रुपहले पर्दे पर दिखाए जाने वाले धूम्रपान के दृश्य क्या वास्तविक जीवन में लोगों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इसे लेकर लोग भी एकमत नहीं हैं.
कुछ लोगों का मानना है कि टेलीविजन एवं फिल्मों में धूम्रपान देखकर युवा इसकी तरफ आकर्षित होते हैं जबकि कुछ लोग इससे जुदा राय रखते हैं. कैंसर पेशेंट एड एसोसिएशन (सीपीएए) की निदेशक अनीता पीटर ने आईएएनएस से कहा, 'युवा पीढ़ी सितारों को अपना रोल मॉडल मानती है और जब वह इन्हें रुपहले पर्दे पर धूम्रपान करते हुए देखती है तो वह इनसे ज्यादा प्रभावित होती है.'
उन्होंने कहा, 'एक युवा यदि 22 वर्ष से पहले धूम्रपान की लत में नहीं पड़ता तो वह आगे धूम्रपान का शिकार नहीं होता है.' फिल्म 'अग्निपथ' के निर्देशक करन मल्होत्रा ने कहा कि सिगरेट के पैकेट पर संवैधानिक चेतावनी प्रकाशित करना अथवा फिल्मों में धूम्रपान के दृश्य के दौरान संवैधानिक चेतावनी दिखाना ही काफी नहीं.
मल्होत्रा ने कहा, 'एक उत्पाद पर केवल 'स्मोकिंग किल्स' का स्टिकर चिपकाना ही काफी नहीं है. मेरा मानना है कि यह बेकार का काम है और इसकी जरूरत नहीं है. इस स्टिकर से घूम्रपान करने वाले व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.'
टोरंटो स्थित सेंटर फार ग्लोबल हेल्थ रिसर्च (सीजीएचआर) और मुम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक भारत में वर्ष 2010 में तंबाकू के इस्तेमाल से करीब 120,000 लोगों की मौत हुई. मनोचिकित्सक समीर पारिख की मानें तो रुपहले पर्दे पर धूम्रपान देख युवा की सोच बदल सकती है.
फोर्टिस हेल्थकेयर के मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार विज्ञान के निदेशक पारिख ने कहा, 'यह आकंड़ों से प्रमाणित है कि बच्चे अपने बढ़ने की उम्र में चीजों को देखकर सीखते हैं.' उन्होंने कहा, 'यदि बच्चे किसी अभिनेता को पसंद करते हैं और वह अभिनेता रुपहले पर्दे पर धूम्रपान करते हुए दिखता है तो इस बात की संभावना अधिक होती है कि बच्चे भी ऐसा करेंगे.
पर्दे पर क्या दिखाना है अथवा नहीं दिखाना है इसे लेकर मनोरंजन उद्योग को स्वयं आत्म-नियमन करने की जरूरत है.' फिल्म निर्माता श्रीराम राघवन इस बात से सहमत हैं कि वास्तविक जीवन में धूम्रपान बुरा है लेकिन वह फिल्मों में धूम्रपान के दृश्यों पर रोक लगाने का समर्थन नहीं करते.