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विज्ञापन में न नियम, न नैतिकता, क्रिकेटर खुश | धोनी का खतरनाक स्‍टंट

क्रिकेट विश्वकप के दौरान विज्ञापनदाताओं और प्रायोजकों के हितों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) कड़ा रुख अपना सकती है, पर प्रायोजकों की प्रतिस्पर्धी कंपनियां घात का मौका मिलने पर शायद ही नियम और मर्यादाओं की परवाह करें.

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सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर

क्रिकेट विश्वकप के दौरान विज्ञापनदाताओं और प्रायोजकों के हितों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) कड़ा रुख अपना सकती है, पर प्रायोजकों की प्रतिस्पर्धी कंपनियां घात का मौका मिलने पर शायद ही नियम और मर्यादाओं की परवाह करें.

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नियम है कि विश्वकप के दौरान खिलाड़ी सिर्फ प्रायोजक कंपनियों के विज्ञापन करेंगे, पर उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं. प्रतियोगिता के प्रायोजकों की प्रतिद्वंद्वी कंपनियां भी उसी खिलाड़ी पर दाव लगाने से नहीं चूकना चाहतीं, जो प्रायोजकों के लिए विज्ञापन कर रहे हैं. यह बड़ी कमाई का मामला है जिसमें कोई चूकना नहीं चाहता.

एशियाई महाद्वीप में टीवी सैट से लेकर ठंडा तक के प्रचार-प्रसार के लिए विश्वकप बहुत बड़ा आयोजन है. कोई कंपनी इसमें पीछे नहीं रहना चाहती, भले ही वह इस प्रतियोगिता की आधिकारिक प्रायोजक है या नहीं. ऐसे में विश्वकप के दौरान इस लिहाज से 'नियम व नैतिकता' दोनों ही गायब दिखे तो आश्चर्य ना होगा.

प्रतिद्वंद्वी कंपनियां सरेआम कह चुकी हैं कि वे बड़े क्रिकेटरों को अपने प्रचार-प्रसार के लिए बड़ा पैसा दे रही हैं. टीवीएस मोटर के विपणन अध्यक्ष एच एस गोइंडी ने कहा, 'हमें कुछ भी करने से कोई नहीं रोक रहा. महेंद्र सिंह धोनी हमारे ब्रांड एम्बेस्डर हैं और हमारी विश्वकप के दौरार प्रचार अभियान शुरू करने की योजना है.' {mospagebreak}

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भारत, बंग्लादेश और श्रीलंका में इसी माह शुरू होने वाले विश्वकप के आधिकारिक प्रायोजकों में एलजी, हीरो होंडा, रीबॉक तथा रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी दर्जन भर बड़ी कंपनियां हैं. ऐसे में होना तो यही चाहिए कि प्रतियोगिता में भाग लेने वाले क्रिकेटर इन्हीं कंपनियों के विज्ञापन करें. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने इस बारे में कुछ नियम भी बना रखे हैं लेकिन वे प्रभावी नहीं दिखते.

इसी का फायदा उठाते हुए प्रतिद्वंद्वी कंपनी सोनी, टीवीएस, एडिडास तथा एयरसेल ने विश्व कप के दौरान विज्ञापनों पर भारी भरकम राशि खर्च करने की योजना बनाई है और ये कंपनियां जिन दिग्गज खिलाडियों को इसके लिए पैसा दे रही हैं, उनमें सचिन तेंदुलकर तथा कप्तान महेंद्र धोनी भी हैं. इसी तरह एडिडास का विज्ञापन अभियान जल्द शुरू होने वाला है और ऐसे कयास हैं कि उसमें सचिन तेंदुलकर तथा वीरेंद्र सहवाग जैसे दिग्गज नजर आएंगे.

विशेषज्ञ भी कहते हैं कि गैर- प्रायोजक तथा प्रयोजक कंपनियों की प्रतिद्वंद्वी फर्मों द्वारा अपने उत्पादों के प्रचार प्रसार में क्रिकेट खिलाडियों को शामिल करने से आईसीसी की 'प्रतिघाती विपणन नीति' का उल्लंघन नहीं होता. {mospagebreak}

प्रतिघाती विपणन या एंबुश मार्केंटिंग वह स्थिति होती है, जब कोई कंपनी किसी आयोजन विशेष के लिए प्रायोजन शुल्क चुकाए बिना ही उसका लाभ उठाने का कोशिश करे.

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इसका एक उदाहरण 1996 के विश्वकप से लिया जा सकता है, जब क्रिकेटरों ने पेप्सी के लिए बहुप्रचारित 'नथिंग ऑफिशियल अबाइट इट' विज्ञापन किया. जबकि कोका कोला इसकी आधिकारिक प्रचारक थी.

आईसीसी के सीईओ हारुन लोगार्ट ने कहा था कि परिषद अपनी वाणिज्यिक सहयोगी फर्मों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा रही है. आईसीसी ने एंबुश मार्केटिंग पर निगरानी रखने के लिए कदम उठाए हैं.

लेकिन वास्तव में ऐसे नियमों का असर दिखता नहीं है. जैसे कि इस विश्व कप की आधिकारिक प्रायोजक एलजी की एक बड़ी प्रतिद्वंद्वी कंपनी सोनी इंडिया है. सोनी ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान धोनी को ब्रांड अंबेस्डर बनाया है और वह इस प्रतियोगिता के दौरान प्रचार-प्रसार पर 100 करोड़ रुपये खर्च करेगी.

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