राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ रिश्वत के मामलों को खोलने के लिए स्विस प्रशासन से संपर्क करने के लिए प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ को बुधवार को और दो सप्ताह की मोहलत दे दी गई.
इसी मामले के चलते अशरफ के पूर्ववर्ती गिलानी को अपने पद से हाथ धोना पड़ा था. शीर्ष अदालत ने इससे पूर्व प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के अपने निर्देशों की अनुपालना करने के लिए आज तक का समय दिया था.
मामले की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल इरफान कादिर ने मामले की सुनवाई ईद उल फितर के बाद तक के लिए स्थगित किए जाने की अपील की लेकिन न्यायाधीश आसिफ सईद खान खोसा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने उनकी अपील को नामंजूर कर दिया और मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.
कादिर ने पीठ में खोसा की मौजूदगी पर भी यह कहते हुए सवाल उठाया कि वह पूर्वाग्रह से पीड़ित हैं. उन्होंने कहा कि खोसा से खुद ही पीठ से अलग होने के लिए कहा लेकिन उनकी इस अपील को भी नामंजूर कर दिया गया.
खोसा ने कहा कि यदि उनका कोई पूर्वाग्रह होता तो वह तत्काल पीठ छोड़ देते. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे देश को नुकसान पहुंचे या लोकतांत्रिक प्रक्रिया पटरी से उतरे. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश लोकतंत्र के साथ हैं और उसे मजबूत करना चाहते हैं.
खोसा ने कहा, ‘आप मेरे खिलाफ पूर्वाग्रह से पीड़ित होने का आरोप कैसे लगा सकते हैं.’ खोसा ने कहा कि न्यायाधीश राष्ट्रपति का उतना ही सम्मान करते हैं जितना कोई और करता है. लेकिन अटार्नी जनरल ने कहा कि वह 12 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से चिंतित हैं जिसमें प्रधानमंत्री से मामलों को फिर से खोलने और अदालत में इस निर्देश की अनुपालना रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया था.
अटार्नी जनरल ने आगे कहा कि सरकार अदालत के 12 जुलाई के आदेश की समीक्षा की अपील करते हुए समीक्षा याचिका दाखिल करने की इच्छुक है. खोसा ने इस पर कहा कि सरकार आठ अगस्त तक अपील दाखिल कर सकती है.
12 जुलाई के अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री अशरफ को उसके आदेश की 25 जुलाई तक अनुपालना किए जाने का निर्देश दिया था. साथ ही आदेश में चेतावनी दी गयी थी कि यदि प्रधानमंत्री कार्रवाई करने में विफल रहे तो अदालत ‘संविधान और कानून के तहत उचित कार्रवाई करने की पहल कर सकती है.’
इसी मामले के चलते पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को अपने पद से हाथ धोना पड़ा था. गिलानी ने भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोले जाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था जिसके चलते अप्रैल में उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया.
मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसके बाद गिलानी को पांच साल के लिए अयोग्य करार दे दिया था. अदालत दिसंबर 2009 से ही राष्ट्रपति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सरकार पर दबाव डालती आ रही है.
उस समय अदालत ने पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ द्वारा जारी उस आम माफी को खारिज कर दिया था जिससे जरदारी तथा आठ हजार से अधिक अन्य लोगों को फायदा मिला था. सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट पर केवल जरदारी के खिलाफ मामलों को तव्वजो दिए जाने के कारण पूर्वाग्रह से पीड़ित होने का आरोप लगाया था.
सरकार का लगातार यही कहना था कि वह राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ मामलों को खोलने के लिए स्विस प्रशासन को नहीं कह सकती क्योंकि उन्हें पाकिस्तान तथा विदेशों में छूट प्राप्त है.
आज की अदालती कार्यवाही के दौरान अटार्नी जनरल ने अदालत से देश की तरक्की के लिए सरकार से किसी प्रकार के टकराव से बचने की अपील की. इस पर न्यायाधीश खोसा ने कहा कि शीर्ष अदालत किसी को उसके पद से हटाना नहीं चाहती.