भारत का युवा देश के राजनैतिक तबके से नाराज है. अण्णा हजारे के आंदोलन से उस गुस्से की झ्लक दिखी थी. अब वैश्विक बाजार अनुसंधान एजेंसी साइनोवेट द्वारा 18 से 25 साल के बीच के 2,500 भारतीयों पर किया गया इंडिया टुडे विशेष जनमत सर्वेक्षण युवाओं में राजनीतिक विरोधी मानस की पुष्टि करता है.
फोटो: जिन्होंने लीक से हटकर अपनी पहचान बनाई
उनके सामने जब टीम अण्णा के जाने-माने सदस्यों और प्रमुख राजनीतिकों के बीच तीन परिकल्पित चुनावी मुकाबलों का विकल्प रखा गया तो जनादेश बिल्कुल साफ दिखा. अण्णा हजारे 76-24 के अंतर से राहुल गांधी को मात दे रहे हैं और किरण बेदी 84-16 के अंतर से (दिल्ली में यह अंतर बढ़कर 96-4 हो जाता है) कपिल सिब्बल को शिकस्त दे रही हैं.
लेकिन यह नाराजगी सिर्फ कांग्रेस से ही नहीं है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा और पूर्व लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े में किसी एक को चुनना हो तो हेगड़े को येद्दियुरप्पा के 22 के मुकाबले 78 प्रतिशत वोट मिलेंगे.
कांग्रेस को सबसे अधिक भ्रष्ट राजनैतिक पार्टी आंका गया है, लेकिन दूसरे नंबर पर मुख्य विपह्नी पार्टी भाजपा बहुत पीछे नहीं है, जिसे बसपा या द्रमुक से भी ज्यादा भ्रष्ट माना गया है. इन सबके बावजूद भारत के युवाओं का अब भी देश के लोकतंत्र और चुनावी व्यवस्था में भरोसा है.
उत्तर देने वालों में से 86 फीसदी ने कहा कि वे अगले आम चुनाव में मतदान करेंगे. अण्णा के आंदोलन ने भारत के लोकतंत्र को किसी तरह नुक्सान नहीं पहुंचाया है बल्कि इसके बजाए जनता में पारंपरिक रूप से भावश्ाून्य वर्ग को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़कर दरअसल उसे मजबूत ही बनाया है.
भारत के युवा राजनैतिक और आर्थिक दोनों ही मामलों में मायने रखते हैं. भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, जहां 65 फीसदी आबादी की उम्र 35 साल से कम है. उनके हाथ में न केवल राजनैतिक बहुमत है बल्कि कार्यशक्ति में सबसे उत्पादक ढंग से योगदान करने के मामले में भी उन्हें बढ़त हासिल है.
युवाओं के विचार भारत के भविष्य की झ्लक देते हैं. ये विचार अक्सर स्पष्ट रूप से विरोधाभासी हैं. उसी तरह, जैसे इंडिया टुडे-साइनोवेट जनमत सर्वेक्षण में सरकार और राजनीति को लेकर गहरी निराशा के साथ ही उनमें अपने जीवन एवं संपन्नता के बारे में जबरदस्त आशावाद का अनोखा मिश्रण दिखता है.
यह नौजवानों में किसी तरह की खामी नहीं है बल्कि उनकी सबसे बड़ी संपत्ति हैः व्यवस्थित सोच वाले दिमाग विभिन्न विचारों के प्रति खुले हैं.
उत्तर देने वालों में से 84 फीसदी युवाओं का मानना है कि वे शिक्षा, आजादी, आमदनी और जीवन शैली के मायनों में उससे बेहतर जिंदगी बसर करेंगे, जैसी उनके माता-पिता व्यतीत कर चुके हैं. 81 फीसदी का मानना है कि सरकार के बावजूद वे आज के मुकाबले भविष्य में ज्यादा सुखी होंगे.
उत्तरदाताओं में से खासे यानी 80 फीसदी का कहना है कि अगर उन्हें अमेरिका और भारत में वैसी ही नौकरी की पेशकश की जाए तो वे भारत में ही काम करना पसंद करेंगे. इस स्पष्ट विरोधाभास को समझ्ना मुश्किल नहीं है.
महानगरों और बड़े शहरों में जिन युवाओं को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, उनमें से ज्यादातर अब अपनी संपन्नता के लिए सरकार पर निर्भर नहीं हैं. इसके विपरीत, सरकार को तेजी से आ रही संपन्नता की उनकी राह में बाधा के रूप में देखा जा रहा है. युवा अधीर हैं. लेकिन वे राजनीति में कदम रखने से हिचकिचाते हैं. भारत में राजनीति के केंद्र दिल्ली को छोड़कर उत्तरदाताओं की खासी तादाद ने कहा कि उन्हें राजनीति में जाने की इच्छा नहीं है.
लेकिन खासकर महानगर के बाहर के युवाओं में सरकारी नौकरी में जाने की इच्छा बरकरार है. मिसाल के तौर पर, पटना के 74 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकारी नौकरी उनकी पहली पसंद है. विशाखापत्तनम में ऐसे युवाओं का आंकड़ा 75 फीसदी है. शायद इसकी वजह यह है कि ऐसी नौकरी सुरक्षित होती है. छोटे शहरों में शायद विकल्प कम ही हैं.
दिल्ली, मुंबई और चेन्नै में, जहां अवसर ज्यादा हैं, सरकारी क्षेत्र से बाहर नौकरी की पसंद बहुत ज्यादा है. एक बात तो स्पष्ट है कि युवा भारत ने अपने कॅरिअर पर ध्यान केंद्रित कर रखा है. इस आयु वर्ग के युवकों में किसी तरह का भटकाव नहीं है. जब उनके जीवन में तनाव के दो प्रमुख कारकों के बारे में पूछा गया तो 'कॅरियर' और 'वित्तीय मामले', दो सबसे बड़े कारक के रूप में उभरे.
भारतीय युवाओं के सामाजिक रुख ने उनके राजनैतिक-आर्थिक नजरिए से कहीं ज्यादा दिलचस्प विरोधाभास पेश किए. उनमें नव-उदारवाद और पुराने रूढ़िवाद का स्पष्ट मिश्रण दिखता है. पांच महानगरों और द्वितीय श्रेणी के 5 शहरों के जवाबों में बिल्कुल स्पष्ट अंतर दिखता है.
सेक्स के प्रति विभिन्न जगहों पर उदार रुख है. 68 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे यौन रूप से सक्रिय हैं. लेकिन केवल 15 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे संसर्ग कर चुके हैं. ज्यादातर युवा चुंबन और स्पर्श को सेक्स के दर्जे में रखते हैं.
यह स्पष्ट विरोधाभास है कि 54 फीसदी विवाह पूर्व कौमार्य में विश्वास करते हैं. लेकिन दिल्ली और मुंबई में क्रमशः 22 और 35 फीसदी युवाओं को ही विवाह पूर्व कौमार्य में विश्वास है. इसी तरह से परिवार के तय किए विवाह, प्रेम विवाह या लिव-इन संबंधों को प्राथमिकता देने के मामले में भी राय बंटी हुई है. कुल मिलाकर 57 फीसदी युवा परिवार के तय किए विवाह का समर्थन करते हैं.
दिल्ली और मुंबई में ऐसी राय रखने वाले अल्पमत में हैं. उदार मानी जाती दिल्ली के 24 फीसदी युवा लिव-इन संबंधों का समर्थन करते हैं.
युवा भारत की धर्म में गहरी आस्था है. 86 फीसदी उत्तरदाता ईश्वर में विश्वास करते हैं. 76 फीसदी रोज प्रार्थना करते हैं. कोलकाता इकलौता अपवाद है, जिसके 50 फीसदी युवा आस्तिक और 50 फीसदी नास्तिक हैं. इसकी वजह शायद यह है कि वहां नास्तिक माकपा का लंबे समय तक शासन रहा. युवा पूरी तरह सेकुलर और अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्मों के प्रति भेदभाव से परे लगते हैं-90 फीसदी का कहना है कि दूसरे धर्मों में जन्मे लोगों में भी उनके दोस्त हैं.
युवा भारत में सुंदर दिखने की भी चाहत है. जब उनसे पूछा गया कि उन्हें सबसे ज्यादा किसकी चिंता है तो जवाब मिला सबसे ज्यादा अपने सौंदर्य की चिंता है. 77 फीसदी उत्तरदाता कंघी रखते हैं, 38 फीसदी ने माना कि वे गोरेपन की क्रीम इस्तेमाल करते हैं. पारिवारिक मूल्यों के प्रति जबरदस्त लगाव है.
अपने आदर्श के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने माता और पिता को अण्णा हजारे और सचिन तेंडुलकर से ऊपर बताया. युवा भारतीयों के लिए परिवार के साथ समय बिताना सेक्स से बड़ी प्राथमिकता है.
युवाओं का दावा है कि वे कानून का पालन करते हैं. 92 फीसदी ने कहा कि वे शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाते. इतने ही लोगों का दावा है कि उन्होंने कभी मादक पदार्थों का सेवन नहीं किया, 87 फीसदी का कहना है कि पुलिस से कभी उनका साबका नहीं पड़ा और 65 फीसदी ने कभी रिश्वत नहीं दी. अगर यह सब सही है तो भारत का भविष्य सुरक्षित हाथों में है.