पाकिस्तान में तेजी से बन-बिगड़ रही तख्तापलट की आशंकाएं अब फिल्मों के सस्पेंस की तरह क्लाइमेक्स पर आकर ठहर गई हैं.
जंग की तमाम बिसात बिछ जाने के बाद फौज और सरकार दोनों के कदम ठहर गए हैं और टकराव के हालात टालते जा रहे हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी भी शुक्रवार सुबह दुबई से अपने देश लौट आए.
तख्तापलट की आशंकाओं के बीच पाकिस्तान के अवाम की सांसें थम गई हैं. असमंजस के हालात में उनका दम घुट रहा है. पूरा मुल्क जानना चाहता है कि देश का भविष्य क्या होगा? सरकार और सेना के बीच खिंची तलवारें बार-बार तानाशाही के खंजर से मारे गए मुल्क को किस ओर ले जाएगी.
पाकिस्तान की अवाम ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को इन सवालों के जवाब का बेसब्री से इंतजार है, लेकिन इस वक्त किसी के लिए भी मुमकिन नहीं कि जवाब दे पाए.
सेना और सरकार में छिड़ी जंग की बिसात अब भी बिछी है. कियानी और गिलानी के बीच तलवारें अब भी खिचीं हैं, लेकिन शह और मात का कदम बढ़ाने के लिए न प्रधानमंत्री गिलानी तैयार हैं और न ही पाक फौज के मुखिया कियानी.
गुरुवार को पाकिस्तान फौज के मुखिया जनरल अशफाक परवेज कियानी ने सेना के कमांडरों के साथ 10 घंटे तक अहम बैठक की थी, लेकिन इसके बाद बयान आया कि हालत कितने भी मुश्किल हो जाएं, पाकिस्तान की सेना इस पक्ष में कतई नहीं कि देश की संप्रभुता के साथ किसी हाल में समझौता किया जाए.
इस बयान से तो यही जाहिर होता है कि पाकिस्तान फौज फिलहाल तख्तापलट के मूड में नहीं है, लेकिन ये मौके की नजाकत को भांपते हुए कियानी की सियासी चाल भी हो सकती है.
तमाम उथल-पुथल के बावजूद जब नेशनल असेंबली की बैठक बुलाई तो उसमें गिलानी ने सेना पर कोई बयानबाजी नहीं की. एक नेता को श्रंद्धाजलि देने के बाद नेशनल असेंबली की बैठक शुक्रवार तक के लिए टाल दी गई.
साफ है कि लोकतंत्र की हत्या के लिए पहले कदम आगे बढ़ाने का कलंक कोई नहीं लेना चाहता. कुल मिलाकर सरकार ने भी अपने कदम रोक लिए हैं और लोकतंत्र की हत्या के कलंक से बचने के लिए पाक फौज ने भी संयम बरत ली है, लेकिन पाकिस्तान में तख्तापलट की आशंकाओं पर असमंजस का ये ठहराव बहुत देर का मेहमान नहीं है.