ (डीयूसीआर) पर चुनाव प्रचार की इजाजत है. बस, प्रचार से कोई हिंसा नहीं फैलनी चाहिए. पिछले साल भी हमने संगठनों को डीयूसीआर पर प्रचार करने की इजाजत दी थी. इस साल अभी तक किसी भी संगठन की तरफ इस तरह की मांग नहीं आई है.’
डीयूसीआर की प्रोग्राम मैनेजर विजयलक्ष्मी सिन्हा ने कहा, ‘दिल्ली विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो चैनल पर छात्र संगठनों को प्रचार की इजाजत है, लेकिन वे किसी भी तरह की राजनीति से प्रेरित या हिंसा फैलाने वाली बातें नहीं कर सकते. इसके लिए हम पहले उनकी पटकथा देखते हैं फिर उन्हें रेडियो पर बोलने की इजाजत मिलती है. पिछले साल भी ऐसा हुआ था. हालांकि इस बार अभी तक हमारे पास किसी संगठन की तरफ से चुनाव प्रचार के लिए समय नहीं मांगा गया है.’
वहीं दस सितंबर को अपने घोषणा पत्र जारी करने के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी अंकित चौधरी ने कहा था कि उनका संगठन विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ का पक्षधर है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से उन्हें सहयोग नहीं मिल रहा. दूसरी ओर एनएसयूआई का कहना है कि वे लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुरूप ही कोई कदम उठाएंगे.
आइसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी निकिता सिन्हा का कहना है कि उनका संगठन भी जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ कराने का पक्षधर है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया ठीक नहीं है. एसएफआई (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी कमल कुमार आर्य भी ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ के पक्षधर हैं. आरोप प्रत्यारोप के इस दौर में दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ की चर्चा जोर पकड़ रही है.
विश्वविद्यालय में ‘प्रेसिडेंशियल डिबेट’ नहीं होने के लिए कॉलेजों के विस्तृत क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण कारण बताया गया है. हालांकि छात्र संगठनों द्वारा विश्वविद्यालय के बंद परिसर की भी मांग उठती रही है. इस बार भी प्रमुख छात्र संगठन एनएसयूआई ने अपने घोषणा पत्र में बंद परिसर की मांग फिर से उठाई है.