नीतिगत मोर्चे पर अनिश्चितता, राजकोषीय घाटे तथा महंगाई जैसी समस्याओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष (2012-13) में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करेगी. विश्व बैंक ने यह अनुमान लगाया.
हालांकि इसके साथ ही विश्व बैंक ने आगाह किया है कि विकासशील देशों को आने में वाले दिनों में कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वैश्विक आर्थिक संभावनाएं’ में कहा गया है, ‘भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2012-13 में 6.9 प्रतिशत रहेगी. 2013-14 में वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत तथा 2014-15 में 7.4 प्रतिशत रहेगी.
विश्व बैंक ने 2011 में घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए कहा है कि भारत की वृद्धि दर में कमी की वजह मौद्रिक नीति, सुधारों के ठहरने तथा बिजली की कमी की वजह से रही. इन कारणों के साथ राजकोषीय तथा महंगाई की चिंता से निवेश गतिविधियों में कमी आई.
भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2011-12 में घटकर 6.5 फीसद रह गई. इससे पिछले दो वित्त वर्षों में आर्थिक वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत रही थी.
चालू वित्त वर्ष में सरकार ने आर्थिक वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 में दक्षिण एशिया में वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रही, जो 2010 में 8.6 प्रतिशत रही थी. यूरो क्षेत्र के ऋण संकट की वजह से निर्यात में कमी तथा पोर्टफोलियो अंत:प्रवाह में कमी की वजह से ऐसी स्थिति बनी.
इस बीच, विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत रहेगी. विश्व बैंक ने कहा है कि विकासशील देशों को दीर्घावधि के उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना होगा और इसके लिए उन्हें मध्यम अवधि की विकासात्मक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
विश्व बैंक का अनुमान है कि विकासशील देशों की वृद्धि दर 2012 में 5.3 प्रतिशत के कमजोर स्तर पर रहेगी. यह 2013 में 5.9 प्रतिशत तथा 2014 में 6 प्रतिशत पर पहुंचेगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च आय वर्ग के देशों की वृद्धि दर 2012 में 1.4 प्रतिशत, 2013 में 1.9 प्रतिशत तथा 2014 में 2.3 प्रतिशत रहेगी. वहीं यूरो क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2012 में घटकर 0.3 प्रतिशत पर आ जाएगी.
कुल मिलाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इन तीन वर्षों में क्रमश: 2.5, 3 और 3.31 प्रतिशत रहने का अनुमान विश्व बैंक ने लगाया है.