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डर से नहीं हो रहे हैं दस्तखत

घोटालों से घिरी यूपीए सरकार का कामकाज लगभग ठप पड़ा है क्योंकि उसके मंत्री और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी गलत कदम उठा लिए जाने के डर से फाइलों पर दस्तखत नहीं कर रहे हैं.

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इस साल के शुरू में, रेल मंत्रालय के अधिकारियों ने यूरोप में एक मुफ्त प्रशिक्षण कोर्स के लिए 50 अधिकारियों के नाम ममता बनर्जी को भेजे थे. इस प्रस्ताव को तत्कालीन रेल मंत्री ने तत्काल नामंजूर कर दिया, उन्होंने पूर्व रेल मंत्री, लालू प्रसाद की शुरू की इस परंपरा की कड़ी मुखालफत की.

कुछ हफ्ते बाद मंत्रालय को होटल, वक्ताओं, प्रशिक्षकों की फीस और अन्य जरूरतों के लिए बुकिंग रद्द कराने के कारण 10 लाख डॉलर का बिल मिला. बनर्जी ने इस बिल पर दस्तखत कर दिए (उनका दावा है बिना सोचे-समझे) उन्हें चेताया गया कि नियामक संस्था इसे उनके खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है, और यह संस्था केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) भी हो सकती है. मंत्री ने तुरंत उस पत्र को फाड़ दिया जिस पर उन्होंने दस्तखत किए थे. किसी ने चूं तक नहीं की.

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इस मामले में वे अकेली ही नहीं हैं. एक तरह के अज्ञात भय ने यूपीए सरकार और उसके वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को तब से जकड़ लिया है, जब से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी और राष्ट्रमंडल खेलों में घोटाले सामने आए हैं.

आज किसी मंत्री से फाइलों पर दस्तखत कराना मुश्किल है. और परियोजनाओं को अमल में लाना यकीनन मुश्किल काम हो गया है और अक्सर विभिन्न मंत्रालयों की परस्पर विरोधी राय मुसीबत और बढ़ा रही है.

मसलन, केंद्र के कर्ज कार्यक्रम को चलाने के लिए वित्त मंत्रालय के बनाए ऋण प्रबंधन कार्यालय (डीएमओ) के गठन के कुछ महीने बाद ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने इस कदम का इस आधार पर विरोध कर दिया कि इस मामले में प्रासंगिक फैसले करने का ज्ञान और साधन केवल केंद्रीय बैंक के पास ही है.

आरबीआइ के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने बेसल में सेंट्रल बैंक गवर्नेंस ग्रुप की एक बैठक में कहा, ''संकीर्ण उद्देश्यों से प्रेरित कोई स्वतंत्र ऋण एजेंसी इस काम को नहीं कर पाएगी.'' जैसी उम्मीद थी, इस कदम ने वित्त मंत्रालय में हड़कंप मचा दिया जिसने डीएमओ के लिए पहले ही एक दरमियानी दफ्तर स्थापित कर लिया था, जिसमें सार्वजनिक ऋण के आंकड़ों का अध्ययन और विश्लेषण करने के लिए आरबीआइ के अधिकारी रखे गए थे. वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर कहा, '' क्या यह उलझने वाली स्थिति नहीं है?''

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प्रशासनिक सेवा के पूर्व राजीव सीकरी का कहना है, ''या तो कोई भ्रम बना हुआ है या सभी के मन में कार्रवाई की जद में आने का डर है.'' उनका कहना है कि सरकार के अतिरिक्त सावधानी बरतने का असर उसके कामकाज पर पड़ रहा है-यह लगभग ठप हो गया है-क्योंकि कोई नहीं जानता कि काम करने के लिए कैसे मनाया जाए और क्या ऑफर किया जाए.

नतीजतन भारत की कुछ बड़ी कंपनियां दुनिया भर में अपना कारोबार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं और परियोजनाओं के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं. पिछले एक साल में रिलायंस, टाटा संस, बिरला, एस्सार और अडाणी समूह ने अपनी घरेलू योजनाओं को रोककर विदेशों में परिसंपत्ति हासिल करने के लिए 55 अरब डॉलर से ज्‍यादा निवेश किया है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने घोषणा कर दी है कि वह अपने खुदरा कारोबार में अतिरिक्त पूंजी नहीं लगाएगी लेकिन अमेरिका में शेल गैस परियोजनाओं में करीब 4 अरब डॉलर के निवेश को लेकर वह उत्साहित है. एस्सार शिपिंग दुनिया भर में विस्तार कर रही है-समूह अपने लंदन के कारोबार को मजबूत बना रहा है.

गौतम अडाणी ने ऑस्ट्रेलिया में एक कोयला खान और एक बंदरगाह लेने के लिए करीब 10 अरब डॉलर का निवेश किया है. शेयर बाजार के विश्लेशक हेमेन कपाड़िया का कहना है, ''निवेश बाहर जा रहा है क्योंकि दिल्ली में फाइलों पर कोई दस्तखत नहीं करना चाहता.''

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कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता. पूर्व घोषणा के बगैर राजधानी पहुंचे केअर्न एनर्जी के सीईओ बिल गैमल, पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी और कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली से मिलना चाहते थे ताकि 16 अगस्त, 2010 को घोषित 9.6 अरब डॉलर के समझैते को जल्दी मंजूरी देने की बात आगे बढ़ाई जा सके. लेकिन मंत्रालयों ने  आधिकारिक तौर पर इनकार कर दिया कयोंकि गैमल ने पहले से मिलने का समय नहीं लिया था.

लेकिन असली वजह यह थी कि दोनों मंत्रालय नाराज थे क्योंकि गैमल ने एक बार कह दिया था कि समझैते के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ेगी. गैमल स्वदेश लौट गए और केअर्न की अपने अधिकांश शेयर अनिल अग्रवाल नियंत्रित वेदांत रिसोर्सेस को बेचने की योजना अधूरी रह गई. समझैते के लिए तय 20 मई की अंतिम समय सीमा पर केअर्न एनर्जी उसे पूरा नहीं कर पाई. ऊर्जा विशेषज्ञ और हाइड्रोकार्बन पर भारतीय वाणिज्‍य और उद्योग मंडल महासंघ (फिक्की) समिति के सदस्य नरेंद्र तनेजा का कहना है, ''किसी निवेशक के लिए यह कोई अच्छा संकव्त नहीं है.

'कार्रवाई नहीं करने' के रुख की कई वजहें हो सकती हैं. तेजी से फैसले लेने में नाकामी (वेदांत द्वारा केअर्न इजर्नी का अधिग्रहण), बढ़ती निगरानी (एक नए नियामक प्राधिकरण का निजी हवाई अड्डा कंपनियों के ठेकों पर नए सिरे से गौर करना या वर्तमान नियामक प्राधिकरण द्वारा 2जी लाइसेंसों को रद्द करने का सुझाव देना), या भारत भर में रियल एस्टेट क्षेत्र में इजाजत पर रोक लगाना.

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रियल एस्टेट वकील परिमल श्राफ  का कहना है, ''अगर यही हालत लंबे समय तक बनी रही तो रियल एस्टेट में एक बार फिर बिखराव होगा. '' श्राफ ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन मुंबई में यह सर्वविदित है कि आदर्श घोटाले के बाद प्रशासनिक अधिकारी ऊंची इमारतों को हरी झ्ंडी देने से इनकार कर रहे हैं.

अनिश्चिता कोई पसंद नहीं करता. पिछले आठ महीनों में, मुंबई के रियल एस्टेट क्षेत्र में विदेश के किसी प्राइवेट इक्विटी खिलाड़ी को शामिल करके किसी बड़े सौदे पर दस्तखत नहीं हुए हैं. हाल ही में सिंगापुर में भारत के कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन के सम्मेलन में कई प्राइवेट इक्विटी निवेशक चार साल पहले रियल एस्टेट का सबसे आकर्षक बाजार समझे जाते रहे भारत से पीछा छुड़ाना चाहते थे. सी. बी. रिचर्ड एलिस, दक्षिण एशिया के प्रबंध निदेशक अंशुमन मैगजीन का कहना है, ''यह कोई अच्छा संकव्त नहीं है.''

एक बहुराष्ट्रीय पेट्रोकेमिकल फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार के ढुलमुल रवैए ने भी इस हालत में इजाफा ही किया है. ''अनिश्चिता इस हद तक पहुंच चुकी है कि भारत में निवेश करना उतना ही जोखिम भरा हो गया है जितना अफ्रीका के जंगली इलाकों में कुएं खोदना.'' ऐसे समय पर जब कमोडिटी बाजार में तेजी आई है, भारत का खनन क्षेत्र पर्यावरण संबंधी नीतियों के कारण रुका हुआ है और देखिए, 203 कोयला खंडों को 'निषिद्ध क्षेत्र' घोषित कर दिया गया.

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इस फैसले से एक साल में 66 करोड़ टन कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ है. मंत्रियों के एक समूह को अभी अंतर मंत्रिस्तरीय मतभेद दूर करने हैं. इसके अलावा पर्यावरण सबंधी मंजूरी मिलने में देरी के कारण 154 कोयला परियोजनाएं अधर में लटक गई हैं. और अब कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कह रहे है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को कोयला खंडों के आवंटन रद्द करने के फैसले की समीक्षा करने के लिए तैयार है. क्या कोई इसकी जिम्मेदारी लेगा?
-मुंबई से टी. सुरेंद्र के साथ

भारत में रुकी हुई परियोजनाएं

आर्सेलर मित्तल
निवेश 130,000 करोड़ रु.
स्थान कर्नाटक, ओडीसा, झारखंड
वर्तमान स्थितिः झारखंड और ओडीसा में मंजूरी नहीं, कर्नाटक में छोटे पैमाने पर काम शुरू हो पाया है.

पॉस्को इंडिया
निवेश 54,000 करोड़ रु.
स्थान ओडीसा
वर्तमान स्थिति लगातार जारी आदिवासी आंदोलन के बीच राज्‍य सरकार के जमीन के अधिग्रहण के इंतजार में

वेदांत रिसोर्सेस
निवेश 43,200 करोड़ रु.
स्थान राजस्थान
वर्तमान स्थिति समूह की योजना को मंत्री समूह ने मंजूरी नहीं दी. स्थानीय लोगों तथा संगठनों के आंदोलन के बाद समूह की ओडीसा के नियामगिरी जिले में 7,000 करोड़ रु. की एल्यूमिनियम रिफाइनरी परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया.

हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी
निवेश 3,000 करोड़ रु.
स्थान लवासा, पुणे के नजदीक
वर्तमान स्थिति एचसीसी पर्यावरण संबंधी मंजूरी का इंतजार कर रही है, काम रुका हुआ है. भारत में रुकी हुई परियोजनाओं की लागत (2000-10) 6,65,550 करोड़ रु.

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