एक और जिन्न वर्षों तक बंद रहने के बाद बोतल से बाहर आ गया है और यूपीए सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है.
पिछले नवंबर में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने कांग्रेस और सरकार को बुरी तरह घेर लिया, जबकि तीन साल तक वह कोई मुद्दा ही नहीं था. और अब विकिलीक्स के खुलासे के बाद वोट के लिए सांसदों की खरीद का पुराना घोटाला, जो आम चुनावों के साथ दफन मान लिया गया था, कब्र से बाहर आ गया है. इन्हीं वोटों के कारण 22 जुलाई, 2008 को यूपीए सरकार संसद में बच गई थी.
विकिलीक्स के एक दस्तावेज में बताया गया है कि यूपीए के लिए सांसदों को खरीदने की खातिर 50 करोड़ रु. का खजाना एक अमेरिकी कूटनयिक को दिखाया गया था.
अतीत के भूत ने कांग्रेस को एक भुतहा घर में तब्दील कर दिया है. संसद में विपक्ष ने विकिलीक्स के केबल का सहारा लेकर सरकार को बहस के लिए मजबूर कर दिया है, जो संसदीय लोकतंत्र की एक बेहतरीन मिसाल बन गया है. जोश से भरे विपक्ष ने सरकार को बचाव की मुद्रा में ला दिया.
तेजतर्रार सुषमा स्वराज ने जहां लोकसभा में हमले की कमान संभाली, वहीं राज्यसभा में यह जिम्मा अरुण जेटली ने संभाला. सुषमा ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए तर्क और शायरी, दोनों का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक शेर के साथ सवाल कियाः ''तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा; हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.''{mospagebreak}
मनमोहन सिंह ने जवाब देते हुए कहा कि वे भाषण की कला में सुषमा का मुकाबला नहीं कर सकते लेकिन उन्होंने भी जवाब में एक शेर पढ़ डालाः ''माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं; तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख.''
सुषमा ने प्रधानमंत्री को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि उनकी सरकार पर जब भी कोई संकट आया, उन्होंने उससे किनारा कर लिया. उन्होंने कहा, ''अगर आपको कुछ भी नहीं पता, तो आप प्रधानमंत्री क्यों हैं?'' विकिलीक्स केबल के आधार पर परेशानी में पड़ी सरकार का बचाव करते हुए दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने विकिलीक्स के ही एक अन्य केबल का इस्तेमाल किया, जिसमें भारत अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के विरोध पर सवाल खड़ा किया गया है.
यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तब बहस के बीच अप्रत्याशित रूप से दखल दिया जब भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने यह पूछते हुए सरकार का मखौल उड़ाया कि ''दांव पर क्या लगा था? सरकार और उसके स्थायित्व के अलावा दांव पर भारत-अमेरिका परमाणु सौदा लगा था.'' इस पर सोनिया गांधी ने टिप्पणी की, ''वे यही बात आपकी सरकार के बारे में भी कहा करते थे.''
वे भी उस विकिलीक्स केबल का उल्लेख कर रही थीं, जिसमें परमाणु समझौते के प्रति आडवाणी के नरम रुख की बात की गई है.{mospagebreak}
रिश्वत के आरोपों से 10, जनपथ का नाम पहली बार जोड़ा गया है. विकिलीक्स केबल ने 50 करोड़ रु. के खजाने वाले प्रसंग में गांधी परिवार के करीबी सतीश शर्मा का भी उल्लेख किया है कि वे कांग्रेस के लिए सांसदों को खरीदने की कोशिश कर रहे थे. पूर्व सपा नेता अमर सिंह ने विकिलीक्स का ही मखौल उड़ाते हुए कहा, ''ये विकिलीक्स नहीं, विकेड लीक्स हैं.''
यह एक कारण हो सकता है कि विपक्ष संसद में व्यवधान डालने से परहेज करे. सांसदों की खरीद-घोटाले पर बहस में गंभीर तर्क और नोंक-झोंक छाए रहे. माकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने कांग्रेस को चेतावनी दी कि ''भाग्य उन पर मेहरबान रहा है लेकिन इतिहास क्रूर रहेगा.''
जब राकांपा नेता शरद पवार ने दखल देने की कोशिश की तो दासगुप्ता ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, ''आप तो हमेशा शांत रहे हैं. अब क्यों इतने संवेदनशील हो रहे हैं?'' बहस के अंत में प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, ''मैं एक बार फिर स्पष्ट करना चाहूंगा कि 2008 में विश्वास मत के दौरान कांग्रेस या सरकार का कोई व्यक्ति इस तरह के किसी भी गैरकानूनी कार्य में शामिल नहीं रहा है. हम किसी भी लेन-देन में शामिल नहीं रहे हैं और हमने किसी भी व्यक्ति को इस तरह के लेन-देन में शामिल होने के लिए अधिकृत नहीं किया.''
आखिर, 21 और 22 जुलाई, 2008 के बीच वास्तव में क्या हुआ? क्या इसकी गूंज 2जी और उससे पहले के बोफोर्स घोटाले की तरह कांग्रेस को परेशान करती रहेगी?{mospagebreak}
मनमोहन सिंह सरकार की कलई खोलने की योजना जयपुर के सौदेबाज सुहैल हिंदुस्तानी द्वारा तैयार की गई थी. सुहैल के भाजपा से संबंध रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन से नजदीकी बढ़ाई और दूसरी पांत के राष्ट्रीय नेताओं से अपने संपर्क बनाए.
9 जुलाई, 2008 को वाममोर्चा द्वारा समर्थन वापस लेने के तुरंत बाद, हिंदुस्तानी का कहना है कि उसे विभिन्न बिचौलियों के फोन आने लगे जो उनसे पूछने लगे कि क्या उनके पास ''बिक्री के लिए कोई प्लॉट है.'' हिंदुस्तानी स्पष्ट करते हैं कि इसका मतलब था कि क्या उनके पास कुछ सांसद हैं जिन्हें विश्वास मत के लिए खरीदा जा सके. हिंदुस्तानी बताते हैं, ''मैंने उनसे पूछा, कितने का कागज लगेगा?'' बिचौलियों ने जो रकम बताई, उससे हिंदुस्तानी चकित रह गए.
उन्होंने आगे इसकी जांच का फैसला किया और एस.पी. गुप्ता से संपर्क किया, जो अब हरियाणा काडर से सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी हैं. हिंदुस्तानी के मुताबिक, गुप्ता हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के गहरे विश्वासपात्र थे. गुप्ता तुरंत दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में एक कप कॉफी पीने के लिए पहुंच गए और हिंदुस्तानी से सांसदों की सूची के बारे में पूछा.
उन्होंने कहा कि वे उन्हें हुड्डा और अहमद पटेल, दोनों से मिलवाएंगे. उसी दिन बाद में हिंदुस्तानी इस्लामिक सेंटर में सपा नेता उदय प्रताप सिंह से मिले. इसके बाद हिंदुस्तानी ने अमर सिंह को पकड़ने का फैसला किया, क्योंकि तब अटकल लगाई जा रही थी कि तत्कालीन सपा नेता अमर सिंह यूपीए की मदद के लिए जरूरी संख्या जुटाने में व्यस्त थे.{mospagebreak}
उदय प्रताप ने कहा कि अमर सिंह से सीधा संपर्क न होने के कारण वे एक अन्य सपा नेता रेवती रमण सिंह से उन्हें मिला सकते हैं, जिनका अमर सिंह से सीधा संपर्क था.
हिंदुस्तानी कहते हैं कि तभी उनकी अंतरात्मा जागी. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''यह सत्ता की लड़ाई है. जहां कहीं भी तंत्र कमजोर पड़ता है, लोग कब्जा करने के लिए आ जाते हैं.'' उन्होंने सोचा कि परमाणु समझौते के लिए वोट का मतलब होगा देश के हितों के खिलाफ अमेरिका को वोट देना. इसलिए वे आडवाणी के निवास पर पहुंच गए और दावा किया कि कांग्रेस ने भाजपा के कम से कम 15 सांसदों का चुनाव किया है जिन्हें खरीदा जा सकता है.
हिंदुस्तानी से कहा गया कि वे आडवाणी के करीबी सुधींद्र कुलकर्णी से संपर्क करें. हिंदुस्तानी ने उन्हें सांसदों की सूची दी और कहा, ''अपने सांसदों को बचा लो. खरीद-फरोख्त पूरे जोर पर है और मुझे भाजपा के कुछ सांसदों को उनके खेमे में लाने के लिए पैसों का लालच दिया गया है.''
कुलकर्णी कहते हैं, ''मैं हिंदुस्तानी को एक समझदार कार्यकर्ता के तौर पर जानता था. इसलिए उनके दावे पर शक करने की कोई वजह नहीं थी.'' उन्होंने हिंदुस्तानी से पूछा, ''आपकी पहुंच कहां तक है.'' हिंदुस्तानी ने बताया, ''अहमद पटेल जी से लेकर अमर सिंह जी तक.'' कुलकर्णी ने तब दूसरे भाजपा नेताओं जैसे आडवाणी, जेटली, अनंत कुमार, शिवराज सिंह चौहान और सुषमा स्वराज से संपर्क किया. और तभी स्टिंग ऑपरेशन करने का विचार बनाया गया.{mospagebreak}
21 जुलाई को जेटली ने कुलकर्णी को बताया कि सीएनएन-आइबीएन चैनल स्टिंग ऑपरेशन के तैयार हो गया है. भाजपा के तीन नेता-अशोक अर्गल, महावीर भगोरा और फग्गन सिंह कुलस्ते-को चारे के तौर पर चुना गया. उनके नाम पहले ही बिक सकने वाले सांसदों की सूची में थे.
तब हिंदुस्तानी ने संदेश भिजवाए कि उनके पास बिकने के लिए तीन नेता तैयार हैं. वे बताते हैं कि तब वे होटल क्लेरिजेज में कांग्रेस के एक नेता अमन अरोड़ा के अलावा बूटा सिंह के बेटे लवली से मिले. वेजिटेबल सूप पीते हुए हिंदुस्तानी ने उन्हें बताया कि उनके पास तीन ''प्लॉट बिकाऊ हैं.'' उनका दावा है कि लवली ने तुरंत अपना सेलफोन निकाला और उस दिन (21 जुलाई, 2008) शाम 7.30 बजे पटेल के घर पर एक मीटिंग तय कर ली. तब प्रसन्नचित्त हिंदुस्तानी ने कुलकर्णी को सचेत कर दिया.
लेकिन सीएनएन-आइबीएन की टीम स्टिंग ऑपरेशन के लिए समय पर नहीं पहुंच सकी. इसलिए हिंदुस्तानी ने मीटिंग का समय बदल दिया. उनसे होटल ली मेरीडियन में मिलने के लिए कहा गया, जो संसद के एकदम करीब है. भाजपा के केवल दो सांसद-भगोरा और कुलस्ते-ही उस मीटिंग में गए.{mospagebreak}
पटेल होटल में मौजूद नहीं थे. हिंदुस्तानी, जो इन सांसदों के साथ गए थे, बताते हैं कि उस समय होटल की लॉबी में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग के बेटे, महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता कृपा शंकर सिंह और झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा दिखाई दे रहे थे. यह शायद संयोग ही होगा कि ये सभी नेता उस समय मौजूद थे जब झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुछ सांसद और पूर्वोत्तर के एक विपक्षी सांसद को कांग्रेस द्वारा फुसलाने की बात चल रही थी.
हिंदुस्तानी ने बाद में के.सी. देव की अगुआई वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को, जिसने मामले की जांच की, बताया कि वहां का माहौल ऐसा था जैसा कत्ल की रात का होता है. लेकिन सीएनएन-आइबीएन के टेपों में होटल में इनमें से किसी भी नेता की तस्वीर नहीं थी. उस समय इस न्यूज चैनल में काम करने वाले सिद्धार्थ गौतम उस दिन इनमें से किसी नेता की मौजूदगी से इनकार करते हैं.
पटेल को दबोचने के प्रयास में असफल होने के बाद यह दल फिर इकट्ठा हुआ और कुलकर्णी ने हिंदुस्तानी से रेवती रमण सिंह से संपर्क साधने को कहा. हिंदुस्तानी ने 4, फिरोजशाह रोड पर अर्गल के निवास पर इस दल से उन्हें मिलवाया. रेवती रमण सिंह जब वहां पहुंचे तो स्टिंग ऑपरेशन के लिए कैमरे तैयार थे.
{mospagebreak}वे चाहते थे कि दल उस रात अमर सिंह से मिले लेकिन सांसदों ने हिचक दिखाई क्योंकि वे जानते थे कि अमर सिंह के निवास के बाहर पहले कैमरे लगाने होंगे. जेपीसी को सौंपे गए सीएनएन-आइबीएन के टेपों में रेवती रमण सिंह सांसदों से कहते हुए सुने जा रहे हैं कि ''मैंने रकम के बारे में बात नहीं की है...हम सिर्फ आपके सामने रकम के बारे में बात करेंगे...मैं कैसे बात कर सकता हूं. मुझे कैसे पता कि आपके पास क्या है.''
हिंदुस्तानी हंसते हुए याद करते हैं, ''वे नहीं समझ पाए कि हम उस रात क्यों अमर सिंह के निवास पर नहीं जाना चाहते थे. वे पूछते रहे कि आप लोग वहां जाने से क्यों डर रहे हैं. वे आपको खा नहीं जाएंगे.'' मजा तो यह कि गौतम ने सांसदों को रात में अमर सिंह के निवास पर न जाने के लिए यह कह के आगाह कर दिया था कि वहां जाने पर उनका अपहरण भी हो सकता है.
अगले दिन यानी विश्वास मत वाले दिन की सुबह हिंदुस्तानी को रेवती रमण सिंह का फोन आया, जिसमें उन्होंने कहा कि सांसदों को अमर सिंह के घर भेज दिया जाए. हिंदुस्तानी के साथ केवल अर्गल और कुलस्ते ही गए. तीनों सफेद जेन कार में अमर सिंह के घर पहुंचे. उस समय उनके पास कोई गुप्त कैमरा नहीं था क्योंकि गौतम को डर था कि अमर उन्हें पकड़ लेंगे. इसलिए सिर्फ उनके निवास के बाहर ही कैमरे लगाए गए थे.{mospagebreak}
सीएनएन-आइबीएन के टेप दिखाते हैं कि जेन घर के अंदर जा रही है और आ रही है, लेकिन काले शीशे के कारण उसमें बैठे लोगों के चेहरे नहीं नजर आ रहे. ऐसा इसलिए कि सांसद जब अमर सिंह के घर पहुंचे तो उन्होंने न सिर्फ सीएनएन-आइबीएन के कैमरे देखे बल्कि दूसरे समाचार चैनलों के भी कैमरे दिखाई दिए. उन्होंने तुरंत खिड़कियों के शीशे चढ़ा लिए. सीएनएन-आइबीएन के रिपोर्टर ने जेपीसी को बताया कि वह हिंदुस्तानी के अलावा गाड़ी में बैठे किसी भी आदमी को नहीं देख सका.
हिंदुस्तानी याद करते हैं कि अमर सिंह ने बड़ी अच्छी तरह खातिरदारी की. उन्होंने उन्हें मेवे और कोल्ड ड्रिंक पेश किए. हिंदुस्तानी कहते हैं, ''वे शहंशाही तरीके से आए.'' यहीं पर कहानी में फर्क आ जाता है. हिंदुस्तानी के मुताबिक, अमर ने तुरंत फोन उठाया और कहा, ''दो कमल वाले आए हैं. मेरे सामने बैठे हैं.'' हिंदुस्तानी बताते हैं कि ''फोन नीचे रखकर उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने मनमोहन सिंह जी से बात कर ली है.''
लेकिन जब इंडिया टुडे ने अर्गल से पूछा कि अमर सिंह ने क्या मनमोहन सिंह से बात की थी तो उन्होंने इससे मना कर दिया. उन्होंने बताया कि अमर सिंह ने पटेल को फोन किया और कुलस्ते व अर्गल दोनों से उनकी बात कराई.{mospagebreak}
उनसे जब पटेल से होने वाली बातचीत के बारे में पूछा गया तो अर्गल ने बताया, ''हूं-हां की बात की, ज्यादा नहीं.'' वे स्वीकार करते हैं कि फोन पर बात करने वाले शख्स पटेल ही थे. अर्गल कहते हैं कि अमर सिंह ने प्रत्येक को 3 करोड़ रु. देने की पेशकश की, हालांकि हिंदुस्तानी ने ज्यादा की मांग की. अर्गल याद करते हैं, ''उन्होंने उनसे कहा, आप ठाकुर हो. मारवाड़ी के जैसे क्यों बोल रहे हो?'' वे आगे बताते हैं, ''अमर सिंह ने हमसे कहा कि अगर आप पिछली रात आए होते तो रकम और ज्यादा हो सकती थी, क्योंकि आज सुबह तक उनके पास 275 सांसद हो चुके हैं.''
चूंकि योजना कैमरे में पैसा देते हुए रिकॉर्ड करने की थी, इसलिए सांसदों ने अमर सिंह से 1 करोड़ रु. की टोकन राशि अर्गल के निवास पर भेजने को कहा और बाहर इंतजार में बैठे मीडिया का बहाना बनाया. इंडिया टुडे से बात करते हुए अमर सिंह ने इस बात से इनकार किया कि कभी इस तरह की कोई मीटिंग हुई.
वे कहते हैं, ''आपने टेप देखे. इसमें रिपोर्टर मेरे बारे में कहता है कि वे इतने चतुर हैं कि उनका स्टिंग ऑपरेशन नहीं किया जा सकता. उनकी बदकिस्मती.'' उन्होंने आगे बताया, ''न्याय का कानून कहता है कि ठोस सबूत के अभाव में हर व्यक्ति संदेह का लाभ मिलने का हकदार है. मैं अपने कठोर से कठोर आलोचक और राजनीतिक शत्रु को भी विनयपूर्वक संदेह का लाभ देना चाहूंगा.''{mospagebreak}
संजीव सक्सेना नाम का एक व्यक्ति अर्गल के निवास पर पैसा लेकर पहुंचा. हिंदुस्तानी बताते हैं कि वे संजीव सक्सेना को अमर सिंह के निवास पर पहले देख चुके थे. उसके साथ पीली कमीज में एक और शख्स था, और दोनों उस पैसे को कपड़े के थैले में लेकर आए थे.
अर्गल कहते हैं कि पैसा सौंपने के बाद सक्सेना ने अमर सिंह से सांसदों की बात करवाई. पैसे का लेन-देन कैमरे में कैद कर लिया गया. उसमें 10-10 लाख रु. की 10 गड्डियां थीं. उनके सीरियल नंबर दर्ज कर लिए गए. इसके बाद सांसदों ने उन पैसों को कैनवस के दो काले थैलों में डाल दिया.
अर्गल बताते हैं, ''चूंकि संसद में चर्चा थी कि हम उस दिन वोट के लिए नहीं नजर आए हैं, इसलिए मीडिया हमारी तलाश में थी. हमने दो पूर्व सांसदों से अनुरोध किया कि वे हमारे साथ चलें और हमें मिले नोटों को संसद के अंदर पहुंचा दें. बाद में मतदान के दौरान तीनों लोकसभा में पहुंच गए और खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए पैसों को सबके सामने रख दिया. इस पर काफी हंगामा हुआ लेकिन यूपीए विश्वास मत हासिल करने में कामयाब रहा.{mospagebreak}
यूपीए के पक्ष में 275 वोट पड़े,विपक्ष में 256. यह भी एक विडंबना है कि जिस दिन यूपीए-1 ने विश्वास मत जीता, उसी दिन यूपीए-2 की मुश्किलों का बीजारोपण हो गया.
कुलकर्णी कहते हैं, ''तय किया गया कि जब संसद में विश्वास मत पर बहस चल रही होगी, उसी समय सीएनएन-आइबीएन स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित करेगा. लेकिन चैनल पीछे हट गया.
भाजपा के वरिष्ठ नेता (इशारा जेटली की ओर) ने, जिन्होंने स्टिंग ऑपरेशन के लिए चैनल से बात की थी, कहा कि चैनल जब अपनी बात पर कायम नहीं रहा तो उन्हें लगा कि वे सही चुनाव नहीं कर पाए.'' अमर सिंह को भी सीएनएन-आइबीएन से शिकायत है. उन्होंने कहा, ''वहां भी पैसों के लेन-देन के आरोप हैं.
सरदेसाई को अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए.'' सीएनएन-आइबीएन के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ने बाद में जेपीसी को बताया कि ''हमने उस दिन या उस समय टेप इसलिए नहीं चलाया क्योंकि हमें लगा कि हमें सारी जानकारी की दोबारा जांच करनी चाहिए.''
इस मामले में खंडनों की झड़ी लग गई है. रेवती रमण सिंह ने जेपीसी को बताया कि उन्हें बताया गया था कि अर्गल अमर सिंह से मिलना चाहते थे, क्योंकि परिसीमन के कारण उनकी सीट चले जाने के कारण वे मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख के तौर पर सपा में शामिल होना चाहते थे.{mospagebreak}
उन्होंने कहा, ''मैंने अमर सिंह से बात की और कहा कि ये लोग पार्टी में शामिल होना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी छवि अच्छी नहीं है. हम उन्हें पार्टी में नहीं ले सकते.'' सक्सेना ने भी इनकार किया है कि अमर सिंह ने उन्हें अर्गल के निवास पर पैसे ले जाने के लिए दिए. उनके मुताबिक, सुहैल के साथ के एक आदमी ने उन्हें थैला दिया, जो अर्गल के घर जाने के रास्ते में अशोक रोड पर उनकी कार में आ बैठा था.
गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने हाल में एक बहस के दौरान संसद को बताया कि पैसा देने में हिंदुस्तानी की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, ''पैसों का बंदोबस्त करने में उसकी (हिंदुस्तानी) भूमिका संदिग्ध है.''
सक्सेना ने अमर सिंह के लिए काम करने की बात से इनकार किया और कहा कि वे तत्कालीन सपा सांसद शाहिद सिद्दीकी (अब बसपा में) के लिए 8 साउथ एवेन्यू में काम करते थे, जहां ''सिद्दीकी और अमर सिंह दोनों काम किया करते थे.'' अमर सिंह इनकार नहीं करते कि वे सक्सेना को जानते हैं, लेकिन बताते हैं कि वे वेतनभोगी कर्मचारी नहीं थे.{mospagebreak}
देव कहते हैं, ''मीडिया हमसे पूछ चुकी है कि जेपीसी ने अमर सिंह या अहमद पटेल को पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुलाया. लेकिन उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं हैं. सिर्फ इसलिए कि कुछ बातचीत में उनका नाम लिया गया है... उनके खिलाफ कुछ सबूत तो होने चाहिए. टेप में ऐसा कुछ भी नहीं है. न ही उनके चेहरे हैं और न ही उनकी आवाज है.''
अलबत्ता, सबसे जोरदार खंडन मनमोहन सिंह की ओर से आया है, यह बात अलग है कि तीन साल बाद.
-साथ में किरण तारे, पद्मर्णा घोष और भावना विज अरोड़ा