ट्रैफिक रूल तोड़ने वाले को गुलाब के फूल भेंट करने जैसी ‘गांधीगिरी’ की तमाम घटनाएं आपने पहले सुनी होंगी. पर बिहार में ‘सामूहिक गांधीगिरी’ का जो नमूना सामने आया है, वह बेहद दिलचस्प है. राज्य सरकार की ओर से ट्रेनिंग पा रहे नए टीचर जब क्लास में लेट पहुंचते हैं, तो कुछ जगहों पर उनका स्वागत जोरदार तालियों से साथ किया जाता है.
दरअसल, प्रदेश में TET पास शिक्षकों की बड़े पैमाने पर भर्ती हुई है, जिन्हें ग्रुप में 30-30 दिनों की स्पेशल ट्रेनिंग (प्रेरणा-2) दी जाती है. जिस सेंटर पर ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है, उसे BRC (Block Resource Centre) कहते हैं. सभी शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए तय वक्त पर पहुंचना होता है. जब ट्रेनिंग पाने वाले कोई शिक्षक क्लास में देर से पहुंचते हैं, तो बाकी शिक्षक उनका स्वागत तालियां बजाकर करते हैं. ऐसी तालियों को यहां ‘तीन ताली’ कहा जाता है.
ऐसी तालियां बजाने का मकसद यह होता है कि लेट पहुंचने वाले को इस बात का एहसास हो जाए कि उसने तय वक्त पर न आकर गलती की है. साथ ही गलतियों का एहसास इस तरीके से कराया जाए कि किसी के मन में ठेस भी न पहुंचे.
इस बारे में संकुल संसाधन केंद्र (Cluster Resource Centre) कन्या मध्य विद्यालय, मनेर के कोऑर्डिनेटर मधुरेंद्र कुमार ‘मधुप’ ने बताया, ‘आम तौर पर लंच टाइम खत्म होने पर कमरे से बाहर गए शिक्षकों को अंदर बुलाने के लिए लगातार तालियां बजाई जाती हैं, जिसे सुनकर वे तुरंत लौट जाते हैं. लेट आने पर तालियां बजाए जाने का चलन हर जगह नहीं है.’
उन्होंने बताया कि लंच खत्म होने पर बेल की बजाए इस तरह की तालियां बजाई जाती हैं. साथ ही ट्रेनिंग के दौरान किसी की खास उपलब्धि पर या सेंटर पर किसी बेहद खास गेस्ट के आने पर 'पांच तालियों' से उनका स्वागत होता है. ऐसी सभी तालियों को बीईपी (Bihar Education Project) की ताली कहा जाता है.
एक और दिलचस्प बात यह है कि अगर सामूहिक रूप से तालियां बजाने के क्रम में कोई लय खोकर गलती कर बैठता है, तो उसे ‘बोनस’ के तौर पर सभी को गीत, लतीफा या कोई प्रेरक प्रसंग सुनाना पड़ता है. लेट आने वालों को भी इसी तरह ‘दंडित’ किया जाता है.
Cluster Resource Centre, मध्य विद्यालय, गोपालपुर के कोऑर्डिनेटर रामाशंकर गुप्ता ने कहा, ‘जिन शिक्षकों पर बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने और उनके चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी है, उनसे इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे खुद वक्त के पाबंद हों. अगर टीचर खुद लेट-लतीफ होंगे, तो बच्चे उनसे क्या सीखेंगे.’ उन्होंने कहा कि लेट आने पर जिस तरह का ‘स्वागत’ होता है, उससे किसी को बुरा भी नहीं लगता है और गलती करने वाले तक तालियों से ही ‘मैसेज’ भी पहुंच जाता है.
बहरहाल, घंटी के विकल्प के रूप में तालियों का इस्तेमाल और लेट आने पर तालियों से स्वागत की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं और देखने को मिले.